क्रूड ऑयल अभी और रुलाएगा, क्यों हो रहा महंगा, हम पर क्या होगा असर और राहत की उम्मीद कब तक?


नई दिल्ली . क्रूड ऑयल का भाव आज मंगलवार को 122 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर चल रहा है. रूस-यूक्रेन संकट शुरू होने के बाद यह लगातार महंगा हो रहा है. कुछ महीने पहले 100 डॉलर का स्तर पार करने के बाद इसमें लगातार तेजी बनी हुई है. भारत जैसे पेट्रोलियम के बड़े आयातक देशों के लिए यह एक बड़ी समस्या है. सबकी नजर इस बात पर है कि क्रूड ऑयल की कीमतों में गिरावट कब आएगी.

अब सवाल ये है कि यहां से क्रूड सस्ता होगा या और ऊपर जाएगा. इस सवाल पर  IIFL Securities के Commodity and Currency Research के वाइस प्रेसिडेंट अनुज गुप्ता ने न्यूज 18 हिंदी से विशेष बातचीत की. उन्होंने कहा, “इस समय की वैश्विक परिस्थतियों को देखते हुए फिलहाल क्रूड का सस्ता होना मुश्किल दिख रहा है. यहां से क्रूड ऑयल के और महंगा होने का अनुमान है. ब्रेंट क्रूड ऑयल अभी 126 डॉलर से 128 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकता है.’’

अनुज कहते हैं, अभी भारत और चीन से क्रूड ऑयल की मांग और बढ़ने का अनुमान है. वहीं, दूसरी तरफ यूक्रेन-रूस संकट का तत्काल कुछ समाधान निकलता नहीं दिख रहा. लिहाजा ऐसी परिस्थिति में क्रूड और ऊपर ही जाएगा.

बढ़ रही डिमांड
एक साल पहले मई में भारत के फ्यूल कंजम्प्शन ( तेल का उपभोग) में 23.8 फीसदी की उछाल देखने तो मिली. यह स्थिति तब थी जब दुनिया का तेल का तीसरा सबसे आयातक कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में था. तेल उपभोग में साल 2021 के लो बेस से लगातार रिकवरी देखने को मिल रही है यानी तेल की खपत लगातार बढ़ रही है.

crude oil

इंडियन ऑयल मिनिस्ट्री के पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल के डाटा के मुताबिक पिछले महीने देश में फ्यूल की कुल खपत 1.82 करोड़ टन थी. आगे इसमें कमी होने की बजाय बढ़ोतरी ही होगी. वित्त वर्ष 2021-22 में भारत ने 21.22 करोड़ टन कच्चे तेल का आयात किया था. यह आंकड़ा इस साल और बढ़ सकता है. भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का लगभग 85 फीसदी आयात करता है.

अमेरिकी से भी बढ़ेगी डिमांड
अमेरिकी गैसोलिन का भंडार इस सीजन में अपने नीचले स्तर पर पहुंच है. साल 2014 के बाद यह सबसे कम स्तर है. वहीं, अमेरिका आगामी गर्मियों के सीजन के लिए तैयारी कर रहा जब इसकी खपत सबसे ज्यादा होगी. इसका सीधा मतलब है यहां खपत बढ़ेगी और डिमांड आएगी.

ओपेक ज्यादा प्रोडक्शन बढ़ाने को तैयार नहीं
अनुज कहते हैं कि एक तरफ भारत, अमेरिका, चीन जैसे पेट्रेलियम पदार्थों के बड़े कंज्यूमर और आयातक देश में मांग बढ़ती दिख रही है. दूसरी तरफ ओपेक सदस्य प्रोडक्शन बढ़ाने को तैयार हैं लेकिन डिमांड तुलना में बहुत कम. साथ ही, रूस के क्रूड ऑयल पर अमेरिका और यूरोप का प्रतिबंध लगा हुआ है. रूस-यूक्रेन में फिलहाल मामला सुलझता नहीं दिख रहा है. युद्ध के 100 दिन से खिंचने के बावजूद हालात सुधरते नहीं दिख रहे हैं. लिहाजा इस स्थिति में क्रूड के दाम और बढ़ने तय हैं. इसका सीधा-सीधा मतलब है कि फिलहाल अभी तत्काल महंगे कच्चे तेल से राहत मिलने की उम्मीद नहीं है.

भारत पर असर ज्यादा
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा पेट्रोलियम का आयातक है. अपनी कच्चे तेल की जरूरत का लगभग 85 फीसदी हिस्सा भारत दूसरे देशों से आयात करता है. इस स्थित में यानी क्रूड महंगा होने पर भारत पर सबसे ज्यादा असर होगा.

अनुज कहते हैं कि अगर क्रूड महंगा होगा तो तेल कंपनियों पर पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने का दबाव बढ़ेगा. ऐसी स्थित में पेट्रोल-डीजल के दाम और बढ़ेंगे. अगर तेल कंपनियों को रेट बढ़ाने की इजाजत नहीं मिलती है तो सरकार को एक्साइज ड्यूटी घटानी होगी. मतलब सरकार को फिर से अरबों रुपए का टैक्स के रूप में घाटा होगा और आयात बिल बढ़ेगा.

तेल का आयात बिल तेजी से बढ़ेगा
पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल के डाटा के मुताबिक, अप्रैल-21 से मार्च -22 के बीच भारत ने तेल के आयात पर 119.2 अरब डॉलर खर्च किए. इसके पिछले साल समान अवधि में यह आंकड़ा  62.2 अरब डॉलर का था. हालांकि वह साल कोरोना महामारी वाला था तब काफी समय लॉकडाउन रहा और क्रूड ऑयल भी काफी सस्ता था. अगर क्रूड ऑयल की कीमतों में कमी नहीं आई तो भारत का इस वित्त वर्ष में तेल आयात का बिल रिकॉर्ड लेवल पर जा सकता है.

रूस से क्रूड खरीदना- ऊंट के मुंह में जीरा जैसा
युद्ध के चलते भारत रूस से सस्ता क्रूड खरीद रहा है. यह ऊंट के मुंह में जीरा जैसा है. इससे भी भारत को बहुत राहत की उम्मीद नहीं है. भारत के क्रूड आयात का मात्र 2 फीसदी रूस से आता है. बाकी ज्यादातर हिस्सा खाड़ी देशों से आता है. आयात का लगभग 16 से 18 फीसदी इराक से, इतना ही सऊदी अरब से आता है. इसके मुकाबले रूस से क्रूड की खरीदी बहुत कम है.

Tags: Crude oil, Crude oil prices, Petrol diesel price, Petrol price hike

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