नई दिल्ली. टीम इंडिया के पूर्व विकेटकीपर बल्लेबाज दीप दासगुप्ता ने भले ही सिर्फ 8 टेस्ट मैच खेले, लेकिन उनकी प्रतिभा और योग्यता पर किसी को शक नहीं था. संन्यास के बाद बंगाल के इस खिलाड़ी ने नई पारी की शुरुआत की. वे भारत के सफल काॅमेंटेटर्स में से एक हैं. उन्हें बीबीसी कॉमेंट्री टीम ने खासतौर पर भारत से बुलाया, ताकि मौजूदा सीरीज के दौरान उन्हें एक शानदार भारतीय नजरिया मिल पाए. लगातार दीप से मिलने जुलने के दौरान उनसे क्रिकेट से जुड़े कुछ अहम मुद्दों पर सवाल किए गए. बातचीत के मुख्य अंश इस तरह हैं:
कैसा लगता है, जब आप खुद को इकलौते भारतीय आवाज के तौर पर बीबीसी की कॉमेंट्री टीम में पाते हैं?
देखिए, क्रिकेट से कभी कोई शिकायत नहीं रही और इसलिए आज भी ये खेल मुझे सम्मान दे रहा है. आप मायूस होने और परेशान रहने के लिए हमेशा किसी को दोषी बना सकते हैं कि अरे मुझे तो उस चयनकर्ता का साथ नहीं मिला, उस कप्तान ने नहीं खिलाया, नहीं तो मैं ये कर सकता था या वो कर सकता था. मुझे अपने भाई की एक बात हमेशा ताउम्र याद रहेगी, जब मैंने साउथ अफ्रीका में पहला टेस्ट खेला. समीर दीघे (मुंबई के पूर्व विकेटकीपर) को उस मैच में खेलना था, लेकिन उन्हें चोट लग गई और आखिर समय में मुझे मौका मिल गया. तब मेरे भाई ने कहा कि देखो अब आगे तुम एक भी इंटरनेशनल गेम नहीं भी खेल पाओ, तब भी किसी बात की फिक्र नहीं करना, क्योंकि अब तुम टेस्ट क्रिकेटर हो चुके हो और ये गर्व की बात है, जिसे अब कोई तुमसे कभी भी छीन नहीं सकता है.
ये बताएं कि अंग्रेज जानकार आपसे किस मुद्दे पर सबसे अधिक चर्चा करते हैं?
जाहिर सी बात अभी तो बैजबॉल चल रहा है. इंग्लैंड में भी, भारत में भी और शायद क्रिकेट के हर मुल्क में इसकी चर्चा भी हो रही है. इसके अलावा स्थानीय जानकार मुझसे उन भारतीय खिलाड़ियों के बारे में पूछते हैं जिनका खेल, वो आईपीएल या फिर घरेलू क्रिकेट में नहीं देख पाएं हैं.
आपने बैजबॉल का जब जिक्र किया, तो मैं ये जानना चाहता हूं कि क्या ये वाकई में एक क्रांतिकारी सोच है?
ये नया तो बिल्कुल नहीं है. हां, इतना जरूर कहना होगा कि इस पुरानी थ्योरी को इंग्लैंड बेहतर तरीके से पैकेजिंग करने में कामयाब रहा है. वो कहावत आपने सुनी है ना, क्या कहते हैं- नई बोतल में वही पूरानी शराब जैसा ही ये मामला दिखता है.
हमने भारतीय क्रिकेट में भी देखा है कि चाहे वो वीरेंद्र सहवाग हों या फिर आज के ऋषभ पंत, इनकी भी शैली ऐसी ही है, फिर क्या अंतर है?
आपने बिलकुल ठीक बात कही. बात सिर्फ सहवाग और पंत की नहीं बल्कि आप उसमें सचिन तेंदुलकर को भी जोड़ सकते हैं. आज के दौर में विराट कोहली और रोहित शर्मा भी कभी आपको धीमे तरीके से बल्लेबाजी करते नहीं दिखेंगे. वो भी बेहद आक्रामक माइंडसेट और हमेशा हर गेंद पर रन बटोरने के लिहाज से क्रिकेट खेलते हैं. लेकिन, मैं इतना जरूर कहूंगा कि इंग्लैंड फिलहाल बेहद सकारात्मक सोच के साथ क्रिकेट खेल रही है. पहले ऐसा होता था कि हर टीम में एक या दो खिलाड़ी बेहद आक्रामक मूड में खेलता था, लेकिन इंग्लैंड और मैकुलम-स्टोक्स की जोड़ी ने अलग हटकर ये किया है कि उनकी पूरी टीम एक साथ उसी आक्रामक माइंडसेट के साथ उतर रही है. फिलहाल, ये शुरुआती दिन हैं और हमें इंतजार करना पड़ेगा कि वो कब तक और कितने समय तक इसी नजरिए के साथ क्रिकेट खेलते रहेंगे.
