US: अफगानिस्तान, ताइवान और अब जवाहिरी…राष्ट्रपति बनने के बाद लगातार बदल रहा बाइडन का रुख, जानें क्या है वजह


ख़बर सुनें

अमेरिका ने बीते कुछ समय में अपने रुख में बड़े बदलाव किए हैं। खासकर उन मुद्दों पर जिन्हें लेकर मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन का रुख कभी बचावपूर्ण या अपनी पार्टी नेतृत्व के ही खिलाफ होता था। फिर चाहे वह सऊदी अरब का मुद्दा हो या रूस जैसे देशों पर प्रतिबंधों की राजनीति का मामला हो। दूसरे देशों के खिलाफ युद्ध छेड़ने का मसला हो या आतंकी संगठनों और आतंकियों पर कार्रवाई की बात हो। बाइडन इन सभी मुद्दों पर राष्ट्रपति रहते हुए यू-टर्न ले चुके हैं।

बाइडन की ओर से हालिया समय में जिन चीजों को लेकर रुख बदला गया है, उनमें संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी को ताइवान भेजने और अल-जवाहिरी को मार गिराने जैसे मिशन का जिक्र जरूरी है। आइये जानते हैं कि वे कौन से मुद्दे हैं, जिन पर बाइडन पहले से ज्यादा आक्रामक हुए हैं। हम आपको उन मसलों के बारे में भी बताएंगे, जिन पर बाइडन ने अपना रुख पहले से नरम किया है। इसके अलावा बाइडन की ओर से अपने स्टैंड को लेकर यह बदलाव क्यों किए जा रहे हैं, इसके बारे में भी जानना अहम है…
पहले जानें- राष्ट्रपति बनने के बाद से किन मुद्दों पर बदला बाइडन का रुख

1. आतंकियों पर कार्रवाई 
2020 में राष्ट्रपति पद संभालने के बाद से बाइडन ने जिन मुद्दों को लेकर अपना रुख बदला है, उनमें सबसे ऊपर है अलकायदा के सरगनाओं पर कार्रवाई। हाल ही में अमेरिका ने अपने ड्रोन को अफगानिस्तान के काबुल में भेज कर अलकायदा के सरगना अयमन अल-जवाहिरी को मौत के घाट उतार दिया। बाइडन ने खुद इसका श्रेय लेते हुए ट्वीट में कहा कि उनके निर्देश पर अमेरिका ने काबुल में एयर स्ट्राइक की और अलकायदा के प्रमुख जवाहिरी को मार गिराया। उन्होंने कहा कि मैंने अमेरिकी लोगों को वादा किया था कि हम आतंकियों को कहीं से भी ढूंढकर निकालेंगे और मार गिराएंगे। 

पहले क्या था रुख?
चौंकाने वाली बात यह है कि बराक ओबामा के राष्ट्रपति रहने के दौरान जब जो बाइडन खुद उपराष्ट्रपति थे, तब उन्होंने ओसामा बिन लादेन के खिलाफ चलाए गए एबटाबाद ऑपरेशन का विरोध किया था। यह खुलासा खुद ओबामा ने बाद में अपनी किताब ‘अ प्रोमिस्ड लैंड’ में किया था। ओबामा के इस दावे को खुद बाइडन ने कभी नहीं नकारा।
2. ताइवान की सुरक्षा
अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे ने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी है। पेलोसी ने चीन की धमकियों को नजरअंदाज करते हुए कहा कि वे ताइवान की स्वायत्ता और लोकतंत्र के साथ खड़ी हैं। पेलोसी के ताइवान दौरे को खुद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का जबरदस्त समर्थन मिला। उन्होंने कई मौकों पर यह भी कहा कि ताइवान के पास स्वायत्ता का पूरा अधिकार है और अमेरिका उसकी रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। हालांकि, इसे लेकर बाद में व्हाइट हाउस को सफाई तक जारी करनी पड़ी थी।  

