देहरादून. उत्तराखंड विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Elections 2022) के लिए इस बार 62.5 फीसदी मतदान हुआ है. इसके साथ सीएम पुष्कर सिंह धामी (CM Pushkar Singh Dhami), हरीश रावत (Harish Rawat), सतपाल महाराज समेत 632 कैंडिडेट्स की किस्मत ईवीएम में बदं हो गयी है. यही नहीं, सूबे में एक ही चरण में हुआ मतदान हरिद्वार और नैनीताल में कुछ राजनीतिक दलों के समर्थकों के बीच मामूली हाथापाई को छोड़कर शांतिपूर्ण रहा है.
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के बाद सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि राज्य की जनता ने आज बढ़-चढ़कर मतदान में भाग लिया और मतदान भी काफी हुआ है, इसलिए मैं उत्तराखंड की जनता का धन्यवाद करता हूं. इसके साथ उन्होंने कहा कि सभी ने शांतिपूर्ण ढंग से मतदान किया है और हम सभी के आभारी हैं. हम आशा करते हैं कि नई सरकार उत्तराखंड का भविष्य स्वर्णिम बनने वाली होगी. बता दें कि साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 57 और कांग्रेस ने 11 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि दो सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार विजयी हुए थे.
इस बार कम हुआ मतदान
बहरहाल, 2017 के विधानसभा चुनाव में 65.56 फीसदी वोट पड़ा था. इस दौरान कांग्रेस को 33.50 फीसदी वोट मिले, लेकिन वह उत्तराखंड के इतिहास में सबसे बुरा प्रदर्शन करते हुए महज 11 सीटों पर सिमट गई थी. वहीं, भाजपा ने 46.50 फीसदी के सहारे 57 सीटें अपने नाम कर ऐतिहासिक जीत हासिल की थी. हालांकि इस बार 62.5 फीसदी ही मतदान हुआ है.
यही नहीं, उत्तराखंड चुनाव आयोग (Uttarakhand State Election Commission) ने कहा कि राज्य के 13 जिलों की सभी 70 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के 11697 मतदेय स्थलों पर मतदान शांतिपूर्वक सम्पन्न हुआ है, जो कि 62.5 फीसदी रहा है. इसके साथ चुनाव अधिकारी ने कहा कि मैं निर्वाचन ड्यूटी में तैनात उन सभी कर्मचारियों औरसुरक्षाकर्मियों का भी आभार व्यक्त करना चाहूंगी, जिन्होंने पूर्ण निष्ठा, ईमानदारी एवं निष्पक्ष पारदर्शिता के साथ अपने पदीय दायित्वों का निर्वहन करते हुए शांतिपूर्ण निर्वाचन प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाई है. इसके साथ कहा कि मैं राज्य के इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिन्ट मीडिया की बहुत-बहुत आभारी हूं. निर्वाचन प्रक्रिया में उनके अतुलनीय सहयोग से प्रत्येक नागरिक / मतदाता की पहुंच सुगम हो सकी.
क्या टूटेगा मिथक?
उत्तराखंड ने पिछले दो दशकों में 11 मुख्यमंत्रियों को देखा है. वहीं, लोगों ने 2000 में राज्य के गठन के बाद से हर विधानसभा चुनाव में मौजूदा सरकार के खिलाफ वोट दिया है. इस चुनाव में भाजपा की तरफ से सीएम पुष्कर सिंह धामी और कांग्रेस की तरफ से हरीश रावत चुनाव प्रचार का चेहरा रहे, लेकिन अब देखने वाली बात है कि 10 मार्च को किसे जीत मिलती है. वैसे प्रदेश में बारी-बारी से दोनों पार्टियों के सत्ता में आने की अब तक की परंपरा को देखते हुए भी इस बार कांग्रेस की उम्मीदों को पंख लगे हुए हैं. दूसरी तरफ भाजपा पिछले पांच साल में विभिन्न क्षेत्रों में शुरू हुई विभिन्न विकास परियोजनाओं के कारण अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है. इसके अलावा धामी के सामने चुनावों में अपनी पार्टी को दोबारा सत्तासीन करने के अलावा उनके पास दूसरी चुनौती मुख्यमंत्रियों के स्वयं चुनाव में हार जाने की परंपरा को भी तोड़ना है. बता दें कि उत्तराखंड में मुख्यमंत्री कभी भी नहीं जीतते. वर्ष 2002 में नित्यानंद स्वामी हारे, 2012 में भुवनचंद्र खंडूरी हारे और 2017 में हरीश रावत दोनों सीटों से हार गए. जबकि उत्तराखंड में पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले एकमात्र मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी ने चुनाव ही नहीं लड़ा था.
कभी नहीं जीते शिक्षा मंत्री
उत्तराखंड में सीएम के अलावा एक मिथक यह भी है कि शिक्षा मंत्री अपना अगला चुनाव नहीं जीत पाता है. तीरथ सिंह रावत, नरेंद्र सिंह भंडारी, गोविंद सिंह बिष्ट, खजान दास और प्रसाद नैथानी इस मिथक को तोड़ने में नाकाम रहे हैं. अब प्रदेश में शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे हैं और वह गदरपुर सीट से मैदान में हैं. वह लगातार चार बार से विधायक हैं. दो बार उन्होंने बाजपुर तो दो बार गदरपुर सीट से चुनाव जीता है.
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