‘अग्निपथ’ पर पाकिस्तान की बुरी नजर: बड़ी फिराक में है ISI, नेपाली लड़ाकों को नापाक साजिश में शामिल करने की तैयारी


ख़बर सुनें

भारतीय सेना में भर्ती के लिए शुरू की गई अग्निपथ योजना का जहां एक तरफ विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान भी इस पर अपनी बुरी नजर डाल रहा है। खुफिया एजेंसी के सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तानी आईएसआई का प्रयास है कि दोनों देशों के बीच संबंधों में किसी तरह से दरार डाली जाए। भारत के प्रति, नेपाल का झुकाव कम हो। इस संबंध में जुलाई के अंतिम सप्ताह में काठमांडू स्थित पाकिस्तानी दूतावास में आईएसआई ऑपरेटिव मोहम्मद रक्साना नूर्ती ने एक बैठक रखी है। इसमें नेपाली सेना और भारतीय सेना से रिटायर होकर नेपाल में रह रहे पूर्व अधिकारी भाग लेंगे। सैन्य मामलों के विशेषज्ञ और एक्स-सर्विसमैन ग्रीवांस सेल के अध्यक्ष साधू सिंह कहते हैं, नेपाल के बहादुर लड़ाके भारतीय सेना ही नहीं, बल्कि ब्रिटिश आर्मी का भी हिस्सा हैं। अनुशासन और वफादारी में उनका कोई मुकाबला नहीं है। भारतीय सेना में आजादी के बाद तो ब्रिटिश आर्मी में 1947 के पहले से ही ‘गोरखा’ अपनी बहादुरी, ईमानदारी और निष्ठा को साबित करते रहे हैं।

उसे मौत से डर नहीं लगता तो वह गोरखा है

गोरखा रेजीमेंट में पहाड़ी और विशेषकर नेपाल से संबंधित युवा भर्ती होते हैं। इंडियन आर्मी के भूतपूर्व थल सेना अध्यक्ष, फील्ड मार्शल सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ ने कहा था, अगर कोई ये कहता है कि मुझे मौत से डर नहीं लगता तो वह झूठ बोल रहा है या वह गोरखा है। लखनऊ, वाराणसी, गोरखपुर, शिलांग और हिमाचल प्रदेश के सुबातु में गोरखा रेजीमेंट के बड़े सेंटर हैं। भारतीय सेना में सात गोरखा रेजिमेंट हैं व 39 बटालियन हैं। इनमें लगभग 30 हजार नेपाली नागरिक शामिल हैं। ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय सेना में 11 गोरखा रेजीमेंट होती थीं। आजादी के बाद गोरखाओं की चार रेजीमेंट, ब्रिटिश सेना में चली गईं। भारतीय सेना में अब पहली, तीसरी, चौथी, पांचवी, आठवीं, नौंवी और ग्यारवीं गोरखा रेजीमेंट है।

अब ‘अग्निपथ’ योजना पर है पाकिस्तान की बुरी नजर

पाकिस्तान की तरफ से होने वाली घुसपैठ में अब भारी कमी आ रही है। वह इसलिए, क्योंकि भारतीय सेना और बीएसएफ ने घुसपैठ के अधिकांश रास्तों को बंद कर दिया है। सीमा पार के लांचिंग पैड पर प्रशिक्षित आतंकियों की भरमार है। उन्हें भारतीय सीमा में प्रवेश करने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा है। ‘आईएसआई’ बौखलाहट में है, इसलिए अब उसने नेपाल के जरिए अपने नापाक इरादों को अंजाम देने की योजना बनाई है। नेपाल में दो लाख से ज्यादा ऐसे लोग रहते हैं, जो भारतीय सेना से रिटायर्ड हुए हैं। पाकिस्तानी आईएसआई की नजर अब इन्हीं लोगों पर है। आईएसआई, भारत और नेपाल के द्विपक्षीय संबंधों में दरार डालने का प्रयास कर रही है। काठमांडू में होने वाली बैठक का जो एजेंडा लीक हुआ है, उसमें पड़ोसी मुल्क की खुफिया एजेंसी, ‘अग्निपथ’ को लेकर नेपाली युवाओं में गलत संदेश देने का प्रयास करेगी। आईएसआई की यह कोशिश भी रहेगी कि किसी तरह से नेपाल के युवाओं का रुझान, भारतीय सेना की तरफ कम हो जाए। इससे पहले नेपाल में चीन भी यह प्रयास कर चुका है। उसने भी इस बाबत खूब माथापच्ची की है कि नेपाल के युवा, भारतीय सेना में भर्ती होने को इतनी तव्वजो क्यों देते हैं। उनमें इंडियन आर्मी के लिए इतना जुनून क्यों है।

