Reading to kids builds their resilience : हर माता-पिता ये चाहते हैं कि उनका बच्चा एक खुशहाल बचपन जिए, मगर बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य विकार यानी मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर (Mental Health Disorder) उनकी ओवरऑल हेल्थ और वेल्फेयर पर बड़ा असर डाल सकता है. इतना ही नहीं, ये बड़े पैमाने पर बच्चे के डेवलपमेंट को इफेक्ट करता है. यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ ऑस्ट्रेलिया (University of South Australia) के रिसर्चर्स द्वारा की गई नई स्टडी के अनुसार, बच्चों को ऊंची आवाज में कहानी या कविताएं सुनाकर हम उनका मानसिक दबाव कम कर सकते हैं. आपने देखा होगा कि स्कूल में बच्चों को जोर से कविताएं और कहानियां सुनाई जाती हैं. इसका बच्चों पर पॉजिटिव इफेक्ट होता है. इस स्टडी का उद्देश्य ये जानना था कि बच्चों पर बचपन में सुनाई जाने वाली कहानियों का क्या असर पड़ता है. इस स्टडी का निष्कर्ष ‘एकेडमिक जर्नल चाइल्ड एब्यूज एंड नेगलेक्ट (Academic Journal Child Abuse and Neglect)’ में प्रकाशित किया गया है.
इस स्टडी की मेन राइटर प्रोफेसर लियोनी सेगल (Professor Leonie Segal) का कहना है कि ये अपनी तरह की पहली स्टडी है. इस दौरान हमारी टीम ने पाया कि कहानी पढ़कर सुनाने से बच्चों का मानसिक तनाव यानी मेंटल स्ट्रेस (mental stress) कम किया जा सकता है. इतना ही नहीं इससे बच्चों में किसी तरह के शोषण को भी कम किया जा सकता है.
पॉजिटिव एनर्जी का संचार
प्रोफेसर लियोनी सेगल (Professor Leonie Segal) ने कहा कि किसी कहानी या कविता को ऊंची आवाज में पढ़कर बच्चों को सुनाने से उनकी नकारात्मक मानसिकता यानी निगेटिव माइंडसेट (negative mindset) कम होता है. साथ ही सकारात्मक ऊर्जा पॉजिटिव एनर्जी (positive energy) का संचार होता है. उनका कहना है कि स्कूल में भी बच्चों को शुरू से ही क्लास में जोर से पढ़कर सुनाने की आदत डाली जाती है.
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कैसे हुई स्टडी
इस स्टडी में करीब 65 हजार 83 बच्चों के हेल्थ डाटा का विश्लेषण किया गया. इनमें सभी प्रतिभागियों की उम्र 5 से 6 साल थी, जिन्होंने प्राइमरी स्कूल में एडमिशन लिया था. इसमें से करीब 3 हजार 414 हाई रिस्क वाले बच्चों की पहचान की गई, जिन्होंने दुर्व्यवहार यानी मिसबिहेवियर (misbehavior) का अनुभव किया था.
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ऑस्ट्रेलिया में साल 2021 में करीब 3 लाख से ज्यादा बच्चों को चाइल्ड प्रोटेक्शन इन्फॉर्मेशन भेजी गईं. इनमें से 105,000 की जांच की जा रही है. वहीं, 50 हजार से ज्यादा बच्चे शोषण का शिकार हुए हैं. प्रोफेसर लियोनी सेगल (Professor Leonie Segal) ने कहा कि नतीजे बताते हैं कि लड़कियों की तुलना में लड़कों के विकास में पिछड़ने का रिस्क ज्यादा रहता है, इसलिए लड़कों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.
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