भूमि का बाजार मूल्य: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कीमत का निर्धारण विकसित क्षेत्र और सड़क आदि से निकटता पर भी होना चाहिए


सार

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि हाईकोर्ट ने रेफरेंस कोर्ट द्वारा जमीन के बाजार मूल्य के निर्धारण को रद्द कर कानूनन गलती की है।

सर्वोच्च न्यायालय
– फोटो : पीटीआई

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भूमि का बाजार मूल्य विकसित क्षेत्र और सड़क आदि से निकटता सहित विभिन्न कारकों को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया जाना चाहिए न कि अकेले भूमि की प्रकृति से।

जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी राम सुब्रमण्यम की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ कुछ भूमालिकों द्वारा दायर एक अपील में अपना आदेश दिया है जिसके तहत अधिग्रहित भूमि के मुआवजे का आकलन 56,500 रुपये प्रति हेक्टेयर के तौर पर किया गया था।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश के माध्यम से रेफरेंस कोर्ट (संदर्भ न्यायालय) के उस आदेश को रद्द कर दिया था जिसमें मुआवजे की राशि को बढ़ाकर 1,95,853 रुपये प्रति हेक्टेयर करने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि हाईकोर्ट ने रेफरेंस कोर्ट द्वारा जमीन के बाजार मूल्य के निर्धारण को रद्द कर कानूनन गलती की है।

पीठ ने कहा कि भूमालिकों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य यह है कि अधिग्रहित भूमि शैक्षिक संस्थानों, बैंकों, तहसील कार्यालय आदि के करीब है जबकि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि सिंचित कृषि भूमि में आवासीय या व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की क्षमता है। न्यायालय के अनुसार, भूस्वामियों के साक्ष्य के अनुसार, अधिग्रहित भूमि सड़क से आधा किलोमीटर दूर है और विकसित आवासीय या वाणिज्यिक या संस्थागत क्षेत्र के करीब है।

वर्तमान मामले में निचली वर्धा जलमग्न-परियोजना से प्रभावित व्यक्ति के पुनर्वास के उद्देश्य से 2.42 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया गया था। विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी ने 31 जुलाई 2000 को 56,500 प्रति हेक्टेयर की दर से मुआवजा प्रदान किया। बाजार मूल्य के अपर्याप्त निर्धारण से नाराज भूस्वामियों ने अधिनियम की धारा-18 के तहत रेफरेंस  (संदर्भ) मांगा। संदर्भ न्यायालय ने पाया कि प्रति हेक्टेयर बाजार मूल्य 1,95,853.55 रुपये होगा। लेकिन हाईकोर्ट ने उस आदेश को निरस्त कर दिया था। जिसके बाद भूमालिकों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भूमि का बाजार मूल्य विकसित क्षेत्र और सड़क आदि से निकटता सहित विभिन्न कारकों को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया जाना चाहिए न कि अकेले भूमि की प्रकृति से।

जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी राम सुब्रमण्यम की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ कुछ भूमालिकों द्वारा दायर एक अपील में अपना आदेश दिया है जिसके तहत अधिग्रहित भूमि के मुआवजे का आकलन 56,500 रुपये प्रति हेक्टेयर के तौर पर किया गया था।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश के माध्यम से रेफरेंस कोर्ट (संदर्भ न्यायालय) के उस आदेश को रद्द कर दिया था जिसमें मुआवजे की राशि को बढ़ाकर 1,95,853 रुपये प्रति हेक्टेयर करने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि हाईकोर्ट ने रेफरेंस कोर्ट द्वारा जमीन के बाजार मूल्य के निर्धारण को रद्द कर कानूनन गलती की है।

पीठ ने कहा कि भूमालिकों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य यह है कि अधिग्रहित भूमि शैक्षिक संस्थानों, बैंकों, तहसील कार्यालय आदि के करीब है जबकि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि सिंचित कृषि भूमि में आवासीय या व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की क्षमता है। न्यायालय के अनुसार, भूस्वामियों के साक्ष्य के अनुसार, अधिग्रहित भूमि सड़क से आधा किलोमीटर दूर है और विकसित आवासीय या वाणिज्यिक या संस्थागत क्षेत्र के करीब है।

वर्तमान मामले में निचली वर्धा जलमग्न-परियोजना से प्रभावित व्यक्ति के पुनर्वास के उद्देश्य से 2.42 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया गया था। विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी ने 31 जुलाई 2000 को 56,500 प्रति हेक्टेयर की दर से मुआवजा प्रदान किया। बाजार मूल्य के अपर्याप्त निर्धारण से नाराज भूस्वामियों ने अधिनियम की धारा-18 के तहत रेफरेंस  (संदर्भ) मांगा। संदर्भ न्यायालय ने पाया कि प्रति हेक्टेयर बाजार मूल्य 1,95,853.55 रुपये होगा। लेकिन हाईकोर्ट ने उस आदेश को निरस्त कर दिया था। जिसके बाद भूमालिकों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।

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