न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: जयदेव सिंह
Updated Sat, 16 Apr 2022 05:27 PM IST
सार
बंगाल में टीएमसी ने आसनसोल लोकसभा सीट भाजपा से छीन ली। वहीं, बालीगंज विधानसभा सीट पर उसका कब्जा बरकरार रहा। बिहार में राजद को फायदा हुआ तो मुकेश सहनी की पार्टी अब राज्य में चार से शून्य सीट पर आ गई।
उपचुनाव 2022
– फोटो : Amar Ujala
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विस्तार
पश्चिम बंगाल की आसनसोल लोकसभा सीट और चार राज्यों की एक-एक विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजे शनिवार को आ गए। सभी पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। इन पांच में से सिर्फ आसनसोल लोकसभा सीट पर इससे पहले भाजपा का कब्जा था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के बाबुल सुप्रियो जीते थे।
पांचों सीटों में क्या रहे नतीजे
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बंगाल की आसनसोल लोकसभा सीट पर टीएमसी से शत्रुघ्न सिन्हा करीब ढाई लाख वोट से जीत गए। उन्होंने भाजपा की अग्निमित्र पॉल को हराया। 2019 के लोकसभा चुनाव में ये सीट भाजपा ने जीती थी।
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बंगाल की बालीगंज विधानसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस के बाबुल सुप्रियो को जीत मिली। बाबुल ने सीपीएम की सायरा शाह हलीम को हराया। सायरा शाह हलीम एक्टर नसीरुद्दीन शाह की भतीजी हैं। ये सीट 2021 विधानसभा चुनाव में टीएमसी से जीते सुब्रत मुखर्जी के निधन की वजह से खाली हुई थी।
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बिहार की बोचहां सीट पर राजद उम्मीदवार अमर पासवान को जीत मिली है। अमर ने भाजपा की बेबी कुमारी को 36 हजार से ज्यादा मतों हराया। ये सीट 2020 में वीआईपी के टिकट पर जीते मुसाफिर पासवान के निधन की वजह से खाली हुई थी। राजद ने उनके बेटे अमर को टिकट दिया था।
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छत्तीसगढ़ की खैरागढ़ सीट पर कांग्रेस की यशोदा वर्मा को जीत मिली है। यशोदा ने भाजपा के कोमल जंघेल को हराया। 2018 के चुनाव में इस सीट पर जनता कांग्रेस के देवव्रत सिंह जीते थे। देवव्रत के निधन की वजह से इस सीट पर उपचुनाव हुए।
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महाराष्ट्र की कोल्हापुर उत्तर सीट पर कांग्रेस की जयश्री जाधव को जीत मिली। उन्होंने भाजपा के सत्यजीत कदम को हराया। ये सीट कांग्रेस विधायक और जयश्री जाधव के पति चंद्रकांत जाधव ने निधन की वजह से खाली हुई थी।
किसे फायदा किसे नुकसान?
बंगाल में टीएमसी ने आसनसोल लोकसभा सीट भाजपा से छीन ली। वहीं, बालीगंज विधानसभा पर उसका कब्जा बरकरार रहा। बिहार में राजद को फायदा हुआ तो मुकेश सहनी की पार्टी अब राज्य में चार से शून्य सीट पर आ गई। छत्तसीगढ़ में कांग्रेस ने खैरगढ़ सीट जनता कांग्रेस से छीन ली। वहीं, महाराष्ट्र में कांग्रेस ने कोल्हापुर उत्तर सीट पर कब्जा बरकरार रखा।
बंगाल चुनाव नतीजों के क्या मायने?
चुनावी सर्वे करने वाली एजेंसी सीएसडीएस के संजय कुमार कहते हैं कि उपचुनाव के नतीजों का दो-तीन ट्रेड है। जैसे- जिस भी राज्य में जो सत्ताधारी पार्टी होती है वो आमतौर पर उपचुनावों में अच्छा करती है। खासतौर पर अगर आम चुनावों में उसकी बहुत बड़ी जीत मिली हो तो उसके लिए उपचुनाव जीतना काफी आसान होता है। पश्चिम बंगाल के चुनाव नतीजे यही दर्शाते हैं।
तो फिर बिहार में सत्ताधारी गठबंधन क्यों नहीं जीता?
