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अयमान अल-जवाहिरी की हत्या से भारत में अल-कायदा समर्थकों और सहयोगियों को झटका लगने की संभावना है, लेकिन तालिबान द्वारा काबुल में उसे पनाह देने पर चिंता जताते हुए अधिकारियों ने कहा कि इस तरह की सुविधाएं भारत के खिलाफ काम करने वाले आतंकी संगठनों को भी दी सकती हैं। 2011 में ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद अल-कायदा की कमान संभालने वाले जवाहिरी को तालिबान नियंत्रित अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में एक सुरक्षित घर में सीआईए द्वारा किए गए सटीक हमले में मार दिया गया। जवाहिरी की हत्या से भारत में कायदा समर्थकों और आतंकियों के मनोबल पर असर पड़ने की संभावना है। घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले अधिकारियों ने पीटीआई को बताया कि हाल ही ऐसे तत्व प्रचार अभियान चला रहे थे और भारत में अल-कायदा के संगठनात्मक तंत्र को दोबारा खड़ा करने की कोशिश कर रहे थे।
अल कायदा-तालिबान गठजोड़ भारतीय हितों के खिलाफ
जवाहिरी की मौत भारतीय उपमहाद्वीप में अल-कायदा (AQIS) जैसे क्षेत्रीय संगठनों पर असर डाल सकता है। तालिबान और अल-कायदा के बीच बेहद घनिष्ठ संबंध इस तथ्य से साफ हैं कि जवाहिरी काबुल में रह रहा था। करीबी अल कायदा-तालिबान गठजोड़ पूरी तरह से भारतीय हितों के खिलाफ है, खासकर वैश्विक आतंकी संगठन के भारत को निशाना बनाने के इरादे की पृष्ठभूमि में बेहद चिंताजनक है। अधिकारियों ने कहा कि अल-कायदा को सुरक्षित पनाह देने वाले तालिबान को जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे पाकिस्तान स्थित संगठनों तक भी बढ़ाया जा सकता है, जो मुख्य रूप से भारत को निशाना बनाते हैं। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने आकलन किया कि तालिबान के भीतर घुसपैठ तेज हो सकती है क्योंकि अल-कायदा के बेहद करीब हक्कानी नेटवर्क अमेरिकी अधिकारियों को जवाहिरी के बारे में जानकारी लीक करने का बदला लेने की कोशिश कर सकता है।
जवाहिरी की जगह ले सकता है सैफ अल-अदल
भारत के लिए चिंता की बात यह है कि अल-कायदा के कैडर इस्लामिक स्टेट और उसके क्षेत्रीय सहयोगी इस्लामिक स्टेट-खोरासान प्रांत (ISKP) के प्रति अपनी निष्ठा को बदल सकते हैं। अधिकारियों ने कहा कि हमलों को अंजाम देने के लिए आईएसकेपी की क्षमताओं को ध्यान में रखते हुए अल-कायदा से आईएस के किसी भी संभावित झुकाव पर गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए। जवाहिरी की जगह ले सकने वाला सैफ अल-अदल एक अनुभवी क्षेत्र विशेषज्ञ है जिसने केन्या में अमेरिकी दूतावास (1998) में बम विस्फोटों सहित कुख्यात हमलों का नेतृत्व किया है। जवाहिरी के विपरीत सैफ अल-अदल अल-कायदा के प्रासंगिक बने रहने के लिए और उसके सदस्य इस्लामिक स्टेट में न चले जाएं, इसके मद्देनजर तेज अभियान चला सकता है।
जवाहिरी के खात्मे पर चीन का टालमटोल वाला नजरिया
उधर, आतंकी जवाहिरी को ढेर किए के बीच चीन का नजरिया भी हैरान कर रहा है। उसका साफ तौर पर कहना है कि इस तरह के अभियान से दूसरे देशों की संप्रभुता प्रभावित होती है। चीन ने मंगलवार को काबुल में अमेरिकी ड्रोन हमले में जवाहिरी के मारे जाने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि वह सभी प्रकार के आतंकवाद के खिलाफ है, लेकिन साथ ही आतंकवाद विरोधी अभियानों पर दोहरे मानकों का भी विरोध करता है। अन्य देशों की संप्रभुता की कीमत पर ऐसा नहीं होना चाहिए। काबुल में सीआईए के ड्रोन हमले में अल-जवाहिरी की मौत पर चीन की प्रतिक्रिया के बारे में पूछे जाने पर सहायक विदेश मंत्री हुआ चुनयिंग ने एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि हमने रिपोर्ट देखी है। चीन हमेशा आतंकवाद के खिलाफ मजबूती से खड़ा है। हम अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी अभियानों में सक्रिय रूप से शामिल हैं।
चुनयिंग ने कहा- साथ ही, हमारा मानना है कि आतंकवाद से निपटने के लिए कोई दोहरा मापदंड नहीं होना चाहिए और सभी प्रकार के आतंकवाद से लड़ना चाहिए। दूसरे देशों की संप्रभुता की कीमत पर आतंकवाद विरोधी सहयोग नहीं किया जाना चाहिए। अल-जवाहिरी की मौत की घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने सोमवार को की। बाइडन ने कहा कि जवाहिरी शनिवार शाम को काबुल में एक घर पर सीआईए द्वारा किए गए ड्रोन हमले में मारा गया था, जहां वह अपने परिवार के साथ पुनर्मिलन के लिए आया था। मिस्र के 71 वर्षीय सर्जन जिसके सिर पर 25 मिलियन अमेरिकी डॉलर का इनाम था, 9/11 के हमलों के दौरान ओसामा बिन लादेन का दूसरा कमांडर था और उसकी मौत के बाद अल-कायदा के प्रमुख के रूप में पदभार संभाला। था। मई 2011 में पाकिस्तान के एबटाबाद में एक अभियान के दौरान अमेरिका द्वारा बिन लादेन को मार गिराने के 11 साल बाद जवाहिरी आतंकवादी समूह का एक जीता-जागता अंतरराष्ट्रीय प्रतीक बना रहा।