क्या ज्यादा मछली खाने से स्किन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है? जानें क्या कहती है स्टडी


एक नई स्टडी से पता चला है कि ज्यादा मछली खाने से त्वचा कैंसर (Skin Cancer) का खतरा बढ़ जाता है. अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी द्वारा की गई एनआईएच-एएआरपी हाइट और हेल्थ स्टडी  (NIH-AARP Diet and Health Study)  में पाया गया कि रोजाना 42.8 ग्राम (यानी सप्ताह में लगभग 300 ग्राम के बराबर) मछली के सेवन में डेली 3.2 ग्राम के सेवन की तुलना में घातक मेलेनोमा (melanoma) का 22 प्रतिशत अधिक जोखिम था. 4 लाख 91 हजार 367 अमेरिकी वयस्कों की एक स्टडी के आधार पर साइंटिस्टों ने सुझाव दिया कि अधिक मछली खाने से भी स्किन की बाहरी परत में असामान्य कोशिकाओं के विकास का खतरा बढ़ जाता है, जिसे स्टेड 0 मेलेनोमा या स्वस्थानी मेलेनोमा (कभी-कभी भी प्री-कैंसर के रूप में जाना जाता है) के रूप में जाना जाता है. जो कि सबसे कॉमन स्किन कैंसर में से एक है.

इससे पहले मछली के सेवन और मेलेनोमा के रिस्क के बीच संबंधों का मूल्यांकन करने वाली महामारी विज्ञान की पहले की स्टडीज कुछ कम थी या हुई भी तो वो काफी असंगत रही. हालांकि कुछ स्टडीज ने मेलेनोमा के जोखिम के साथ विभिन्न प्रकार की मछली के सेवन की पहचान की. इस स्टडी का निष्कर्ष ‘कैंसर कॉजेज एंड कंट्रोल (Cancer Causes and Control)’ जर्नल में प्रकाशित किया गया है.

क्या कहते हैं जानकार

इसके अतिरिक्त, अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन हेल्दी डाइट के हिस्से के रूप में हर सप्ताह कम से कम दो बार मछली खाने की सलाह देता है. इस स्टडी के ऑथर यूनयॉन्ग चो (Eunyoung Cho) का कहना है, “हम अनुमान लगाते हैं कि हमारे निष्कर्षों को संभवतः मछली में दूषित पदार्थों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जैसे कि पॉलीक्लोराइनेटेड बाइफिनाइल, डाइऑक्सिन, आर्सेनिक और मरकरी.”

तो क्या मछली खाना ठीक नहीं है?

इंडियन एक्सप्रेस डॉटकॉम की न्यूज रिपोर्ट में फोर्टिस अस्पताल बेंगलुरु में मेडिकल ऑन्कोलॉजी और हेमेटो-ऑन्कोलॉजी की निदेशक डॉ. नीति रायजादा (Dr Niti Raizada) का कहना है, ‘मछली को ओमेगा -3 फैटी एसिड और विटामिन्स जैसे विटामिन डी और बी 2 (राइबोफ्लेविन) का सोर्स माना जाता है.’ इसके अलावा मछली कैल्शियम और फास्फोरस में भी समृद्ध है और आयरन, जिंक, आयोडीन, मैग्नीशियम और पोटेशियम जैसे मिनरल्स का भी एक बड़ा सोर्स है.

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डॉ रायज़ादा का कहना है कि सामान्य तौर पर, जबकि सभी मेलेनोमा का सटीक कारण स्पष्ट नहीं है, लेकिन सूर्य के प्रकाश से पराबैंगनी (यूवी) विकिरण के संपर्क में आने से मेलेनोमा विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है.

मछली का सेवन त्वचा के कैंसर से कैसे संबंधित है?

फोर्टिस अस्पताल मुलुंड में कंसल्टेंट हेड एंड नेक, डॉ हितेश आर सिंघवी (Dr Hitesh R Singhavi) का कहना है, “चूंकि तलने की प्रक्रिया मछली में ओमेगा -3 फैटी एसिड को काफी कम कर देती है, जो इसकी न्यूट्रीशनल वेल्यू का प्राइमरी सोर्स है, ऐसे में ये संभव है कि मछली के दैनिक सेवन में इतना अच्छा पोषण मूल्य (न्यूट्रीशनल वेल्यू) न हो. हालांकि, ये डेटा अभी भी अनिर्णायक है, क्योंकि मछली के प्रकार और खाना पकाने की विधि जैसे कारक समग्र जोखिम कारकों को प्रभावित कर सकते हैं.

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जानकारों का ये भी सुझाव है कि मछली खाना बंद करने की सिफारिश नहीं की जाती है. द एस्थेटिक क्लिनिक (The Esthetic Clinics) की कंसल्टेंट डर्मेटोलॉजिस्ट और डर्माटो-सर्जन डॉ रिंकी कपूर (Dr.Rinky Kapoor) ने समझाया. “मुझे नहीं लगता कि इस स्टडी के निष्कर्षों को भारतीयों और एशियाई लोगों की रंजित त्वचा (pigmented skin) पर लागू किया जा सकता है. बहुत से लोग, विशेष रूप से देश के पूर्वी भाग में, लंबे समय से मछली खाते आ रहे हैं. हमने आज तक मछली की वजह से मेलेनोमा की अधिक आशंका नहीं देखी है.”

Tags: Health, Health News, Lifestyle

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