Al Qaeda: हक्कानी गुट के इलाके में कैसे मारा गया जवाहिरी, तालिबान-पाकिस्तान या दोनों, जानें किसने दिया धोखा?


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अलकायदा के सरगना अल-जवाहिरी को अमेरिका ने अफगानिस्तान में मार गिराया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जवाहिरी को 31 जुलाई को काबुल स्थित उसके घर पर ड्रोन हमले में मारा गया। अमेरिका ने इसका खुलासा 48 घंटे बाद किया। 

इस बीच जवाहिरी को मारने के अमेरिकी मिशन को लेकर कई सवाल उठने लगे हैं। मसलन वह अमेरिका, जो बीते अगस्त में अफगानिस्तान छोड़कर निकला, उसने काबुल में मिशन को कैसे अंजाम दिया? अमेरिका को जवाहिरी के काबुल में छिपने की जानकारी कैसे मिली? जिस जगह यह ऑपरेशन हुआ, वहां अमेरिकी ड्रोन किस रास्ते से पहुंचा? किन देशों पर अमेरिका की मदद का सबसे ज्यादा शक है? आइये जानते हैं…

1. क्या तालिबान ने खोला राज?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, जवाहिरी काबुल में जिस जगह पर रह रहा था, वहां तालिबान काफी सक्रिय है। खासकर तालिबान का सबसे मजबूत और खूंखार हक्कानी गुट। हक्कानी परिवार के कई सदस्य इसी क्षेत्र में रहते हैं। ऐसे में यह मानना काफी मुश्किल है कि जवाहिरी जैसे आतंकी के काबुल में छिपे होने की जानकारी तालिबान के पास न हो। इसीलिए यह शक जताया जा रहा है कि जवाहिरी की जानकारी अमेरिका को तालिबान ने ही दी। 

शक की वजह
दरअसल, बीते कुछ महीने में आर्थिक तौर पर अफगानिस्तान की हालत काफी बिगड़ी है। तालिबान के शासन को भी अभी तक कई देशों ने मान्यता नहीं दी है। अमेरिका ने भी अफगानिस्तान के सेंट्रल बैंक की राशि को फ्रीज कर दिया है। ऐसे में लगातार बिगड़ते आर्थिक हालात को सुधारने के लिए यह काफी हद तक संभव है कि तालिबान ने ही अलकायदा सरगना को बोझ माना हो और अमेरिका को जवाहिरी के बारे में जानकारी दे दी। 
2. क्या पाकिस्तान ने छोड़ा साथ?
 एक शक यह भी है कि इस ऑपरेशन में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने अमेरिका की मदद की। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सीआईए को पहले से ही जवाहिरी के पाकिस्तान के कराची में छिपे होने की जानकारी थी। इसके बाद इस साल की शुरुआत में जब जवाहिरी पाकिस्तान से काबुल पहुंचा तब भी अमेरिका के पास उसके परिवार की गतिविधियों की जानकारी पहुंच चुकी थी। इन रिपोर्ट्स के बाद जवाहिरी की मौत में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के हाथ से भी इनकार नहीं किया जा सकता। 

शक की वजह 
जवाहिरी की मौत से एक दिन पहले ही पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने अमेरिका की उप विदेश मंत्री वेंडी शरमन से बातचीत की थी। तब मीडिया में खबरें चली थीं कि बाजवा ने शरमन से फोन पर आईएमएफ बेलआउट पैकेज दिलाने में मदद की अपील की थी। बाजवा और शरमन की इस बातचीत के बाद पाकिस्तान के विपक्षी दलों ने आर्मी चीफ के सामने कई सवाल उठाए थे। पूर्व पीएम इमरान खान ने पूछा था कि आखिर देश के सेना प्रमुख को दूसरे देश की उप विदेश मंत्री से क्यों बात करनी पड़ी? वह भी तब जब पाकिस्तान में एक सरकार और मंत्रीमंडल पहले से ही है। ऐसे में एक अंदाजा यह भी लगाया जा रहा है कि बाजवा का यह फोन कॉल जवाहिरी की जानकारी देने के लिए ही था। 
अफगानिस्तान में किस रास्ते से पहुंचा अमेरिकी ड्रोन, भूगोल से समझें किस पर सहयोग का शक?
अमेरिका ने जवाहिरी का सफाया करने के लिए अपने रीपर-एमक्यू ड्रोन (Reaper MQ Drone) का इस्तेमाल किया। अगर अफगानिस्तान को दुनिया के नक्शे पर देखा जाए तो सामने आता है कि इसकी सीमाएं पाकिस्तान, ईरान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान से लगती हैं। मौजूदा समय में इनमें से किसी भी देश में अमेरिका का सैन्य बेस या फैसलिटी मौजूद नहीं है। अफगानिस्तान के सबसे करीब अमेरिका का बेस कतर में है। ऐसे में…