सरकार सतर्क रहे, गोरखा भर्ती पर पड़ सकता है असर

सैन्य मामलों के विशेषज्ञ और एक्स-सर्विसमैन ग्रीवांस सेल के अध्यक्ष साधू सिंह के मुताबिक, गोरखा रेजीमेंट का अपना इतिहास रहा है। बहुत से एक्स सर्विसमैन की पेंशन नेपाल में ड्रा होती है। ये भारतीय फौज का अहम हिस्सा हैं। इसने अपने शौर्य को साबित कर दिखाया है। गोरखा, गजब के लड़ाके होते हैं। इन्हें जो भी ड्यूटी या टॉस्क दिया जाता है, ये वहां से विजयी हुए बिना, वापस नहीं लौटते। इनकी वफादारी, निष्ठा और ईमानदारी का उदाहरण पेश किया जाता है। अनुशासन के प्रति जितने सजग गोरखा होते हैं, शायद ही कोई दूसरा उतना सतर्क हो। यही वजह है कि आज भी गोरखा, भारतीय सेना के अलावा ब्रिटिश आर्मी में सेवा दे रहे हैं। यहां तक कि ब्रिटेन में शाही घराने की सुरक्षा, जो दस्ता करता है, उसमें भी गोरखाओं की अच्छी संख्या बताई जाती है। वहां पर गार्ड ऑफ ऑनर में भी गोरखाओं को मौका दिया जाता है। हालांकि ‘अग्निपथ’ पर जो कुछ भारत में चल रहा है, नेपाल के युवा भी उससे अछते नहीं हैं। गोरखा भर्ती पर इसका असर पड़ सकता है। गोरखा के बारे में कहा जाता है कि इन्हें कमांडर की तरफ जो आदेश मिलता है, वे उससे पीछे नहीं हटते।
 

अगर कहीं पर इनके बड़े अफसर को जाने की मनाही है तो ये उसे भी नहीं जाने देते। इतने अनुशासन वाले गोरखाओं को समझना होगा। अग्निपथ पर केंद्र सरकार को बड़ी सावधानी से कदम रखना चाहिए था। आईएसआई, नेपाल में इस योजना को लेकर वहां के युवाओं के मन में भ्रम पैदा करेगी, इसमें कोई शक नहीं है। अग्निवीर, पर भी बहुत कुछ संभव है। गोरखाओं की शक्ल में आईएसआई अपने गुर्गों को कहीं भारतीय सेना में न भेज दे, ये सवाल तो रहेगा ही।

‘टूर ऑफ ड्यूटी’ को दूसरी नजर से देखा जा रहा है

साधू सिंह ने कहा, अग्निवीर को मुश्किल से पौने तीन साल की ड्यूटी मिलेगी। छह माह तो ट्रेनिंग में निकल जाएंगे। इसके बाद कई महीने की छुट्टी भी देनी होती है। सेना में जो स्थायी नौकरी पर हैं, वे ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ को दूसरी नजर से देखेंगे। इसका असर ड्यूटी क्षेत्र पर भी पड़ेगा। हो सकता है कि किन्हीं वजह से ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ वालों को कम जिम्मेदारी का काम मिले। ये भी संभव है कि मुश्किल ड्यूटी पर, चार साल की नौकरी वालों को भेज दिया जाए। ऐसी कई तरह की बातें देखने को मिलेंगी। सेना से लौटने के बाद नौकरी मिलना आसान नहीं होगा। बेरोजगारी के चलते वे दोबारा से सड़कों पर उतर सकते हैं। उन्हें पूर्व सैनिक का दर्जा भी नहीं मिलेगा। भारतीय सेना में आना व दूसरे विभागों में नौकरी करना, इसमें बहुत फर्क होता है। युवा ‘जुनून और देश भक्ति’ के चलते सेना में आते हैं। चार साल की नौकरी ये सब संभव हो पाएगा, इसकी गुंजाइश कम ही है।

