सुप्रीम कोर्ट: राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज होगी सुनवाई 


सार

औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून के व्यापक दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए शीर्ष अदालत ने पिछले साल अप्रैल में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह इस प्रावधान को क्यों निरस्त नहीं कर रही है जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों की सरकार ने महात्मा गांधी जैसे लोगों की आवाज को दबाने के लिए किया था।

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सुप्रीम कोर्ट राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की तीन सदस्यीय पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और पूर्व सैन्य अधिकारी समेत अन्य याचिकाओं पर होगी सुनवाई।

15 जुलाई 2021 को हुई सुनवाई में अदालत ने इसे भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाने वाला औपनिवेशिक कानून करार देते हुए केंद्र सरकार से सवाल किया था। अदालत ने कहा था कि इस कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा है। कोर्ट ने कहा था कि राजद्रोह कानून एक औपनिवेशिक कानून है और इसका इस्तेमाल अंग्रेजों द्वारा और हमारी आजादी का गला घोंटने के लिए किया गया था। इसका इस्तेमाल महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ किया गया था।

औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून के व्यापक दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए शीर्ष अदालत ने पिछले साल अप्रैल में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह इस प्रावधान को क्यों निरस्त नहीं कर रही है जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों की सरकार ने महात्मा गांधी जैसे लोगों की आवाज को दबाने के लिए किया था।

अदालत ने कहा था कि कई याचिकाओं में राजद्रोह कानून को चुनौती दी है और सभी पर एक साथ सुनवाई होगी। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और पूर्व मेजर-जनरल एस जी वोम्बटकेरे द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (देशद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उसकी मुख्य चिंता “कानून का दुरुपयोग” है जिसके कारण मामलों की संख्या में वृद्धि हुई। 

याचिका में दावा किया गया है कि यह कानून अभिव्यक्ति पर ‘डरावना प्रभाव’ डालता है और यह बोलने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर अनुचित प्रतिबंध लगाता है। इसके गैर-जमानती प्रावधान किसी भी व्यक्ति, जो भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा, अवमानना, उत्तेजना या असंतोष को उत्तेजित करने का प्रयास करता है उसे आरोपी बनाता है। ऐसा करना एक दंडनीय आपराधिक अपराध है जिसमें अधिकतम आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। 

मेजर-जनरल (अवकाश प्राप्त) एसजी वोमबटकेरे द्वारा दायर याचिका में दलील दी गई है कि राजद्रोह से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए पूरी तरह असंवैधानिक है। इसे स्पष्ट रूप से खत्म कर दिया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता की दलील है कि सरकार के प्रति असहमति आदि की असंवैधानिक रूप से अस्पष्ट परिभाषाओं पर आधारित एक कानून अपराधीकरण अभिव्यक्ति, अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर एक अनुचित प्रतिबंध है और बोलने की आजादी पर संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य डराने वाले प्रभाव का कारण बनता है। 

याचिका में कहा गया कि राजद्रोह की धारा 124-ए को देखने से पहले, समय के आगे बढ़ने और कानून के विकास पर गौर करने की जरूरत है। हालांकि शीर्ष अदालत की एक अलग पीठ ने राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली दो पत्रकारों किशोरचंद्र वांगखेमचा (मणिपुर) और कन्हैयालाल शुक्ल (छत्तीसगढ़) की याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था।

बता दें कि वोम्बटकेरे मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं और सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर के साथ उन्होंने नर्मदा आंदोलन में भी हिस्सा लिया था। भारतीय सेना के जनसूचना के अतिरिक्त महानिदेशक के आधिकारिक फेसबुक पेज के मुताबिक खार्दुंगला दर्रे में 1982 में दुनिया के सबसे ऊंचे पुल का डिजाइन तैयार करने और उसका निर्माण करने के लिए उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है।

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की तीन सदस्यीय पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और पूर्व सैन्य अधिकारी समेत अन्य याचिकाओं पर होगी सुनवाई।

15 जुलाई 2021 को हुई सुनवाई में अदालत ने इसे भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाने वाला औपनिवेशिक कानून करार देते हुए केंद्र सरकार से सवाल किया था। अदालत ने कहा था कि इस कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा है। कोर्ट ने कहा था कि राजद्रोह कानून एक औपनिवेशिक कानून है और इसका इस्तेमाल अंग्रेजों द्वारा और हमारी आजादी का गला घोंटने के लिए किया गया था। इसका इस्तेमाल महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ किया गया था।

औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून के व्यापक दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए शीर्ष अदालत ने पिछले साल अप्रैल में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह इस प्रावधान को क्यों निरस्त नहीं कर रही है जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों की सरकार ने महात्मा गांधी जैसे लोगों की आवाज को दबाने के लिए किया था।

अदालत ने कहा था कि कई याचिकाओं में राजद्रोह कानून को चुनौती दी है और सभी पर एक साथ सुनवाई होगी। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और पूर्व मेजर-जनरल एस जी वोम्बटकेरे द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (देशद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उसकी मुख्य चिंता “कानून का दुरुपयोग” है जिसके कारण मामलों की संख्या में वृद्धि हुई। 

याचिका में दावा किया गया है कि यह कानून अभिव्यक्ति पर ‘डरावना प्रभाव’ डालता है और यह बोलने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर अनुचित प्रतिबंध लगाता है। इसके गैर-जमानती प्रावधान किसी भी व्यक्ति, जो भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा, अवमानना, उत्तेजना या असंतोष को उत्तेजित करने का प्रयास करता है उसे आरोपी बनाता है। ऐसा करना एक दंडनीय आपराधिक अपराध है जिसमें अधिकतम आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। 

मेजर-जनरल (अवकाश प्राप्त) एसजी वोमबटकेरे द्वारा दायर याचिका में दलील दी गई है कि राजद्रोह से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए पूरी तरह असंवैधानिक है। इसे स्पष्ट रूप से खत्म कर दिया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता की दलील है कि सरकार के प्रति असहमति आदि की असंवैधानिक रूप से अस्पष्ट परिभाषाओं पर आधारित एक कानून अपराधीकरण अभिव्यक्ति, अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर एक अनुचित प्रतिबंध है और बोलने की आजादी पर संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य डराने वाले प्रभाव का कारण बनता है। 

याचिका में कहा गया कि राजद्रोह की धारा 124-ए को देखने से पहले, समय के आगे बढ़ने और कानून के विकास पर गौर करने की जरूरत है। हालांकि शीर्ष अदालत की एक अलग पीठ ने राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली दो पत्रकारों किशोरचंद्र वांगखेमचा (मणिपुर) और कन्हैयालाल शुक्ल (छत्तीसगढ़) की याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था।

बता दें कि वोम्बटकेरे मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं और सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर के साथ उन्होंने नर्मदा आंदोलन में भी हिस्सा लिया था। भारतीय सेना के जनसूचना के अतिरिक्त महानिदेशक के आधिकारिक फेसबुक पेज के मुताबिक खार्दुंगला दर्रे में 1982 में दुनिया के सबसे ऊंचे पुल का डिजाइन तैयार करने और उसका निर्माण करने के लिए उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है।



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