नई दिल्ली. मिरगी एक गंभीर किस्म की दिमागी बीमारी है. इसमें व्यक्ति को बार-बार दौरा पड़ता है. भारत में बड़ी संख्या में इसके मरीज हैं. चूंकि इसमें व्यक्ति पूरी तरह ठीक होता है लेकिन ब्रेन में आई परेशानी की वजह से उसे कभी कभी दौरे पड़ते हैं, यही वजह है कि मिरगी के मरीजों को भी दिव्यांग कहा जाता है और देश के अन्य दिव्यांगों की तरह ही इन्हें दिव्यांगता का लाभ भी मिलता है. केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अधीन आने वाले दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग के तहत दिव्यांगता का प्रमाणपत्र जारी किया जाता है. जिसके चलते दिव्यांगों को सामान्य लोगों के मुकाबले विशेष लाभ मिलते हैं. हालांकि यहां ध्यान देने वाली बात है कि मिरगी के सभी मरीज दिव्यांग नहीं कहलाते. इसके कई पैरामीटर हैं. मिरगी के प्रकारों और इलाज के बारे में जानने के साथ ही यहां यह भी जानना जरूरी है कि फलां मिरगी का मरीज दिव्यांग है ये कौन और कैसे तय करता है?
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में डिपार्टमेंट ऑफ न्यूरोलॉजी में प्रोफसर डॉ. मंजरी त्रिपाठी यहां मिरगी को लेकर पूरी जानकारी दे रही हैं. वे कहती हैं कि जैसे अस्थमा के मरीज या डायबिटीज के मरीज होते हैं, ऐसे ही मिरगी के मरीज भी सामान्य जीवन जी सकते हैं. पढ़ लिख सकते हैं, शादी कर सकते हैं, बच्चे पैदा कर सकते हैं. मिरगी सिर्फ कुछ क्षणों के लिए ही आती है, इसके बाद मरीज ठीक हो जाता है लेकिन ये जरूरी है कि मिरगी का इलाज कराया जाए. इलाज के बाद 70 फीसदी तक दौरे बंद हो जाते हैं. वहीं 30 फीसदी ऐसे मरीज होते हैं, जिनको एम्स जैसे उच्च सेंटर पर लाकर उनकी सर्जरी की जाती है या फिर उनकी डायट तय की जाती हैं. जैसे कीटो डायट आदि. इसके बाद भी मिरगी की बीमारी ठीक हो सकती है. सर्जरी के कुछ साल बाद दवा कम भी कर दी जाती है.
दो प्रकार की होती है मिरगी
डॉ. मंजरी बताती हैं कि मिरगी बहुत प्रकार की होती है. मिरगी होने के कई कारण हैं. हालांकि दो प्रकार की मिरगी प्रमुख है. छोटी प्रकार की मिरगी में मरीज सिर्फ कुछ क्षणों के लिए खो सकता है. ये खासतौर पर बच्चों में होती है. इसके एबसेंस एपिलेप्सी बोलते हैं. थोड़े बड़े बच्चे या बुजुर्गों में मिरगी ब्रेन में कीड़ा होने की वजह से भी होती है. यह भारत में बहुतायत में पाई जाती है.
बड़ी वाली मिरगी में मरीज को दोनों हाथ पैर में झटके आते हैं, इस दौरान वे गिर जाते हैं. उन्हें चोट लग सकती है. मरीजों का यूरिन निकल जाता है. उनके मुंह से झाग निकलते हैं. इसे जनरलाइज्ड मिरगी या बड़ी वाली मिरगी भी बोल सकते हैं. कभी कभी छोटी मिरगी भी बड़ी वाली मिरगी बन जाती है. जिसको फोकल विकमिंग जनरलाइज्ड एपिलेप्सी बोलते हैं.
इन कारणों से होती है मिरगी
अगर खानपान साफ नहीं है या खुले में शौच करते हैं, किसी के पेट में टेपवॉर्म है, या ऐसे माहौल में रह रहे हैं जहां आसपास सूअर पाले जा रहे हैं, इनके भी पेट में यह कीड़ा होता है. अगर इन्हीं के आसपास सब्जी भी उगाई जा रही है और बिक रही है, उसे इस्तेमाल से पहले ठीक से नहीं धोया जा रहा है तो उसमें उसक कीड़े के सिस्ट होते हैं जो दिखाई नहीं देते. ऐसे में अगर कच्ची सब्जी या बिना अच्छे से धुले सब्जी खाई जाती है तो यह हमारे शरीर में पहुंचकर पहले पेट में और फिर बाद में ब्रेन में पहुंचता है. जिसकी वजह से हमारे देश में सबसे ज्यादा मिरगी होती है. इसलिए खानपान और शौच की सफाई काफी जरूरी है.
