सब्सिडी से किसानों पर नहीं पड़ता महंगे उर्वरक का बोझ, अन्‍य देशों के दाम देखकर उड़ जाएंगे होश!


नई दिल्‍ली. रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) के बीच ग्‍लोबल मार्केट में बढ़ती उर्वरक की कीमतों को थामने के लिए मोदी सरकार एक बार फिर किसानों की संकटमोचन बन गई है. किसानों पर महंगे उर्वरक का बोझ घटाने के लिए सरकार इस साल सब्सिडी दोगुना करने पर विचार कर रही है.

ऐसे में सवाल उठता है कि अगर सरकार सब्सिडी के रूप में किसानों को महंगाई का कवच नहीं देती तो यूरिया, पोटाश, डीएपी जैसे जरूरी उर्वरकों के दाम कहां पहुंच जाते और क्‍या भारतीय किसान इतने महंगे उर्वरक का इस्‍तेमाल करने में सक्षम हो पाते. इसकी तुलना करने के लिए जब पड़ोसी व अन्‍य बड़े देशों के साथ उर्वरक की कीमतों की तुलना की तो पता चला कि वहां भारतीय मूल्‍य के लिहाज से कई गुना महंगी कीमत पर किसानों को खाद मिलती है.

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चीन में आठ गुना महंगी है यूरिया
किसान खेतों में सबसे ज्‍यादा यूरिया का इस्‍तेमाल करते हैं. भारत में किसानों को 50 किलोग्राम की यूरिया की बोरी 266.70 रुपये में मिलती है. पड़ोसी देश पाकिस्‍तान में यह 791 रुपये और बांग्‍लादेश में 719 रुपये में मिल रही है. चीन में तो यह भारत के मुकाबले करीब आठ गुना महंगा 2,128 रुपये में मिल रहा है. ब्राजील में 3,600 रुपये तो अमेरिका में 3,060 रुपये दाम है. इंडोनेशिया में यूरिया की कीमत 593 रुपये है.

डीएपी का भी यही हाल
भारत में डाई अमीनो फॉस्‍फेट (डीएपी) की 50 किलोग्राम की बोरी 1,200 से 1,350 रुपये में मिल जाती है. पड़ोसी देश पाकिस्‍तान में यह 4 हजार रुपये से ज्‍यादा कीमत है, जबकि ब्राजील में भी इतने ही रेट में मिल रहा है. चीन में इसकी कीमत भारत के मुकाबले दोगुनी है, जबकि इंडोनेशिया डीएपी की एक बोरी 9,700 रुपये में मिलती है.

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90 फीसदी आयात पर निर्भर है भारत
भारत में किसानों को इतनी सस्‍ती दरों पर डीएपी और पोटाश जैसे उर्वरक तब मिल रहे हैं, जबकि हम अपनी कुल जरूरत का 90 फीसदी आयात करते हैं. दरअसल, डीएपी और पोटाश जैसे उर्वरक बनाने में फॉस्‍फेट की चट्टानों (Rock Phosphate) का इस्‍तेमाल होता है. युद्ध के बाद उपजे हालातों की वजह से ग्‍लोबल मार्केट में इनकी कीमतें 40 फीसदी से भी ज्‍यादा बढ़ गई हैं, जिसका असर घरेलू बाजार पर भी दिखने लगा है.

ऐसे समझें सब्सिडी का गणित
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में यूरिया की कीमत बढ़कर 4,000 रुपये पहुंच गई है, लेकिन सरकार इस खर्च का करीब 3,700 रुपये खुद वहन करती है और किसानों को 266 रुपये में 50 किलो की बोरी दे रही है. इसी तरह, डीएपी की एक बोरी की कीमत ग्‍लोबल मार्केट में 4,200 रुपये पहुंच गई, जो भारतीय किसानों को 1,350 रुपये से भी कम कीमत पर मिल रही.

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सरकार बना रही बड़ा भंडार
मामले से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सरकार रबी और खरीफ सीजन में किसानों को उर्वरक उपलब्‍ध कराने और ग्‍लोबल मार्केट की बढ़ती कीमतों से बचने के लिए बड़ा भंडार तैयार कर रही है. इसके लिए करीब 70 लाख टन यूरिया की खरीद होगी जबकि 30 लाख टन डीएपी का भंडार बनाया जा रहा. सरकार ने पिछले सात साल से यूरिया की कीमत नहीं बढ़ाई है, ताकि किसानों पर बोझ न पड़े.

Tags: Modi government, Russia ukraine war, Subsidy, Urea production

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