पहले क्या था रुख?
हालांकि, बाइडन का रुख हमेशा से ऐसा नहीं था। 2001 में जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने ताइवान की रक्षा को लेकर प्रतिबद्धता जाहिर की थी तो वे बाइडन ही थे, जिन्होंने बुश के बयान को चौंकाने वाला बताया था। बाइडन ने तब कहा था कि ताइवान को लेकर बुश का यह बयान ‘काफी ज्यादा’ था। इतना ही नहीं बाइडन ने आरोप लगाया था कि ताइवान को लेकर अमेरिका की नीति काफी अस्पष्ट होती जा रही है। उन्होंने साफ किया था कि अमेरिका ताइवान की रक्षा के लिए किसी भी संधि से नहीं बंधा है। 
3. सऊदी अरब को सजा
अमेरिकी राष्ट्रपति रहते हुए जो बाइडन ने पिछले महीने ही सऊदी अरब का दौरा किया था। अपने इस दौरे में उन्हें सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद सलमान के साथ घूमते और बातचीत करते देखा गया था। बाइडन ने इस बैठक के बाद कहा था कि उन्होंने पत्रकार जमाल खशोगी की मौत को लेकर सऊदी प्रिंस से बात की और उन्हें इस हत्याकांड के लिए जिम्मेदार ठहराया। हालांकि, बाइडन ने सऊदी प्रिंस पर किसी तरह की कार्रवाई की बात नहीं की। 

पहले क्या था रुख?
मजेदार बात यह है कि 2019 में जब जो बाइडन राष्ट्रपति पद के लिए प्रचार अभियान में हिस्सा ले रहे थे, तब उन्होंने खशोगी की मौत और सऊदी अरब के मुद्दे पर तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर जमकर निशाना साधा था। बाइडन ने कहा था कि अगर वे राष्ट्रपति बने तो न सिर्फ सऊदी अरब को कीमत चुकानी होगी, बल्कि उन्हें इसकी जिम्मेदारी भी लेनी होगी। बाइडन ने इस दौरान साफ किया था कि उनका सबसे पहला काम सऊदी को अलग-थलग करना और पत्रकार की हत्या के जिम्मेदारों को सजा दिलाना होगा। 
4. महिलाओं के गर्भपात के अधिकार पर
इसी साल जून में जब अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को मर्जी से गर्भपात का अधिकार देने वाले अपने एक फैसले को पलट दिया था, तब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा था कि उनका प्रशासन अबॉर्शन के अधिकारों की रक्षा के लिए हर कदम उठाएगा। बाइडन ने गर्भपात को प्रतिबंधित करने के राज्यों के अधिकार को बहाल करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अदालत और देश के लिए एक दुखद दिन करार दिया। उन्होंने कहा था कि यह निर्णय अंतिम शब्द नहीं होना चाहिए।

पहले क्या था रुख?
ऐसा नहीं है कि जो बाइडन हमेशा से गर्भपात के अधिकारों के बड़े समर्थक रहे हैं। 1973 में जब सुप्रीम कोर्ट ने रो बनाम वेड के मामले में महिलाओं के अबॉर्शन को कानूनी तौर पर वैध बनाया था (इसी फैसले को 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने पलटा) तब जो बाइडन के बयान आज से उलट थे। बाइडन ने तब कहा था- “मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट का महिलाओं को गर्भपात का अधिकार का फैसला ‘काफी ज्यादा हो गया।’ इसके बाद 1981 में बाइडन ने उस संशोधन के भी पक्ष में वोट किया, जिसके जरिए राज्यों को यह अधिकार मिले कि वे सर्वोच्च न्यायालय का फैसला पलट सकें।” राष्ट्रपति बनने से पहले तक तो बाइडन यहां तक कह चुके थे कि वे उस संशोधन का समर्थन करते रहेंगे, जिसके तहत गर्भपात के लिए सरकारी इंश्योरेंस के पैसे का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
5. अफगानिस्तान से सेना लौटाने पर
डेमोक्रेट पार्टी और जो बाइडन ने 2021 में अब तक का सबसे चौंकाने वाला फैसला किया और अफगानिस्तान में तैनात सेना को पूरी तरह वापस बुलाने का एलान कर दिया। इसके लिए अमेरिका की तरफ से 11 सितंबर 2021 की तारीख भी मुकर्रर कर दी गई।  हालांकि, अमेरिकी सेना ने इससे पहले ही अफगानिस्तान से पूरी तरह वापसी कर ली। इसी के साथ बाइडन ने एलान किया कि उन्होंने 2002 में शुरू की गई एक अनंत युद्ध (फॉरेवर वॉर) को खत्म कर दिया। 