संजय कुमार कहते हैं कि अगर किसी पार्टी के सत्ता में आने के ढाई-तीन साल बाद उपचुनाव होते हैं तो उन चुनावों में कई बार सत्ता विरोधी लहर दिखाई देती है। उस पर भी अगर आम चुनाव के दौरान अगर सत्ता में आने वाली पार्टी और विपक्षी पार्टी में कांटे का मुकाबला रहा हो तो भी इस तरह के नतीजे दिखाई देते हैं। बिहार में सत्ताधारी गठबंधन और राजद गठबंधन के बीच 2020 के चुनाव में कांटे का मुकाबला हुआ था।
जहां तक उप चुनाव की बात है तो राजद ने यहां से दिवंगत विधायक मुसाफिर पासवान के बेटे को टिकट देकर सहानभूति भी बटोरने में कामयाब रही। वहीं, वीआईपी को पार्टी में हुई टूट का नुकसान हुआ। वीआईपी ने यहां से राजद के कद्दावर नेता रहे रमई राम की बेटी गीता कुमारी को उम्मीदवार बनाया था। रमई राम 2020 में मुसाफिर पासवान से हारे थे। गीता जमानत बचाने में तो सफल रही लेकिन चुनाव में तीसरे नंबर पर रह गईं। बेबी कुमारी जो 2015 में यहां निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीती थीं। वह भाजपा उम्मीदवार के तौर भी चुनाव लड़ी लेकिन, जीत नहीं दर्ज कर सकीं। संजय कुमार कहते हैं कि इस नतीजे से कम से कम ये जरूर कहा जा सकता है कि जिस क्षेत्र में उपचुनाव हुए हैं वहां, सत्ताधारी गठबंधन को लेकर थोड़ा बहुत असंतोष है। हालांकि, एक सीट के नतीजे को पूरे राज्य पर लागू नहीं किया जा सकता है।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जीत के क्या मायने हैं?
खैरागढ़ सीट पर 2018 के चुनाव में तीसरे नंबर पर रहीं यशोदा वर्मा ने भाजपा के कोमल जंघेल को 20 हजार से ज्यादा मतों हराया। 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां से जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के देवव्रत सिंह ने इस सीट पर भाजपा की कोमल जंघेल को केवल 870 वोटों के अंतर से हराया था। राजघराने से आने वाले देवव्रत के परिवार का इस सीट पर दबदबा रहा है। देवव्रत सिंह के निधन की वजह से ये सीट खाली हुई थी। देवव्रत की पत्नी पद्मा सिंह ने इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार का समर्थन किया था। वहीं, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने खैरागढ़ उप-चुवान के नतीजे आते ही इसे जिला बनाने का भी एलान कर दिया। इसका भा कांग्रेस को फायदा हुआ। 2018 में इस सीट पर जीती जनता कांग्रेस ने देवव्रत सिंह के एक रिश्तेदार को यहां से उतारा था, लेकिन देवव्रत सिंह की पत्नी ने कांग्रेस के समर्थन में प्रचार करके उनका खेल बिगाड़ दिया।
महाराष्ट्र में गठबंधन की जीत की क्या वजह?
महाराष्ट्र की कोल्हापुर उत्तर विधानसभा सीट कांग्रेस के चंद्रशेखऱ जाधव के निधन की वजह से खाली हुई थी। कांग्रेस ने इस सीट पर उनकी पत्नी को टिकट दिया था। महाराष्ट्र सरकार में उसके दोनों सहयोगी दलों एनसीपी और शिवसेना ने यहां अपने उम्मीदवार नहीं उतारे। सीधा मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में था। सहानभूति की लहर पर सवार कांग्रेस ने आसानी से अपनी सीट बरकरार रखी।