विस्तार

भारतीय सेना में भर्ती के लिए शुरू की गई अग्निपथ योजना का जहां एक तरफ विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान भी इस पर अपनी बुरी नजर डाल रहा है। खुफिया एजेंसी के सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तानी आईएसआई का प्रयास है कि दोनों देशों के बीच संबंधों में किसी तरह से दरार डाली जाए। भारत के प्रति, नेपाल का झुकाव कम हो। इस संबंध में जुलाई के अंतिम सप्ताह में काठमांडू स्थित पाकिस्तानी दूतावास में आईएसआई ऑपरेटिव मोहम्मद रक्साना नूर्ती ने एक बैठक रखी है। इसमें नेपाली सेना और भारतीय सेना से रिटायर होकर नेपाल में रह रहे पूर्व अधिकारी भाग लेंगे। सैन्य मामलों के विशेषज्ञ और एक्स-सर्विसमैन ग्रीवांस सेल के अध्यक्ष साधू सिंह कहते हैं, नेपाल के बहादुर लड़ाके भारतीय सेना ही नहीं, बल्कि ब्रिटिश आर्मी का भी हिस्सा हैं। अनुशासन और वफादारी में उनका कोई मुकाबला नहीं है। भारतीय सेना में आजादी के बाद तो ब्रिटिश आर्मी में 1947 के पहले से ही ‘गोरखा’ अपनी बहादुरी, ईमानदारी और निष्ठा को साबित करते रहे हैं।

उसे मौत से डर नहीं लगता तो वह गोरखा है

गोरखा रेजीमेंट में पहाड़ी और विशेषकर नेपाल से संबंधित युवा भर्ती होते हैं। इंडियन आर्मी के भूतपूर्व थल सेना अध्यक्ष, फील्ड मार्शल सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ ने कहा था, अगर कोई ये कहता है कि मुझे मौत से डर नहीं लगता तो वह झूठ बोल रहा है या वह गोरखा है। लखनऊ, वाराणसी, गोरखपुर, शिलांग और हिमाचल प्रदेश के सुबातु में गोरखा रेजीमेंट के बड़े सेंटर हैं। भारतीय सेना में सात गोरखा रेजिमेंट हैं व 39 बटालियन हैं। इनमें लगभग 30 हजार नेपाली नागरिक शामिल हैं। ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय सेना में 11 गोरखा रेजीमेंट होती थीं। आजादी के बाद गोरखाओं की चार रेजीमेंट, ब्रिटिश सेना में चली गईं। भारतीय सेना में अब पहली, तीसरी, चौथी, पांचवी, आठवीं, नौंवी और ग्यारवीं गोरखा रेजीमेंट है।

अब ‘अग्निपथ’ योजना पर है पाकिस्तान की बुरी नजर

पाकिस्तान की तरफ से होने वाली घुसपैठ में अब भारी कमी आ रही है। वह इसलिए, क्योंकि भारतीय सेना और बीएसएफ ने घुसपैठ के अधिकांश रास्तों को बंद कर दिया है। सीमा पार के लांचिंग पैड पर प्रशिक्षित आतंकियों की भरमार है। उन्हें भारतीय सीमा में प्रवेश करने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा है। ‘आईएसआई’ बौखलाहट में है, इसलिए अब उसने नेपाल के जरिए अपने नापाक इरादों को अंजाम देने की योजना बनाई है। नेपाल में दो लाख से ज्यादा ऐसे लोग रहते हैं, जो भारतीय सेना से रिटायर्ड हुए हैं। पाकिस्तानी आईएसआई की नजर अब इन्हीं लोगों पर है। आईएसआई, भारत और नेपाल के द्विपक्षीय संबंधों में दरार डालने का प्रयास कर रही है। काठमांडू में होने वाली बैठक का जो एजेंडा लीक हुआ है, उसमें पड़ोसी मुल्क की खुफिया एजेंसी, ‘अग्निपथ’ को लेकर नेपाली युवाओं में गलत संदेश देने का प्रयास करेगी। आईएसआई की यह कोशिश भी रहेगी कि किसी तरह से नेपाल के युवाओं का रुझान, भारतीय सेना की तरफ कम हो जाए। इससे पहले नेपाल में चीन भी यह प्रयास कर चुका है। उसने भी इस बाबत खूब माथापच्ची की है कि नेपाल के युवा, भारतीय सेना में भर्ती होने को इतनी तव्वजो क्यों देते हैं। उनमें इंडियन आर्मी के लिए इतना जुनून क्यों है।

