इंसुलिन का इंजेक्शन दिए बिना भी हो सकेगा डायबिटीज इलाज, IIT मंडी के रिसर्चर्स का दावा


आजकल की लाइफस्टाल में अनियमित खानपान, लंबे समय तक बैठे रहने का काम, कम पैदल चलना और एक्सरसाइज ना करना कई बीमारियों को खुला न्योता देने के समान है. इसके कारण शरीर में एक बहुत आम बीमारी प्रवेश कर जाती है, जिसका नाम है डायबिटीज. यह एक ऐसी स्थिति है, जो लगभग पूरे शरीर को नुकसान पहुंचाती है, लेकिन दिल, किडनी, आंखों और लिवर को इससे जल्दी और गंभीर नुकसान पहुंचता है. आईआईटी मंडी के रिसर्चर्स ने डायबिटीज के इलाज में कारगर एक मॉलिक्यूल का पता लगाया है. पीके2 (PK2) नाम का ये मॉलिक्यूल पैनक्रियाज़ से इंसुलिन का डिस्चार्ज शुरू करने में सक्षम है और इससे डायबिटीज के इलाज के लिए दवा की गोली बनाने की काफी संभावना जगी है.

इस स्टडी का के निष्कर्ष ‘जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल केमिस्ट्री’ में प्रकाशित किया गया है. स्टडी के मेन ऑथर और आईआईटी मंडी में स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रोसेनजीत मंडल ने बताया, “डायबिटीज के इलाज के लिए वर्तमान में एक्सैनाटाइड और लिराग्लूटाइड जैसी दवाओं का इंजेक्शन दिया जाता है. ये दवाएं महंगी और अस्थिर होती हैं. हमारा लक्ष्य सरल दवाइयां खोजना है, जो टाइप 1 और टाइप 2 दोनों तरह के डायबिटीज़ के इलाज के लिए स्थिर, सस्ता और असरदार हो.”

बीटा सेल्स में इंसुलिन का डिस्चार्ज कम होने से डायबिटीज
बीटा सेल्स में इंसुलिन का डिसचार्ज कम होने से डायबिटीज होती है. पैनक्रियाज की बीटा सेल्स से इंसुलिन का डिस्चार्ज कम होने से कई केमिकल प्रॉसेस इफेक्ट होते है. इसमें ग्लूकागन लाइक पेप्टाइड (जीएलपी1आर) नामक प्रोटीन स्ट्रक्चर्स भी शामिल होते हैं, जो सेल्स में मौजूद होते है. खाने के बाद स्रावित (secreted) जीएलपी1 नामक हार्मोनल मॉलीक्यूल इंसुलिन का डिस्चार्ज शुरू करता है. एक्सैनाटाइड (exenatide) और लिराग्लूटाइड (liraglutide) जैसी दवाएं जीएलपी1आर से जुड़कर इंसुलिन का डिस्चार्ज करती हैं.

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कैसे हुई स्टडी
दवाओं काऑप्शन तैयार करने के लिए रिसर्चर्स ने पहले कंप्यूटर सिमुलेशन से कई छोटे मॉलिक्यूल की स्क्रीनिंग की, जो जीएलपी1आर से जुड़ सकते थे. पीके2, पीके3 और पीके4 में जीएलपी1आर से जुड़ने की अच्छी क्षमता पाई गई. इसके बाद पीके2 को चुना गया, क्योंकि ये दूसरे पदार्थ के साथ बेहतर घुलता है. रिसर्चर्स ने लैब में पीके2 संश्लेषण (synthesis) किया.

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स्टडी में क्या निकला 
रिसर्चर्स ने पहले ह्यूमन सेल्स में मौजूद जीएलपी1आर प्रोटीन पर पीके 2 के जुड़ने का टेस्ट किया. इससे पता चला कि पीके2 में बीटा सेल्स से इंसुलिन के डिस्चार्ज कराने की संभावना है. पीके2 आंतों में तेजी से अब्जॉर्ब्ड हो गया. इससे तैयार दवा के इंजेक्शन के बदले खाने की गोली में इस्तेमाल की जा सकती है, दवा देने के दो घंटे के बाद ये चूहों के लिवर, किडनी और पैंक्रियाज में पहुंच गई. दवा का कोई पार्ट हार्ट, लंग्स और प्लीहा में नहीं पाया गया. बहुत कम मात्रा में ये ब्रेन में मिली. मॉलिक्यूल ब्लड ब्रेन बेरियर पार करने में सक्षम रहा. और लगभग 10 घंटे में ये ब्लड सर्कुलेशन से बाहर निकल गया.

Tags: Diabetes, Health, Health News, Lifestyle

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