इसके अलावा अगर ब्रेन में कोई सिकुड़न हो या जेनेटिक कारण हो या ब्रेन में ट्यूमर हो तो उसकी वजह से भी मिरगी होती है. ब्रेन में खून की नलियां बढ़ी हुई हों, तब भी मिरगी के दौरे आते हैं और बार-बार आते हैं. ये बिना इलाज के ठीक नहीं होते. ब्रेन में पैदाइशी कोई ऑक्सीजन की कमी हुई हो, हेड इंजरी या स्ट्रोक होने पर भी मिरगी होती है.
मिरगी के ये मरीज कहलाते हैं दिव्यांग
कई बार देखा गया है कि मिरगी की बीमारी के चलते मरीज की बुद्धि भी मंद हो जाती है. व्यवहार में दिक्कत आ सकती है. मेंटल या साइकोलॉजिकल दिक्कतें हो सकती हैं. साइकोसिस हो सकता है, तनाव या अवसाद हो सकता है. कई मरीजों के एक तरफ हाथ-पैर की कमजोरी भी आ सकती है. हालांकि ये चीजें सभी मरीजों में नहीं होती. ऐसा सिर्फ 20 या 25 फीसदी मरीजों में ही सामने आता है लेकिन ऐसे मरीजों को दिव्यांगता प्रदान की जा सकती है. सरकार ने क्रॉनिक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर को अब डिसएबिलिटी की श्रेणी में रखा है और मिरगी ऐसा ही डिसऑर्डर है.
ऐसे तय होती है दिव्यांगता
डॉ. मंजरी कहती हैं कि क्रॉनिक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर, जिसमें मिरगी भी शामिल है, इसके सभी मरीजों को दिव्यांग नहीं कहा जा सकता. इसके लिए बाकायदा तीन चीजों को विशेष रूप से देखा जाता है. इसके बाद ही तय किया जाता है कि मिरगी का मरीज दिव्यांग है या नहीं. इसके लिए पहला है आईक्यू स्तर. इसमें बच्चे या मरीज की मानसिक क्षमता देखी जाती है. उसके सोचने-समझने, याद रखने और लिखने-पढ़ने की क्या सामर्थ्य है.
इसके बाद उसकी शारीरिक जांच होती है. जिसमें देखा जाता है कि मरीज के हाथ-पैर किसी साइड में कमजोर तो नहीं हैं. फिर उनकी पॉवर टेस्टिंग होती है. न्यूरोलॉजिकल जांच होती है. एमआरआई और ईजी होता है. इसमें मरीज को फिजिकल स्कोरिंग चिकित्सक देते हैं.
तीसरा मरीज के दौरे देखे जाते हैं. मरीज को कितने दौरे आ रहे हैं. घर पर बनाए गए वीडियोज देखे जाते हैं. फिर अस्पताल में ये देखा जाता है कि मरीज के दौरे बंद हो रहे हैं या नहीं. फिर तीन विशेषज्ञ मिलकर स्कोर देते हैं और इसमें देखा जाता है कि अगर स्कोरिंग एक श्रेणी से ज्यादा हो तो उसे दिव्यांगता का प्रमाणपत्र प्रदान किया जाता है.
डॉ. मंजरी त्रिपाठी कहती हैं कि अगर किसी मरीज को तीन साल तक दौरे आए लेकिन फिर वो दवा खाकर ठीक हो गया और उसको मिरगी के दौरे नहीं आए तो उसे डिसएबिलिटी का प्रमाणपत्र नहीं मिल सकता. वह तो ठीक हो गया.
सरदर्द जैसी ही है मिरगी
डॉ. मंजरी कहती हैं, हम चाहते हैं कि मिरगी के मरीजों को मां-बाप पढ़ाएं, लिखाएं और आगे बढ़ाएं. वे भी सबकुछ कर सकते हैं, जैसे अन्य लोग करते हैं. न तो समुदाय और न ही समाज उन्हें अलग नजरों से देखे. मिरगी का मरीज सरदर्द के मरीज जैसा है. अगर आपको सरदर्द होता है तो आप भी तो एक दो घंटे के बिना कोई काम किए एकांत में रहते हैं. वैसे ही मिरगी है. यह आती है चली जाती है. अगर मिरगी के मरीज को काम पर दौरा पड़ रहा है तो उसको काम से क्यों निकालना है. यह कभी भी किसी को भी आ सकता है. अगर मिरगी के मरीज ने शादी की है और वह सामान्य रूप से शादी को चला सकता है तो फिर ये रिश्ते क्यों तोड़े जाते हैं. ये इसलिए है कि हमारे समाज में मिरगी को लेकर गलत धारणा है. इसे बदलने की जरूरत है. अगर किसी को शादी के बाद कोई बीमारी हो जाए तो फिर क्या होगा. मिरगी के मरीजों को प्यार दें, भरोसा दें. उनका सहयोग करें. आज 12 मिलियन लोगों को मिरगी की बीमारी है. लोग गलत धारणाओं के चलते इनकी उपेक्षा करते हैं. ऐसा न करें.’
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