सरकार सतर्क रहे, गोरखा भर्ती पर पड़ सकता है असर

सैन्य मामलों के विशेषज्ञ और एक्स-सर्विसमैन ग्रीवांस सेल के अध्यक्ष साधू सिंह के मुताबिक, गोरखा रेजीमेंट का अपना इतिहास रहा है। बहुत से एक्स सर्विसमैन की पेंशन नेपाल में ड्रा होती है। ये भारतीय फौज का अहम हिस्सा हैं। इसने अपने शौर्य को साबित कर दिखाया है। गोरखा, गजब के लड़ाके होते हैं। इन्हें जो भी ड्यूटी या टॉस्क दिया जाता है, ये वहां से विजयी हुए बिना, वापस नहीं लौटते। इनकी वफादारी, निष्ठा और ईमानदारी का उदाहरण पेश किया जाता है। अनुशासन के प्रति जितने सजग गोरखा होते हैं, शायद ही कोई दूसरा उतना सतर्क हो। यही वजह है कि आज भी गोरखा, भारतीय सेना के अलावा ब्रिटिश आर्मी में सेवा दे रहे हैं। यहां तक कि ब्रिटेन में शाही घराने की सुरक्षा, जो दस्ता करता है, उसमें भी गोरखाओं की अच्छी संख्या बताई जाती है। वहां पर गार्ड ऑफ ऑनर में भी गोरखाओं को मौका दिया जाता है। हालांकि ‘अग्निपथ’ पर जो कुछ भारत में चल रहा है, नेपाल के युवा भी उससे अछते नहीं हैं। गोरखा भर्ती पर इसका असर पड़ सकता है। गोरखा के बारे में कहा जाता है कि इन्हें कमांडर की तरफ जो आदेश मिलता है, वे उससे पीछे नहीं हटते।

 

अगर कहीं पर इनके बड़े अफसर को जाने की मनाही है तो ये उसे भी नहीं जाने देते। इतने अनुशासन वाले गोरखाओं को समझना होगा। अग्निपथ पर केंद्र सरकार को बड़ी सावधानी से कदम रखना चाहिए था। आईएसआई, नेपाल में इस योजना को लेकर वहां के युवाओं के मन में भ्रम पैदा करेगी, इसमें कोई शक नहीं है। अग्निवीर, पर भी बहुत कुछ संभव है। गोरखाओं की शक्ल में आईएसआई अपने गुर्गों को कहीं भारतीय सेना में न भेज दे, ये सवाल तो रहेगा ही।

‘टूर ऑफ ड्यूटी’ को दूसरी नजर से देखा जा रहा है

साधू सिंह ने कहा, अग्निवीर को मुश्किल से पौने तीन साल की ड्यूटी मिलेगी। छह माह तो ट्रेनिंग में निकल जाएंगे। इसके बाद कई महीने की छुट्टी भी देनी होती है। सेना में जो स्थायी नौकरी पर हैं, वे ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ को दूसरी नजर से देखेंगे। इसका असर ड्यूटी क्षेत्र पर भी पड़ेगा। हो सकता है कि किन्हीं वजह से ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ वालों को कम जिम्मेदारी का काम मिले। ये भी संभव है कि मुश्किल ड्यूटी पर, चार साल की नौकरी वालों को भेज दिया जाए। ऐसी कई तरह की बातें देखने को मिलेंगी। सेना से लौटने के बाद नौकरी मिलना आसान नहीं होगा। बेरोजगारी के चलते वे दोबारा से सड़कों पर उतर सकते हैं। उन्हें पूर्व सैनिक का दर्जा भी नहीं मिलेगा। भारतीय सेना में आना व दूसरे विभागों में नौकरी करना, इसमें बहुत फर्क होता है। युवा ‘जुनून और देश भक्ति’ के चलते सेना में आते हैं। चार साल की नौकरी ये सब संभव हो पाएगा, इसकी गुंजाइश कम ही है।



Source link

Enable Notifications OK No thanks