बंटवारे के समय सुनील दत्त और उनके परिवार की एक मुसलमान ने बचाई जान, ऐक्टर ने सुनाया था किस्सा


बॉलिवुड ऐक्टर, डायरेक्टर, प्रड्यूसर के साथ-साथ राजनेता रह चुके स्वर्गीय सुनील दत्त (Sunil Dutt) की आज बर्थ एनिवर्सरी है। उनका जन्म 6 जून 1929 को झेलम (पाकिस्तान) में हुआ था। एक ऐक्टर के तौर पर उन्होंने अपने फिल्मी करियर में बेहतरीन काम किया। सभी उनके अभिनय के दीवाने भी थे। लेकिन 25 मई 2005 को जब हार्ट अटैक की वजह से उनका निधन हो गया, तो हर कोई गम में डूब गया क्योंकि लोगों ने एक महान कलाकार को खो दिया था। हालांकि उनके जीवन से जुड़े कई किस्से हैं। जिनमें से एक पाकिस्तान से ही जुड़ा हुआ है। वह क्या है, आइए विस्तार से बताते हैं।

सुनील दत्त अब जानी-मानी हस्ती थे। हर कोई उनसे मिलना और बात करना चाहता था। मीडिया में भी वह इंटरव्यूज दिया करते थे। ऐसे ही एक बार उन्होंने खास बातचीत के दौरान पाकिस्तान से भारत आने का किस्सा सुनाया था। बताया था कि कैसे बंटवारे के समय उनके पिता के एक मुस्लिम दोस्त याकूब ने परिवार की मदद की थी। जो उनके खुर्द गांव (पाकिस्तान) से कुछ ही किलोमीटर दूरी पर रहा करते थे। सुनील दत्त ने ये भी बताया था कि जब वह 18 साल के थे, तब वह पहली बार भारत आए थे।


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जब सुनील दत्त से मिलने उमड़ी गांव की भीड़
इंटरव्यू में सुनील ने उस पल को याद किया था कि जब वह लंबे अरसे बाद भारत से अपने गांव (पाकिस्तान) गए थे। वहां उनका जोरो-शोरों से स्वागत किया गया था। लोग उनसे मिलने के लिए साथ में बड़े-बड़े बैनर और पोस्टर लेकर आए थे, जिसमें उनका नाम लिखा हुआ था। साथ ही गांववालों ने उनको वह जमीन भी दिखाई थी, जहां उनका जन्म हुआ था।


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गांववालों ने किया था सुनील दत्त का जोरदार स्वागत
साल 2005 में ‘रेडिफ’ को दिए इंटरव्यू में सुनील ने बताया था, ‘मैं गांव गया। वहां लोगों का इतना प्यार देखा तो मैंने उनसे पूछा कि वह मुझे इतना प्यार क्यों दे रहे हैं, तो उन लोगों ने कहा कि वो उनको (सुनील दत्त) नहीं बल्कि पूर्वजों को दे रहे हैं, जो यहां पर रहा करते थे और उनको सम्मान देते थे। पूर्वज उनके धर्म की रिस्पेस्ट करते थे। वह जमींदार थे। हमारे गांव के बाहरी इलाके में एक दरगाह थी। जब मेरे पूर्वज दरगाह के पास पहुंचते थे तो वो अपने घोड़ों से नीचे उतर जाते थे। जब तक उसके पार नहीं चले जाते थे, तब तक पैदल चला करते थे। इसके बाद वह घोड़ों पर सवार होते थे। गांववालों का कहना था जब उन्होंने इतना सम्मान दिया था तो वह क्यों न दें?’


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सुनील दत्त जब पाकिस्तान से भारत आए
सुनील ने आगे बताया, ‘जब मेरे पिता की मौत हुई थी, तब मैं 5 साल का था। मैं गांव में ही रहा करता था और मुझे कोई तकलीफ भी नहीं होती थी। गांव में अच्छा हिंदुओं से ज्यादा मुस्लिम थे। बंटवारे के दौरान मेरे पूरे परिवार को एक मुस्लिम ने बचाया था। उसका नाम याकूब था। वह मेरे पापा का दोस्त था, जो हमारे गांव से आधे किलोमीटर की दूरी पर रहता था। उसने हमें मुख्य शहर झेलम से भागने में मदद की थी। मैंने 10वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद पाकिस्तान छोड़ दिया था। मुझे कभी लाहौर जाने का मौका नहीं मिला। मैं कराची गया था जब मुझे बेनजीर भुट्टो की शादी में शामिल होने के लिए इन्वाइट किया गया था। मेरी बहुत इच्छा थी कि मेरी पत्नी (नरगिस, जिनका मई 1981 में निधन हो गया) को भी मेरा गांव देखना चाहिए कि हम कैसे स्कूल गए। लेकिन दुर्भाग्यवश यह हो न सका।’


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इन फिल्मों में नजर आए सुनील दत्त
बता दें कि सुनील ने 1958 में नरगिस से शादी की। उनके तीन बच्चे हुए, जिनके नाम संजय दत्त, प्रिया दत्त और नम्रता दत्त हैं। सुनील दत्त ने कई फिल्मों में काम किया। इसमें ‘मदर इंडिया’ (1957), साधना (1958), सुजाता (1960), पड़ोसन (1968), रेशम और शेरा (1971), उमर कैद (1975), जानी दुश्मन (1979), रॉकी (1981), धर्मयुद्ध (1988), परम्परा (1993) और मुन्ना भाई MBBS (2003) समेत कई हिट फिल्में शामिल हैं।



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