World Cancer Day: कैंसर के इलाज को आसान और सस्‍ता बनाने वाली नई तकनीक कितनी मददगार?


Sehat Ki Baat: CMR-NCDIR द्वारा शुरू किए गए राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के आंकड़े बताते हैं कि 2020 में कैंसर से पीडि़त होने वाले मरीजों की सालाना संख्‍या 14 लाख तक पहुंच गई थी. और ऐसा ही चलता रहा तो 2025 तक हमारे देश में कैंसर से पीडि़त मरीजों की संख्‍या सालाना 15.7 लाख  तक हो जाएगी. इन आंकड़ों को जानने के बाद जहन में कुछ सवाल आते हैं.

पहला सवाल – आखिर हमारे देश में कैंसर की बीमारी इतनी तेजी से क्‍यों फैल रही है. दूसरा सवाल- क्‍या इस कैंसर की इस जानलेवा बीमारी का इलाज संभव है. तीसरा सवाल, क्‍या कैंसर के इलाज में कोई ऐसी तकनीक या कारगर दवाएं आई है, जिससे इस बीमारी के इलाज को आसान किया जा सका हो. चौथा और आखिरी सवाल यह इलाज खर्च के लिहाज से कितना किफायती है.

बीएलके-मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में सर्जिकल ऑन्कोलॉजी डिपार्टमेंट के सीनियर डायरेक्‍टर एण्‍ड एचओडी डॉ. सुरेंद्र डबास का इन सवालों को लेकर कहना है कि कैंसर की बीमारी के तीन मेजर ट्रीटमेंट हैं. पहला – सर्जरी, दूसरा – एडिएशन और तीसरा कीमोथेरेपी. तीनों डिपार्टमेंट में लगातार ऐसी इनोवेटिव टेक्‍नोलॉजी आ चुकी है, जिससे कैंसर के ट्रीटमेंट को लेस कॉम्‍लीकेटेड और कम साइट इफेक्‍ट वाला बनाया जा सका है.

कैंसर की सर्जरी
डॉ. सुरेंद्र डबास बताते हैं कि आज से 50 साल पहले हम एक ही सर्जरी की बात करते थे ओपन सर्जरी. धीरे धीरे लेप्रोस्कोपिक (दूरबीन)  की सर्जरी आई, जिसे हम लेजर की सर्जरी भी बोलते हैं. अब जो नई तकनीक आई है वह है रोबोटिक सर्जरी. रोबोटिक सर्जरी लेप्रोस्कोपिक सर्जरी का वेल डिफाइन्‍ड वर्जन है, जिसमें सर्जरी की जटिलता को कम करते हुए सरल बनाया जा सका है.

डॉ. डबास के अनुसार, रोबोटिक सर्जरी एक प्रिसाइज (सटीक) सर्जरी है, जिसमें कैंसर कंट्रोल ओपन सर्जरी के मुकाबले काफी बेहतर रहता है. इस तकनीक से सर्जरी के दौरान, डॉक्‍टर्स को ऑपरेशन एरिया में करीब दस गुना बड़ा दिखाई देता है. यह एक पहली थ्री डाइमेंशन सर्जरी है, जो रोबोटिक टेक्‍नोलॉजी से हो रही है. इसमें मरीज को ब्‍लीडिंग के चांस कम होते हैं. पेशेंट जल्‍दी घर जा सकता है. जल्‍दी खा पी सकता है.

कीमोथेरेपी
डॉ. सुरेंद्र डबास बताते हैं कि पहले कीमोथेरेपी की बात करते थे, आज हम टारगेट थेरेपी की बात करते हैं, फिर हम बात करते हैं इम्यूनोथेरेपी की, उसके बात की जाती है जीन थेरेपी और मोलिकुलर थेरेपी की. इस तरह, दिन ब दिन हमारा फोकस ट्रीटमेंट को टॉक्‍सिक से लेस टॉक्सिक और लेस कॉम्‍प्‍लीकेशन की तरफ जाए, ताकि मरीज को कम से कम साइड इफेक्‍ट आएं.

