वैश्विक स्तर पर दिख रहा मुद्रास्फीति का प्रभाव, अगले हफ्ते इन 5 कारकों से तय होगी वैश्विक बाजारों की दिशा


नई दिल्ली. वैश्विक बाजारों पर मुद्रास्फीति का दबाव साफ दिखाई दे रहा है. विभिन्न केंद्रीय बैंकों द्वारा रेट्स पर लिए जा रहे फैसले इसी का एक नमूना हैं. वहीं, आपूर्ति श्रृंखला बाधित होने से कच्चे तेल की उपलब्धता में जो गिरावट आई है वह नीति निर्माताओं के लिए सिरदर्द बनी हुई है.

निवेशक अगले हफ्ते अमेरिकी केंद्रीय बैंक से रेट्स में कटौती की उम्मीद कर रहे होंगे. उन्हें चीन में मंदी को लेकर ज्यादा चिंता नहीं है. उनका ध्यान आगामी व्यापार आंकड़ों पर अधिक है. मनीकंट्रोल के लेख के अनुसार, अगले हफ्ते वैश्विक बाजारों की चाल इन 5 कारकों पर निर्भर करेगी.

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यूएस कन्ज्यूमर प्राइस डेटा
अमेरिकी फेडरेल बैंक के प्रमुख जेरोम पावेल हाल ही में कई बार महंगाई पर चर्चा के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति भवन जा चुके हैं. कंज्यूमर प्राइस डेटा को नीति निर्माण में काफी अहमियत दी जा रही है. इसलिए 10 जून को आने वाले डेटा पर यह निर्भर करेगा कि क्या फेड रेट बढ़ाएगा या घटाएगा. रॉयटर्स के एक पोल के अनुसार मई में कंज्यूमर प्राइस डेटा 0.7 फीसदी रहने का अनुमान है.

ईसीबी द्वारा दरों में वृद्धि
बहुत हद तक संभव है कि महंगाई को काबू में लाने के लिए यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ईसीबी) 11 साल में पहली बार दरों में वृद्धि कर दे. 9 जून को बैंक की बैठक होनी है. खबरों के अनुसार, जुलाई में दरों में 25-50 बेसिस पॉइंट तक की वृद्धि संभव है.

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तेल की मांग में तेजी
चीन द्वारा अपनी इकोनॉमी को फिर से शुरू करने के बाद अब तेल की मांग में तेजी का अनुमान लगाया जा रहा है. इस साल तेल की कीमतें 50 फीसदी तक बढ़ चुकी हैं. वहीं, ओपेक+ देशों द्वारा तेल का आउटपुट जुलाई-अगस्त में बढ़ाकर 216000 बीपीएस करने से कोई खास मदद मिलती नहीं दिख रही है. यूरोपियन देश आगे रूस से कच्चे तेल का आयात बिलकुल बंद करने की ओर बढ़ रहे हैं जिससे और मुश्किलें होंगी.

चीन में अभी भी भय कायम
भले की चीन ने शंघाई से लॉकडाउन हटा दिया हो लेकिन इसे लेकर भय बरकरार है कि ये आगे किसी और जगह भी लगाया जा सकता है. चीन की क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचा है. 9 जून को आने वाले आंकड़ों से इसके बारे में सटीक जानकारी मिलेगी.

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चारों तरफ सख्ती
चीन में धीमापन, डॉलर की मजबूती, मुद्रास्फीति, रूस का कर्ज और ऊंची ब्याज दरें विकासशील बाजारों के लिए खतरनाक साबित होने वाली हैं. इससे इन देशों की जीडीपी काफी नुकसान होगा लेकिन ब्याज दरों में कमी के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं. चिली, पेरू और पोलैंड 25-75 बेसिस पॉइंट तक दरें बढ़ा सकते हैं. आरबीआई ने मई में अचानक की ब्याज दर बढ़ाई और जून 8 को भी इसके रेपो रेट में फिर से बढ़ोतरी करने का अनुमान है.

Tags: Crude oil, Economy, USA

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