देश में हिंदी सिनेमा की दिनोंदिन दयनीय होती हालत की सबसे बड़ी वजह हिंदी सिनेमा में रीमेक के बढ़ते चलन और हिंदी सिनेमा से हिंदी भाषी दर्शकों की बढ़ती दूरी को माना जा रहा है। इस बीच अब हिंदी फिल्में लिखने वाले लेखकों ने भी हिंदी फिल्म निर्माताओं के सामने नया मोर्चा खोल दिया है। हिंदी फिल्म, टीवी व वेब सीरीज लिखने वाले लेखकों व इनमें काम करने वाले गीतकारों की इकलौती संस्था स्क्रीन राइटर्स एसोसिएशन ने मीडिया एवं एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में लेखकों की घटती साख पर चिंता जताई है और पत्रकारों से अनुरोध किया है कि फिल्मो, टीवी सीरियल या ओटीटी कार्यक्रमों की लॉन्चिंग को लेकर होने वाले आयोजनों में लेखकों को लेकर निर्माता निर्देशकों से सवाल जरूर पूछें। एसोसिएशन ने पुरस्कार समारोह आयोजित करने वाली संस्थाओं पर भी गंभीर आरोप लगाया है। एसडब्लूए के मुताबिक पुरस्कार जीतने वाले लेखकों को मंच से दूर रखने के लिए उनके पुरस्कारों को तकनीकी श्रेणी में डाल दिया गया है।
स्क्रीन राइटर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट रॉबिन भट्ट कहते हैं कि बड़े अवार्ड्स शो में लेखकों को पुरस्कार तो देते हैं पर उन्हें कुछ बोलने नहीं देते। यहीं नहीं स्क्रीन राइटर्स एसोसिएशन ने अपनी आवाज को और बुलंद करने के लिए मीडिया वालो से मदद भी मांगी हैं। एसडब्लूए का कहना है कि मीडिया भी किसी इवेंट पर लेखकों को लेकर कोई सवाल नहीं पूछती। निर्माता, निर्देशकों और कलाकारों के अलावा इन आयोजनों के दौरान लेखकों को कोई नहीं पूछता। इस साल के एसडब्लूए पुरस्कारों के लिए आयोजित प्रेस वार्ता में एसडब्लू के दूसरे पदाधिकारियों ने भी इसी से मिलती जुलती बातें कहीं।
एसोसिएशन के महासचिव जमान हबीब कहते हैं, “हम इसी दुखड़े को रो रहे हैं। इतने साल से कि किसी भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में राइटर्स के लिए कोई सवाल नही आता। हम बस इतना कहेंगे कि आप भी उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में राइटर्स को ढूंढिए। मैं इसके लिए पत्रकारों से विनती करता हूं। आप लोग हमारी मदद कर सकते हैं। आप राइटर्स से पूछिए कहानी क्या है, वह किरदार कैसे बना? प्रोड्यूसर से क्यों पूछते हैं, दूसरे से क्यों पूछते हैं।”
प्रेस कांफ्रेस में फिल्म पुरस्कारों के दौरान लेखकों को मंच पर न बुलाए जाने का मुद्दा भी उठा। एसोसिएशन का कहना है कि इन पुरस्कार समारोहों में सबके सामने लेखकों को भी सम्मान मिले तो उन्हें अच्छा लगेगा। लगेगा कि उन्हें भी उनकी मेहनत कें दम पर पहचान मिल रही है। एसोसिएशन के मुताबिक इसके लिए फिल्म पुरस्कार देने वाली संस्थाओं से बात भी की गई। पत्र भी लिखे गए लेकिन किसी ने उनकी सुनी नहीं। यहां तक कि अब तो अवार्ड्स घर पर भेज दिए जाते हैं, लेखक बिरादरी कार्यक्रम के दौरान कुछ न कह सके। और, ये करने के लिए लेखकों के पुरस्कारों को तकनीकी कैटेगरी में डाल दिया गया जबकि लेखकों का काम रचनात्मक है, मशीनी नहीं।
देश में हिंदी सिनेमा की दिनोंदिन दयनीय होती हालत की सबसे बड़ी वजह हिंदी सिनेमा में रीमेक के बढ़ते चलन और हिंदी सिनेमा से हिंदी भाषी दर्शकों की बढ़ती दूरी को माना जा रहा है। इस बीच अब हिंदी फिल्में लिखने वाले लेखकों ने भी हिंदी फिल्म निर्माताओं के सामने नया मोर्चा खोल दिया है। हिंदी फिल्म, टीवी व वेब सीरीज लिखने वाले लेखकों व इनमें काम करने वाले गीतकारों की इकलौती संस्था स्क्रीन राइटर्स एसोसिएशन ने मीडिया एवं एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में लेखकों की घटती साख पर चिंता जताई है और पत्रकारों से अनुरोध किया है कि फिल्मो, टीवी सीरियल या ओटीटी कार्यक्रमों की लॉन्चिंग को लेकर होने वाले आयोजनों में लेखकों को लेकर निर्माता निर्देशकों से सवाल जरूर पूछें। एसोसिएशन ने पुरस्कार समारोह आयोजित करने वाली संस्थाओं पर भी गंभीर आरोप लगाया है। एसडब्लूए के मुताबिक पुरस्कार जीतने वाले लेखकों को मंच से दूर रखने के लिए उनके पुरस्कारों को तकनीकी श्रेणी में डाल दिया गया है।
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