इसी तरह, आज के टाइम में प्रोटॉन थेरेपी जो रेडिएकशन का ही टाइप है, उसका भी जिक्र बहुत आता है. हालांकि, प्रोटॉन थेरेनी की अपनी ही लिमिटेशन है कि किस एरिया में देनी चाहिए या नहीं देनी चाहिए. प्रोटॉन थेरेपी हर कैंसर में नहीं दे सकते हैं, लेकिन उन कैंसर में जो डीप सिटेड हैं, जैसे ब्रेन ट्यूमर, उनके लिए प्रोटॉन थेरेपी बहुत हेल्‍पफुल है और साइड इफेक्‍ट मिनिमम रहते हैं.

कैंसर रेडिएशन
डॉ. सुरेंद्र डबास के अनुसार, रेडिएशन में लगातार हर पांच सात साल में नई टेक्‍नोलॉजी नई मशीन आ जाती है, जिससे हम रेडिएशन के साइड इफेक्‍ट कम कर पाएं. हर नई टेक्‍नोलॉजी का मकसद होता है कि ट्यूमर के वाल्‍यूम को पर्टिकुलर रेडिएशन देते हुए आसपास के एरिया को बचाया जा सके. आईएमआरटी और आईजीआरटी ऐसे नाम हैं, जो रेडिएशन के साइड इफेक्‍ट को कम करने में सफल रही हैं.

रोबोटिक सर्जरी ने ओरल कैंसर सर्जरी को बनाया आसान
डॉ. सुरेंद्र डबास बताते हैं कि रोबोटिक टेक्‍नोलॉजी एक नई टेक्‍नोलॉजी है, जिसमें ट्यूमर अच्‍छा दिखता है और पेशेंट को आप रिजल्‍ट अच्‍छा दे पाते है. ओरल कैंसर के केस में बीते छह महीनों से स्‍कारलेस सर्जरी की जा रही है. इससे पहले होने वाली ओपन सर्जरी में हम गर्दन में लंबे लंबे कट लगाते थे, फेस में कट आता था. इसमें पेशेंट के खाने में, बोलने में, दिखने में बड़ी परेशानी थी.

अब इंट्रा ओरल सर्जरी के जरिए मुंह के ट्यूमर को बाहर निकाल दिया जाता है. गर्दन की सर्जरी रोबोट से की जाती है. मुंह से निकाले गए इंट्रा पार्ट की जगह फ्लैप लगा दिया जाता है. फ्लैप लगाने के लिए भी कान के पास मिनिमम का कट दिया जाता है, जो कि बाद में आपको दिखाई नहीं देगा. इस तकनीक में लिप में कोई कट नहीं दिया जाता है, जिससे ऑपरेशन के बाद मरीज को बोलने, खाने, निगलने में कोई दिक्‍कत नहीं आती है.

क्‍यों होता है कैंसर
डॉ. सुरेंद्र डबास बताते हैं कि कैंसर एक लाइस स्‍टाइल बीमारी है. यूट्रस कैंसर बच्‍चेदानी का कैंसर एक लाइफ स्‍टाइल  रिलेटेड है. इस कैंसर का रिस्‍क मोर्बिड ओबेसिटी यानी बहुत मोटी फीमेल्‍स, हाई ब्‍लड प्रेशर से पीडित महिलाओं को ज्‍यादा होता है. लाइफ स्‍टाइल में फूड पाइप कैंसर भी है जो एसिडिटी की वजह से होता है. इसके अलावा, स्‍मोकिंग और एल्‍कोहल की वह से होने वाले कैंसर भी लाइफ स्‍टाइल रिलेटेड कैंसर हैं.

इसके अलावा, कुछ कैंसर ऐसे हैं जो वायरस से रिलेटेड है. लीवर कैंसर हेपेटाटिस बी एण्‍ड सी से रिलेटेड है. टाउंसिल का कैंसर एचपीवी वायरस की वजह से होता है. सरवाइकल कैंसर (बच्‍चे दानी के मुंह का कैंसर) भी वायरस से रिलेटेड है.  नाक का कैंसर, जिसे नासोफेरींजल कैंसर कहते है, वह ईबीवी वायरस से रिलेटेड है.

Tags: Cancer, Health tips, Sehat ki baat

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