पहले क्या था रुख?
ऐसा माना जाता है कि जो बाइडन का यह फैसला पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ही सीरिया, इराक और अफगानिस्तान से अच्छी-खासी संख्या में सैनिकों को वापस बुलाने के निर्णय का अगला चरण था। लेकिन बाइडन का रुख सैनिकों को कभी भी पूरी तरह वापस बुलाने से नहीं जुड़ा था। यहां तक कि बाइडन ने राष्ट्रपति चुनाव से पहले तक यही कहा था कि वे अफगानिस्तान से भी कभी पूरी तरह सैनिकों के नहीं निकालेंगे और कम से 1500 से 2000 सैनिकों को वहां छोड़ेंगे। बाइडन ने अमेरिकी मिलिट्री अखबार स्टार्स एंड स्ट्राइप्स से कहा था कि वे भी ट्रंप की तरह इन अनंत युद्धों का अंत करना चाहते हैं, लेकिन इसमें एक समस्या है। हमें अभी भी आतंकवाद की चिंता करनी पड़ेगी। हालांकि, राष्ट्रपति बनने के एक साल बाद ही बाइडन ने अफगानिस्तान से सेना को पूरी तरह बाहर निकालने का फैसला कर लिया।
1. अमेरिकी नागरिकों का राष्ट्रपति पर लगातार गिरता विश्वास
अमेरिका के लिए अहमियत वाले कई मुद्दों पर बाइडन के रुख ने भी जनता को नाराज किया है। रियल क्लियर पॉलिटिक्स की ओर से हाल ही में कराए गए एक सर्वे में सामने आया कि 75 फीसदी अमेरिकी मानते हैं कि बाइडन के नेतृत्व में अमेरिका गलत मार्ग पर बढ़ रहा है। इसके मुकाबले सिर्फ 18 फीसदी लोगों को लगता है कि अमेरिका सही रास्ते पर है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिकियों की यह राय कि देश सही राह पर नहीं है, पिछले 13 वर्षों से 50 फीसदी से ऊपर ही रही है, लेकिन बाइडन के कार्यकाल में यह नकारात्मक राय करीब तीन-चौथाई लोगों की है। 

सर्वे एजेंसी Ipsos के मुताबिक, अगस्त में बाइडन की अप्रूवल रेटिंग 38 फीसदी है। यानी जहां 38 फीसदी लोग उनके कामकाज से खुश हैं, वहीं 57 फीसदी अमेरिकियों ने उके काम से असंतुष्टि जाहिर की है। उनकी अप्रूवल रेटिंग पिछले साल अगस्त (अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना के पूरी तरह निकलने के बाद) से ही 50 फीसदी के नीचे बनी हुई है। इस साल मई में तो महज 36 फीसदी लोग ही बाइडन के कामकाज से खुश थे। 

