The Broken News Review: टूटी फूटी वेब सीरीज होने के बावजूद भी कहीं कहीं तार्किक है


न्यूज टेलीविजन चैनल की विश्वसनीयता पिछले कुछ वर्षों से संदेह के घेरे में है. इसकी सबसे बड़ी वजह है राजनैतिक पार्टियों का पूंजीपतियों के माध्यम से मीडिया चैनल्स को खरीदना और उन्हें अपने प्रचार के लिए इस्तेमाल करना. प्रतिद्वंद्विता कुछ इस कदर बढ़ गयी है कि न्यूज़ चैनल्स एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. इस दौर में यदि कोई चैनल अच्छी और सच्ची पत्रकारिता करना चाहता है तो उसके दर्शक कम होते जाएंगे, उनको विज्ञापन देने वाले भी उनसे कन्नी काट लेंगे और चैनल मालिक किसी तरह से एडिटोरियल टीम और रेवेन्यू टीम के बीच तालमेल बिठाने में ही लगा रहेगा. 2018 में बीबीसी वन चैनल ने 6 एपिसोड की एक वेब सीरीज प्रदर्शित की थी जिसका नाम था प्रेस. दो अखबारों की आपसी लड़ाई में कैसे सच को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया जाता है ये उस सीरीज का मूल आधार था. इस सीरीज को भारत में रीमेक किया गया और नाम रखा गया ‘द ब्रोकन न्यूज’. इसे हाल ही में ज़ी5 पर प्रदर्शित किया गया है. चंद गलतियों के बावजूद, ये वेब सीरीज दर्शकों को बांध के रखती है. समय हो और न्यूज़ चैनल को चलाने की राजनीति की झलक देखना चाहते हैं तो इसे देख लीजिये.

न्यूज़ चैनल्स की लड़ाई की कहानी में अब कुछ नया बचा नहीं है. दर्शक भी अब इतने समझदार हो गए हैं कि वो जानते हैं कि सब ख़बरें एक तरीके से प्लांट ही की जाती हैं. कोई नैरेटिव बनाया जाता है. हर न्यूज़ किसी को खुश करने के लिए ही दिखाई जाती है. तमाम बिके हुए चैनल्स के बीच एकाध कोई चैनल ऐसा होता है जो न्यूज को न्यूज समझता है, और न्यूज़ के पीछे का सच दिखाने की हिमाकत, हिमायत और हिम्मत करता रहता है. द ब्रोकन न्यूज़ में ऐसे ही दो चैनल्स हैं – आवाज भारती जो कि ईमानदारी से न्यूज दिखाने की कोशिश करता रहता है और दूसरा जोश 24/ 7 जिसका उद्देश्य नैरेटिव सेट करना, हैशटैग चलाना, खबर के बजाये प्रोपोगैंडा चलाना और न्यूज के जरिये समाज और देश में हलचल और सेंसेशन फैलाना है. आवाज भारती की एडिटर हैं सोनाली बेंद्रे, और उनकी साथी हैं श्रेया पिलगांवकर. जोश के एडिटर हैं जयदीप अहलावत. ज़ाहिर है जोश नंबर 1 है और आवाज भारती बंद होने की कगार पर है. दोनों चैनल्स के काम करने के तरीके अलग अलग हैं. दोनों चैनल्स में काम करने वाले लोगों की क्वालिटी भी अलग अलग है. दोनों ही चैनल अपने अपने प्राइम टाइम की खबर के लिए काम करते रहते हैं. हर एपिसोड में एक नयी कहानी होने के बावजूद इस सीजन में एक बेहद दिलचस्प मोड पर कहानी रोकी गयी है. उम्मीद है कि दूसरा सीजन बनाया जाएगा. हालांकि बीबीसी वाले ‘प्रेस’ का दूसरा सीजन नहीं बन पाया है.

जयदीप अहलावत अपनी शक्ल और कद काठी के बावजूद किसी भी रोल में आसानी से घुल मिल जाते हैं. उनके अधिकांश रोल एक हरियाणवी जाट होने का आभास देते हैं लेकिन इस बार वो एक बंगाली न्यूज़ एंकर दीपांकर सान्याल के किरदार में हैं. उनका अग्रेशन, उनकी आवाज, उनका न्यूज प्रस्तुत करने का अंदाज़ और सबसे महत्वपूर्ण, बहैसियत जोश 24/7 के एडिटर जब वो एडिटिंग टीम की मीटिंग में टीआरपी के लिए दिलचस्प किस्म के हथकंडे अपनाते हैं तो वो एक खूंखार, क्रूर और सिर्फ निर्दिष्ट की और केंद्रित एडिटर नजर आते हैं. जयदीप सहज अभिनेता हैं. गैंग्स ऑफ़ वासेपुर, कमांडो, पाताल लोक हो या अजीब दासतांस, जयदीप का रूखा सा और खड्डों से भरा चेहरा अचानक ही उन्हें ओम पुरी वाली श्रेणी में ला खड़ा करता है. वेब सीरीज में जब वो चैनल के मालिक आकाश खुराना को प्रतिउत्तर देते हैं या फिर जब प्रदेश के गृह मंत्री के सामने अपने अंदाज़ में बिना डरे उन्हें बेइज़्ज़त करते हैं, उस से उनके किरदार के साथ साथ उनकी अभिनय की गहराई का अनुमान लगाना बड़ा आसान है. आवाज़ चैनल की एडिटर बनी हैं सोनाली बेंद्रे. पत्रकारिता के आदर्शों और व्यावसायिक मजबूरियों के बीच तानी हुई रस्सी पर एक एक कदम संभल कर रखती सोनाली से इस तरह से अभिनय की अपेक्षा नहीं थी. बतौर हीरोइन उनके अधिकांश रोल नाच गाने या रोमांस वाले रहे हैं. एडिटर के रोल में उनकी संजीदगी सुखद है. श्रिया पिलगांवकर के लिए ज़्यादा शब्द नहीं हैं जबकि वो इस सीरीज की मुख्य कलाकार हैं और जयदीप के सामने खड़ी हैं. कुछ बात है जिस वजह से वो अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे पाती. संभव है कि वो हीरोइन के रोल चाहती हैं और निर्माता- निर्देशक उन्हें संजीदा किस्म के रोल देते हैं. एक और बात है जो श्रिया के अभिनय पर अक्सर हावी हो जाती है वो है उनके अत्यंत प्रतिभाशाली और सफल माता पिता। इस वेब सीरीज में वो एक रिपोर्टर बनी हैं जो प्राइम टाइम एंकर का काम खो चुकी हैं और फिर से उसे पाना भी चाहती हैं लेकिन उनके मन में सच्ची पत्रकारिता को लेकर इतने खूबसूरत आदर्श हैं कि वो अपनी महत्वकांक्षाओं को काम के आड़े नहीं आने देना चाहती. एक एपिसोड में जब वो एक नवोदित पत्रकार को शराब के नशे में सेड्यूस करना चाहती हैं तो बड़ी असहज लगती हैं. कुछ और कलाकार भी हैं जैसे छोटे से रोल में किरण कुमार, आकाश खुराना और इंद्रनील सेनगुप्ता.

