सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान: मध्य प्रदेश में मृत्युदंड दिलाने वाले सरकारी वकीलों को इनाम वाली नीति की करेगा जांच


सार

सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में लाया गया कि एमपी में इस तरह की नीति है कि आरोपियों को सफलतापूर्वक मृत्युदंड दिलाने वाले सरकारी वकीलों को इनाम या प्रोत्साहन दिया जाता है तो कोर्ट ने राज्य सरकार की वकील से इससे संबंधित दस्तावेज 10 मई को अगली सुनवाई पर पेश करने को कहा।

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आरोपियों को ट्रायल कोर्ट में मृत्युदंड की सजा दिलाने वाले सरकारी वकीलों को मध्य प्रदेश सरकार द्वारा इनाम या प्रोत्साहन देने की नीति का सुप्रीम कोर्ट परीक्षण करेगा। कोर्ट ने राज्य सरकार से अगली सुनवाई पर इससे संबंधित दस्तावेज पेश करने को कहा है।

जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्रन भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने स्वत: संज्ञान लेकर वीभत्स आपराधिक मामलों में, जिनमें मृत्युदंड की सजा शामिल है, साक्ष्य जुटाने की प्रक्रिया की जांच और उन्हें व्यवस्थित करने संबंधी मामले की सुनवाई शुक्रवार को शुरू की। इस संबंध में कोर्ट ने तब संज्ञान लिया, जब याचिकाकर्ता इमरान ने ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई मृत्युदंड की सजा और एमपी हाईकोर्ट द्वारा उसे बरकरार रखने के खिलाफ चुनौती दी।

सुनवाई के दौरान जब सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में लाया गया कि एमपी में इस तरह की नीति है कि आरोपियों को सफलतापूर्वक मृत्युदंड दिलाने वाले सरकारी वकीलों को इनाम या प्रोत्साहन दिया जाता है तो कोर्ट ने राज्य सरकार की वकील से इससे संबंधित दस्तावेज 10 मई को अगली सुनवाई पर पेश करने को कहा।

सर्वोच्च न्यायालय की पीठ इसकी जांच कर रही है कि अदालतें कैसे मृत्युदंड निर्धारित करने वाले मामलों में आरोपियों और अपराध का परीक्षण करती हैं, खासकर कमजोर मामलों में न्यायिक अधिकारी कैसे निर्धारित करते हैं कि अपराध मृत्युदंड के योग्य है या नहीं?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस तरह से राज्यों में सरकारी वकील होते हैं, उसी तर्ज पर आरोपियों को उचित कानूनी सलाह उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) को देश के हर जिले में डिफेंस काउंसिल या पब्लिक डिफेंडर ऑफिस खोलने चाहिए। कोर्ट ने बताया कि हम ऐसी व्यवस्था के बारे में सोच भी रहे हैं।

विस्तार

आरोपियों को ट्रायल कोर्ट में मृत्युदंड की सजा दिलाने वाले सरकारी वकीलों को मध्य प्रदेश सरकार द्वारा इनाम या प्रोत्साहन देने की नीति का सुप्रीम कोर्ट परीक्षण करेगा। कोर्ट ने राज्य सरकार से अगली सुनवाई पर इससे संबंधित दस्तावेज पेश करने को कहा है।

जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्रन भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने स्वत: संज्ञान लेकर वीभत्स आपराधिक मामलों में, जिनमें मृत्युदंड की सजा शामिल है, साक्ष्य जुटाने की प्रक्रिया की जांच और उन्हें व्यवस्थित करने संबंधी मामले की सुनवाई शुक्रवार को शुरू की। इस संबंध में कोर्ट ने तब संज्ञान लिया, जब याचिकाकर्ता इमरान ने ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई मृत्युदंड की सजा और एमपी हाईकोर्ट द्वारा उसे बरकरार रखने के खिलाफ चुनौती दी।

सुनवाई के दौरान जब सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में लाया गया कि एमपी में इस तरह की नीति है कि आरोपियों को सफलतापूर्वक मृत्युदंड दिलाने वाले सरकारी वकीलों को इनाम या प्रोत्साहन दिया जाता है तो कोर्ट ने राज्य सरकार की वकील से इससे संबंधित दस्तावेज 10 मई को अगली सुनवाई पर पेश करने को कहा।

सर्वोच्च न्यायालय की पीठ इसकी जांच कर रही है कि अदालतें कैसे मृत्युदंड निर्धारित करने वाले मामलों में आरोपियों और अपराध का परीक्षण करती हैं, खासकर कमजोर मामलों में न्यायिक अधिकारी कैसे निर्धारित करते हैं कि अपराध मृत्युदंड के योग्य है या नहीं?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस तरह से राज्यों में सरकारी वकील होते हैं, उसी तर्ज पर आरोपियों को उचित कानूनी सलाह उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) को देश के हर जिले में डिफेंस काउंसिल या पब्लिक डिफेंडर ऑफिस खोलने चाहिए। कोर्ट ने बताया कि हम ऐसी व्यवस्था के बारे में सोच भी रहे हैं।



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