  • अमेरिकी रीपर ड्रोन के लिए अफगानिस्तान के काबुल पहुंचने का एक रास्ता ईरान के हवाई क्षेत्र से है। चूंकि, अमेरिका और ईरान के रिश्ते पहले ही काफी खराब हैं, इसलिए ईरान के ऊपर से अमेरिकी ड्रोन के उड़ान भरने की संभावनाएं काफी कम हैं। ईरान के मिसाइल डिफेंस सिस्टम भी ऐसे ड्रोन्स को मार गिराने में सक्षम हैं। 
  • अमेरिकी ड्रोन के लिए दूसरा रास्ता है इराक, अजरबैजान के रास्ते तुर्कमेनिस्तान या ताजिकिस्तान से अफगानिस्तान तक जाने का। हालांकि, यह रास्ता काफी लंबा है। इसके अलावा अमेरिकी रीपर ड्रोन के लिए इस रास्ते से अफगानिस्तान जाना लगभग नामुमकिन है, क्योंकि यह दोनों ही देश रूस के काफी नजदीक हैं। यानी उसके लिए इस दूसरे मार्ग के जरिए काबुल जाना भी काफी मुश्किल माना जा रहा है।
  • अफगानिस्तान तक जाने का तीसरा रास्ता पाकिस्तान से होकर गुजरता है। हालांकि, अमेरिका ने लंबे समय से पाकिस्तान सरकार से आधिकारिक तौर पर किसी मदद की अपील नहीं की है। ऐसे में इस बात की संभावना सबसे ज्यादा है कि बाजवा और अमेरिकी उप विदेश मंत्री के बीच हुई बातचीत में जवाहिरी का मुद्दा उठा हो। इतना ही नहीं अफगानिस्तान की राजधानी में अमेरिका के इतने बड़े ऑपरेशन के बावजूद तालिबान की चुप्पी उसके सहयोग की ओर ही इशारा करती है। 

अमेरिका ने कैसे दिया अफगानिस्तान में मिशन को अंजाम?
अमेरिका ने पिछले साल अगस्त में अफगानिस्तान से सेना निकाल ली। इसके बाद माना गया कि अमेरिका के सैनिक और नागरिक अफगानिस्तान में नहीं हैं। हालांकि, अमेरिका के कुछ लोग नियमित अंतराल पर अफगानिस्तान जाते रहे। इनमें से कुछ पत्रकार तो कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ता थे। इनके बीच अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए (सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी) भी अफगानिस्तान में आतंकियों की तलाश में जुट गई। 

बताया जाता है कि अमेरिकी अधिकारियों को साल की शुरुआत में जानकारी मिली कि जवाहिरी के पत्नी और बच्चे काबुल में रहते हैं। सीआईए ने अपने सर्विलांस तंत्र से इसी जगह पर जवाहिरी के होने की पुष्टि की। अगले कुछ महीनों तक सीआईए एजेंट्स और सैटेलाइट्स की मदद से उसके घर के आसपास निगरानी की। आखिरकार जून में बाइडन को आगे के मिशन को लेकर ब्रीफ किया गया। 25 जुलाई को इस मिशन को अंजाम देने के लिए अंतिम बैठक हुई। इसमें राष्ट्रपति जो बाइडन ने सटीक ड्रोन हमले की अनुमति दी। 31 जुलाई, रविवार को सीआईए को अल-जवाहिरी घर की बालकनी में दिखा। इसके बाद ड्रोन से हमला कर उसे मार गिराया गया।

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अलकायदा के सरगना अल-जवाहिरी को अमेरिका ने अफगानिस्तान में मार गिराया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जवाहिरी को 31 जुलाई को काबुल स्थित उसके घर पर ड्रोन हमले में मारा गया। अमेरिका ने इसका खुलासा 48 घंटे बाद किया। 

इस बीच जवाहिरी को मारने के अमेरिकी मिशन को लेकर कई सवाल उठने लगे हैं। मसलन वह अमेरिका, जो बीते अगस्त में अफगानिस्तान छोड़कर निकला, उसने काबुल में मिशन को कैसे अंजाम दिया? अमेरिका को जवाहिरी के काबुल में छिपने की जानकारी कैसे मिली? जिस जगह यह ऑपरेशन हुआ, वहां अमेरिकी ड्रोन किस रास्ते से पहुंचा? किन देशों पर अमेरिका की मदद का सबसे ज्यादा शक है? आइये जानते हैं…



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