बाइडन के खिलाफ नकारात्मकता बढ़ाने में महंगाई भी बड़ी भूमिका निभा रही है। अमेरिका में महंगाई दर 1980 के बाद से सबसे ऊंचे स्तर पर है। इसके अलावा बढ़ते तेल के दामों को लेकर भी सिर्फ 28 फीसदी अमेरिकी ही बाइडन से खुश हैं। 
2. डेमोक्रेट पार्टी में बगावत के सुर
खुद डेमोक्रेट पार्टी के 69 से 76 फीसदी नेताओं ने ही जुलाई में Ipsos/Reuters, YouGov/The Economist और Morning Consult द्वारा कराए गए सर्वे में बाइडन के कामकाज पर संतुष्टि जताई थी। यानी पार्टी के करीब 24 से 31 फीसदी नेता बाइडन का खास समर्थन नहीं करते। अगर ट्रंप से तुलना की जाए तो बाइडन की अप्रूवल रेटिंग अभी भी डोनाल्ड ट्रंप के सबसे निचले स्तर (2017 में महज 33 फीसदी) से काफी ऊपर है। लेकिन जहां 2018 में इसी दौरान ट्रंप के पास रिपब्लिकन पार्टी के 84 से 88 फीसदी सदस्यों का समर्थन था, वहीं बाइडन के प्रति उनकी पार्टी में ही वफादारी घटी है। 
3. मध्यावधि चुनाव
अमेरिका में इस साल के अंत में ही मध्यावधि चुनाव होने हैं। इन चुनावों में अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की सभी 435 सीटों और सीनेट की 35 सीटों के लिए चुनाव होने हैं। दरअसल, निचले सदन के सांसदों का कार्यकाल दो साल का होता है और सीनेट के सांसदों का कार्यकाल छह साल का होता है। ऐसे में अमेरिका में हर दो साल में हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की 435 सीटों और सीनेट की एक-तिहाई सीटों यानी 100 में से 35 सीटों के लिए चुनाव होता है। पिछली बार यह चुनाव राष्ट्रपति चुनाव के साथ हुए थे। हालांकि, अब राष्ट्रपति बाइडन का आधा कार्यकाल पूरा हो जाने के बाद दिसंबर 2022 में फिर संसद की सीटों पर चुनाव होंगे। इसीलिए इन चुनावों को मध्यावधि चुनाव कहा जाता है। दरअसल, यह चुनाव राष्ट्रपति के चार साल के कार्यकाल के आधे के पूरे हो जाने पर उनकी लोकप्रियता और कामकाज की प्रभावशीलता परखने का एक तरीका हैं। 
अब चूंकि जो बाइडन की अप्रूवल रेटिंग लगातार एक साल से 50 फीसदी के नीचे बनी हुई हैं, इसलिए डेमोक्रेट पार्टी में हलचल का माहौल है। हाल ही में बाइडन ने जिन मुद्दों पर पलटी मारी है, उन्हें लेकर अमेरिकी जनता लगातार नाराजगी जाहिर करती रही है। इसके अलावा महंगाई और रूस-यूक्रेन युद्ध को सुलझा पाने में नाकामी बाइडन के लिए और मुश्किल बढ़ाने वाली साबित हुई है। इसे देखते हुए बाइडन उन मुद्दों पर तुरंत अपने रुख में बदलाव कर रहे हैं, जिनके जरिए वे वोट बटोर सकें। मसलन…

1. अलकायदा आतंकी अल-जवाहिरी के खिलाफ ऑपरेशन चलाकर उसे मार गिराने को बाइडन लगातार उपलब्धि की तरह पेश कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि जिस तरह ओबामा ने ओसामा बिन लादेन को मारने के ऑपरेशन का श्रेय लेकर डेमोक्रेट पार्टी को मजबूत किया था, उसी तरह वे भी जवाहिरी को मारने के वादे को याद दिलाकर मध्यावधि चुनाव में वोट हासिल कर सकेंगे। 

