मॉनसून की रफ्तार पर लगी ब्रेक, धान व अन्य फसलों की बुआई में देरी से बढ़ सकते हैं खाद्य पदार्थों के दाम


हाइलाइट्स

गंगा के मैदानी इलाकों में मॉनसून की रफ्तार धीमी हो गई है.
जानकारों के मुताबिक, अगस्त के पहले हफ्तें में धान की बुआई संभव नहीं होगी.
फसलों की बुआई में देरी से खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ सकते हैं.

नई दिल्ली. भारत के मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने कहा है कि मॉनसून में देरी उत्तर भारत में धान की बुआई को प्रभावित करेगी. मौसम विभाग के अनुसार, मॉनसून अपनी समान्य स्थिति से उत्तर की ओर जा रहा है और अगस्त के पहले हफ्ते में गंगा के तटीय क्षेत्रों में कुछ जगह ही बरसात देखने को मिलेगी.

मॉनसून के बीच में इस तरह रुकने और धान की बुआई प्रभावित होने का असर खाद्य पदार्थों के दामों पर पड़ेगा. बता दें कि मॉनसून जब अपनी सामान्य स्थिति से दक्षिण होता है तो मैदानी इलाकों में वर्षा होती है. वहीं, जब यह अपनी सामान्य पोजीशन से उत्तर हो जाता है तो हिमालय की तली वाले क्षेत्रों में वर्षा होती है.

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धान की फसल काफी प्रभावित हुई
हिन्दुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगले एक हफ्ते तक पूरे देश में मॉनसून की रफ्तार धीमी पड़ने वाली है. चूंकि यह बुआई का सीजन है तो सुस्त मॉनसून का असर इस पर पड़ेगा. महंगाई के बीच बुआई में देरी से आने वाले समय में खाद्य पदार्थों के दाम और ऊपर जा सकते हैं. स्काइमेट वैदर के महेश पलावत ने कहा है कि कम वर्षा के का इस साल धान की फसल को काफी नुकसान पहुंचा है. वहीं, हैदराबाद में सेंटर फोर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के जी.वी. रामंजनेयुलु ने कहा है कि इसका असर अन्य फसलों पर भी होगा. उन्होंने कहा कि अगस्त के मध्य तक अधिकांश भारत में कोई बुआई नहीं होगी और इसका किसानों पर पड़ा प्रभाव पड़ेगा. उन्होंने कहा कि संभव है कि इस वजह से रबी की फसलों की बुआई में भी देरी हो.

क्या है भारत में मॉनसून की स्थिति
आईएमडी ने कहा है कि भारत में अभी तक मॉनसून सामान्य से 9 फीसदी अधिक रहा है. हालांकि, पूर्वी भारत और उत्तर-पूर्वी भारत में यह 16 फीसदी कम रहा है. जबकि उत्तर पश्चिम भारत में 4 फीसदी अधिक, मध्य भारत में 21 फीसदी अधिक और दक्षिण प्रायद्वीप में यह 28 फीसदी अधिक रहा है. जुलाई में भी बरसात की यही स्थिति रही है. पूर्वी व उत्तर पूर्वी भारत को छोड़कर बाकी जगहों पर मॉनसून सामान्य से अधिक रहा है. शुक्रवार को धान उत्पादन करने वाले गंगा के मैदानी क्षेत्रों में लगभग 40 फीसदी वर्षा की कमी दर्ज की गई. झारखंड, बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश में 47-52 फीसदी की कमी दर्ज हुई.

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