भारत के खिलाफ दोनों पारियों में शतक जड़ने वाले बेयरस्टो ने कामयाबी के लिए आईपीएल को श्रेय दिया, क्या टेस्ट क्रिकेट को रोमांचक बनाने में आईपीएल अपनी भूमिका अदा कर रहा है?
देखिए, एक बात आपको ये समझनी होगी कि इस पीढ़ी के बल्लेबाजों को हर दूसरे दिन एक अलग फॉर्मेट में खेलने की चुनौती होती है. ऐसे में बेयरस्टो जैसा खिलाड़ी कितनी बार पलक झपकते अपनी तकनीक और शैली में बदलाव करेगा. इस पीढ़ी के बल्लेबाजों की कोशिश यही होगी कि कैसे तीनों फॉर्मेट के बीच बल्लेबाजी करने की शैली के अंतर को पाटा जाए. उस फासले को कम किया जाए, ताकि लाल गेंद की क्रिकेट से सफेद गेंद का सफर तय करने वाला पुल बड़ा ना हो.
क्या आपको लगता है कि बुमराह का कप्तान के तौर अनुभवी नहीं होना एजबेस्टन में भारत को खला, क्योंकि टी20 के पहले मैच में रोहित की कप्तानी के साथ टीम जीत की पटरी पर लौट आई?
नहीं. मैं बुमराह की कप्तानी की अनुभवहीनता को हार के लिए बहाने के तौर पर इस्तेमाल नहीं करूंगा. भारत तो पहले 3 दिन बहुत अच्छा खेला और आखिरी दिन बाजी एकदम से पलट गई. वैसे भी बुमराह को सलाह देने के लिए कोहली और कई सीनियर खिलाड़ी मैदान में तो थे ही.
लेकिन, टीम में थोड़ी उलझन तो दिखी, रणनीति को लेकर?
किसी भी जहाज के कप्तान को तो आप बार-बार बदलते नहीं हैं. कप्तानी के साथ भी ऐसा होता है. हर कप्तान की अपनी शैली और अपना तरीका होता है. अगर कप्तान जल्दी-जल्दी बदले जाएं, तो टीम के खिलाड़ियों को भी उसी तरीके से अपना सामंजस्य बनाना पड़ता है, जो कभी भी आसान नहीं होता है. रोहित अगर एजबेस्टन में खेलते तो कप्तानी और बल्लेबाजी दोनों से असर डालते. शायद, बुमराह को ये उलझन रही हो कि वो कोहली की तरह कप्तानी करें या फिर रोहित की तरह या खुद की तरह.
भारतीय गेंदबाजी के लिए बहुत कसीदे गढ़े गए, लेकिन एक आलोचना ये भी है कि जब सबसे ज्यादा जरूरत होती है ये आक्रमण सो जाता है. साउथ अफ्रीका और टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल में भी कुछ ऐसा ही हुआ था?
नहीं. आप ना सिर्फ भारतीय आक्रमण की आलोचना कर रहें है, बल्कि ज्यादती भी कर रहे हैं. हर गेम अहम होता है. ये ठीक है कि फाइनल टेस्ट में आक्रमण उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा, लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि अगर इंग्लैंड में हम सीरीज 2-2 से बराबर करके लौटे हैं, तो उसमें भी जीत इसी आक्रमण ने दिलाई थी.
कोहली के साथ चयनकर्ताओं और टीम मैनेजमेंट ने अब तक बहुत सब्र से काम लिया है. आपको क्या लगता है?
मैं विराट का बड़ा फैन हूं और मेरा मानना ये है कि क्रिकेट में कई बार ऐसा होता है कि जब आप लय में दिखते हैं, लेकिन शतक नहीं बना पाते और कई बार जूझते-जूझते भी बड़ी पारी खेल पाते हैं. इस दौरे पर वो बड़ी पारी कभी भी आ सकती है.
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FIRST PUBLISHED : July 10, 2022, 12:58 IST