2. रूस की ओर से यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़े जाने और ताइवान-दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर चीन की ओर से बार-बार अमेरिका को आंख दिखाए जाने के मुद्दे पर भी बाइडन अपने ही देश में घिरे थे। विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी के कई नेताओं ने उन्हें कमजोर और निर्णय ले पाने में अक्षम राष्ट्रपति तक करा दे दिया था। हालांकि, नैंसी पेलोसी को ताइवान भेजकर और चीन द्वारा किसी आक्रामक गतिविधि का जवाब देने की बात कह कर बाइडन अमेरिकी जनता के बीच ही अपनी छवि मजबूत करने में जुटे हैं। इसी तरह रूस के खिलाफ यूक्रेन को लगातार मदद मुहैया कराकर बाइडन यह भी विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे अपने किसी भी साथी को पीछे नहीं छोड़ रहे। 
3. हाल ही में जो बाइडन के सऊदी अरब के दौरे को लेकर जब विवाद उठने शुरू हुए तो उन्होंने साफ किया था कि वे सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद सलमान के सामने पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या का मुद्दा उठाएंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति ने आधिकारिक बैठक में ऐसा किया भी और संदेश दिया कि पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप की तरह वे मानवाधिकार का उल्लंघन करने वाले देशों को छोड़ेंगे नहीं, बल्कि सवाल उठाना जारी रखेंगे। 

4.  अमेरिकी राष्ट्रपति ने गर्भपात कानून पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद इसे महिलाओं का अधिकार बताकर कानून बनाने की बात कही है। बाइडन ने कहा है कि आगामी मध्यावधि चुनाव के जरिए वोटर्स यह चुन सकते हैं कि वे अपने राज्य में गर्भपात का अधिकार देने वाला कानून चाहते हैं या नहीं। उन्होंने वादा किया है कि अगर हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स और सीनेट में डेमोक्रेट पार्टी का बहुमत रहता है तो वे गर्भपात के अधिकार के लिए कानून बनाएंगे। अपने इस कदम के जरिए वे मध्यावधि चुनाव से पहले ही महिला वोटर्स को अपनी ओर खींचना चाहते हैं। 

5. अफगानिस्तान से सेना को पूरी तरह वापस बुलाने के मुद्दे पर बाइडन बुरी तरह घिरे हैं। हालांकि, जवाहिरी के खिलाफ ऑपरेशन चलाकर उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की है कि अमेरिकी सैनिक भले ही उस देश को छोड़ चुके हों, लेकिन अमेरिका की नजर हमेशा वहां मौजूद आतंकियों को खत्म करने पर रहेगी। बाइडन ने अपने भाषण में भी अफगानिस्तान का साथ देने की बात कही। इतना ही नहीं, वे यह भी संदेश दे रहे हैं कि अफगानिस्तान से सैनिकों को निकालने का फैसला बिल्कुल सही था, क्योंकि वे इस देश में अपने अमेरिकी जवानों की बलि के खिलाफ थे। 

विस्तार

अमेरिका ने बीते कुछ समय में अपने रुख में बड़े बदलाव किए हैं। खासकर उन मुद्दों पर जिन्हें लेकर मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन का रुख कभी बचावपूर्ण या अपनी पार्टी नेतृत्व के ही खिलाफ होता था। फिर चाहे वह सऊदी अरब का मुद्दा हो या रूस जैसे देशों पर प्रतिबंधों की राजनीति का मामला हो। दूसरे देशों के खिलाफ युद्ध छेड़ने का मसला हो या आतंकी संगठनों और आतंकियों पर कार्रवाई की बात हो। बाइडन इन सभी मुद्दों पर राष्ट्रपति रहते हुए यू-टर्न ले चुके हैं।

बाइडन की ओर से हालिया समय में जिन चीजों को लेकर रुख बदला गया है, उनमें संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी को ताइवान भेजने और अल-जवाहिरी को मार गिराने जैसे मिशन का जिक्र जरूरी है। आइये जानते हैं कि वे कौन से मुद्दे हैं, जिन पर बाइडन पहले से ज्यादा आक्रामक हुए हैं। हम आपको उन मसलों के बारे में भी बताएंगे, जिन पर बाइडन ने अपना रुख पहले से नरम किया है। इसके अलावा बाइडन की ओर से अपने स्टैंड को लेकर यह बदलाव क्यों किए जा रहे हैं, इसके बारे में भी जानना अहम है…



Source link

Enable Notifications OK No thanks