Battle Of Chanderi: वह युद्ध जिसके कारण देश ने देखा सबसे बड़ा जौहर, जानिए क्यों हुआ था चंदेरी का युद्ध


खानवा के युद्ध के परिणाम के रूप में जाना जाने वाला चन्देरी का युद्ध (Battle Of Chanderi) मेदिनी राय और मुगल शासक बाबर के बीच 1528 में लड़ा गया था। यह युद्ध देश में मुगल शासन को मजबूती से स्थापित करने में सफल रहा। यह युद्ध उत्तरी भारत के वर्चस्व के लिए लड़ी गई थी। खानवा के युद्ध में बाबर से मिली करारी हार ने भी जब राणा सांगा को अपने हथियार डालने पर मजबूर नहीं किए तब बाबर के मन में बेचैनी हो गई। युद्ध में जीवित रहने के बाद राणा ने दोबारा युद्ध की तैयारी शुरू कर दी। जब मुगल शासक बाबर को यह खबर मिली कि राणा सांगा ने बाबर को दोबारा चुनौती देने के लिए अपनी युद्ध तैयारियों को एक नया रूप दे दिया है तब बाबर ने राणा सांगा को मिटाने का फैसला लिया।

युद्ध का घटनाक्रम (Timeline Of Battle)
राणा को मिटाने के प्रयास में बाबर ने राणा के साथी यानी मालवा के शासक मेदिनी राय को हराने का फैसला किया। इस फैसले का नतीजा ये निकला कि दिसंबर 1527 में, बाबर एक घुमावदार रास्ते से मालवा की राजधानी चंदेरी के किले की ओर बढ़ने लगा। चंदेरी पहुंचने पर, 20 जनवरी 1528 को, बाबर ने शांति प्रस्ताव के रूप में चंदेरी के बदले में मेदिनी राय को शमशाबाद की पेशकश की, लेकिन राय ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।

प्रस्ताव ठुकराए जाने के बाद बौखलाए बाबर ने चंदेरी के बाहरी किले को अपनी सेना के साथ रात में अपने कब्जे में ले लिया और अगली सुबह ऊपरी किले पर भी कब्जा कर लिया। बाबर ने स्वयं आश्चर्य व्यक्त किया कि अंतिम हमले के एक घंटे के भीतर ऊपरी किला गिर गया था। हार के बाद मेदिनी राय ने भयानक जौहर समारोह का आयोजन किया जिसके दौरान किले के भीतर महिलाओं और बच्चों को मार दिया गया।

कुछ सैनिक भी मेदिनी राय के घर में जमा हो गए और सामूहिक आत्महत्या में एक-दूसरे की हत्या करने लगे। मालवा में हुआ जौहर भारतवर्ष का सबसे भयानक और सबसे बड़ा जौहर माना जाता है। यह भारतीय महिलाओं की बहादुरी की एक झलक पेश करता है। इस जौहर ने बाबर की जीत की खुशी को भी फीका कर दिया था। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि युद्ध में मेदिनी राय की मृत्यु हुई भी या नहीं। कुछ सूत्रों से संकेत मिलता है कि मेदिनी राय युद्ध में नहीं मरे थे। वह जीवित थे और उन्होंने बाबर की आधीनता स्वीकार कर ली। चंदेरी के युद्ध के कारण देश में एक व्यापक परिवर्तन देखने को मिला। देश में कई अन्य राजपूत राजाओं ने आत्मसमर्पण कर दिया और बाबर को अधीनता स्वीकार कर ली। इसी के साथ उत्तर भारत का एक बड़ा हिस्सा अब बाबर के शासन में चला गया था।

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