द ब्रोकन न्यूज़ के ओरिजिनल ‘प्रेस’ के लेखक/ रचयिता माइक बार्टलेट को दर्शकों के साथ साथ समीक्षकों ने कुछ खास पसंद नहीं किया था उसकी वजह थी कि ब्रिटेन का मीडिया परिवेश बहुत बदल चुका है जबकि भारत के मीडिया परिवेश अभी भी टैब्लॉइड जर्नलिज्म से क्लिक बैट जर्नलिज्म के बीच में झूल रहा है. ज़ी5 के लिए कार्टेल जैसा एक निहायत ही लचर शो लिखने वाले संबित मिश्रा ने माइक बार्टलेट की सीरीज का भारतीयकरण किया है और काफी अच्छा लिखा है. किरदार भरोसे के लायक हैं, विश्वसनीय हैं. जैसा कि हमारी ज़िन्दगी में होता है, किसी एक किरदार से इतनी घृणा नहीं होती कि उस से दुश्मनी हो जाए. एक समय पर अपनी पत्रकारिता को हारता देख श्रिया, अपना चैनल और सोनाली बेंद्रे को छोड़ कर जयदीप और उनका चैनल जॉइन कर लेती हैं. जैसे ही गलती का एहसास होता है वो सोनाली के पास लौट आती हैं. इस पूरी प्रक्रिया में वो जयदीप से नाखुश हैं लेकिन घृणा नहीं करती. दुश्मनी नहीं करती. निजी तौर पर दोनों एक दूसरे की प्रोफेशनल ज़िन्दगी से प्रभावित हैं लेकिन दोनों में कोई रोमांस नहीं है. सोच अलग होने की वजह से काम करने का तरीका अलग है. अधिकांश वेब सीरीज में यही कनफ्लिक्ट दुश्मनी में बदल जाता है. लेखक का साधुवाद कहना चाहिए कि उन्होंने सच दिखाया है. जयदीप के टूटे हुए परिवार और पैसा दे कर खरीदे हुए प्यार के दृश्य भी इतनी नफासत से रचे गए हैं कि जयदीप के अंदर अपनी पत्नी के लिए भरी हुई नफरत परदे पर बिखर जाती है लेकिन बेटी के सामने आते ही जयदीप एक अलग रूप में नजर आते हैं.

निर्देशक विनय वैकुल ने इसके पहले रवीना टंडन वाली वेब सीरीज आरण्यक निर्देशित की थी. विनय अब एक लाजवाब निर्देशक के तौर पर उभर रहे हैं. उनकी पहली दो वेब सीरीज मिशन ओवर मार्स और द टेस्ट केस भी काफी अलग किस्म की कहानियां थीं लेकिन उनकी पटकथा में काफी फार्मूला वाले तत्व घुसाए गए थे. आरण्यक और द ब्रोकन न्यूज में विनय अच्छा प्रयोग कर रहे हैं. उनकी माध्यम पर पकड़ उन्हें जल्द ही बेहतरीन पहचान दिलाएगी. द ब्रोकन न्यूज़ में सबसे शक्तिशाली इस्तेमाल किया गया है तर्क का. मीडिया पर आधारित वेब सीरीज में कुतर्क का विशेष स्थान होता है, और ड्रामा के नाम पर तर्कविहीनता का लेकिन ये वेब सीरीज ऐसा करने से बचती है. अधिकांश दृश्यों को देखते हुए लगता है कि है अजूबा नहीं है. इस वेब सीरीज को देखने की सबसे बड़ी वजह भी यही है. दूसरा सीजन आएगा ऐसी सम्भावना है लेकिन माइक बार्टलेट के ‘प्रेस’ का दूसरा सीजन नहीं आया था इसलिए इसे नयी कहानी के ज़रिये आगे बढ़ाया जाएगा. ज़ी5 के लिए ये सीरीज शायद दर्शकों का तूफ़ान न खड़ा कर सके लेकिन इसे ज़ी5 की बेहतरीन प्रस्तुतियों में जरूर गिना जाएगा.

Tags: Film review, Sonali Bendre, Zee5

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