एक्सक्लूसिव: ‘जर्सी’ के लिए मम्मी से समझा- कैसी होती थीं 90 के दशक की मां? पढ़ें मृणाल ठाकुर का इंटरव्यू


‘केजीएफ: चैप्टर 2’ और ‘आरआरआर’ जैसी एक्शन ड्रामा फिल्म के दौर में सिनेमाघरों में शाहिद कपूर की रोमांटिक ड्रामा फिल्म रिलीज हुई है। एक तरफ जहां यश, राम चरण और जूनियर एनटीआर इन फिल्मों में ‘लार्जर देन लाइफ’ हीरो के रूप में नजर आ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ शाहिद कपूर अपनी फिल्म के जरिए हर एक इंसान के खुद से जूझने की कहानी को बता रहे हैं। प्रशांत नील और एस एस राजामौली में जहां लीड एक्ट्रेस को ढाई से तीन घंटे की फिल्म में छोटा सा रोल निभाने की जिम्मेदारी दी गई थी, वहीं फिल्म जर्सी में मृणाल ठाकुर को अकेले घर चलाने वाली बॉस लेडी के रूप में प्रदर्शित किया गया है। साउथ सिनेमा से टीवी और अब बॉलीवुड में अपना नाम बनाने वाली मृणाल ठाकुर की छवि अब छोटे-छोटे रोल करने वाली हीरोइन से कहीं आगे निकल गई है। अमर उजाला की एंटरटेनमेंट टीम ने मृणाल ठाकुर से उनके टीवी अभिनेत्री से इंडियन एक्ट्रेस बनने तक के सफर के बारे में एक्सक्ल्यूसिव बातचीत की। पढ़िए…

आपने अपनी पहली फिल्म में एक लवर का किरदार निभाया था, वहीं अब फिल्म ‘जर्सी’ में आप एक आत्मनिर्भर पत्नि का रोल अदा कर रहीं हैं। इस सफर के दौरान बतौर अभिनेता आपके अंदर क्या बदलाव आए और आने फिल्म जर्सी में अपने किरदार को और निखारने के लिए क्या किया?

एक अभिनेता के तौर पर यह बहुत जरूरी होता है कि आप अपने किरदार को समझों। मैं अपने किरदार को जीवंत करने के लिए सेट पर मौजूद दिग्गज कलाकारों से बात करती हूं। उनके मन में मेरे किरदार की क्या छवि है, उसको समझने की कोशिश करती हूं। फिल्म ‘जर्सी’ की शूटिंग के दौरान भी मैंने कई लोगों से बात की थी। इस फिल्म में मैं एक मां का किरदार भी निभा रही हूं। इसलिए मैं अक्सर अपनी मां के साथ समय बिताती थी और उनसे यह समझने की कोशिश करती थी कि 90 के दशक में मां का मतलब क्या होता था? करियर से समझौता कर अपने बच्चों को पालने का मतलब क्या होता था? कैसे परिवर की खुशियों में अपनी हिस्सेदारी देते थे? आदि। हर किसी से अनोखे जवाब मिलते थे और मैं उन्हें एक्टिंग के दौरान इस्तेमाल करने की कोशिश करती थी। उदाहरण के तौर पर मेरी दोस्त की मां ने बताया था कि वह बचपन में मेरी दोस्त को बिना पूजा किए घर से बाहर नहीं जाने देती थी। इस चीज को हमने फिल्म में भी इस्तेमाल किया।

चाहे ‘सुपर 30’ हो, ‘बाटला हाउस’ हो या फिर ‘तूफान’ -लगभग सभी फिल्म में आप लीड में रहकर भी लीड में नहीं हैं। आपका स्क्रीन टाइन मेल एक्टर की तुलना में कम रहा है। इसके बावजूद इन फिल्मों ने आपके करियर को शेप दिया है। इसके पीछे क्या वजह हो सकती है। 

अभिनय की दुनिया में आगे बढ़ते वक्त मैंने दिवंगत अभिनेता इरफान खान को फॉलो किया था। उन्होंने कई बार फिल्मों में छोटा-सा रोल करके भी बड़ा प्रभाव डाला था। तीन घंटे की फिल्म में 2 मिनट का स्क्रीन टाइम मिलने के बावजूद उन्होंने अपने अभिनय से दर्शकों को प्रभावित किया है। उनसे ही प्रभावित होकर मैं सिर्फ अपने अभिनय पर ध्यान दिया और एक मिनट में भी अपनी छाप छोड़ने की कोशिश की। आज मैं जहां भी हूं, उन्हीं की वजह से हूं। जब मैं अपने करियर की शुरुआत कर रही थी, तब मैं स्क्रीन टाइम देखने की बजाए, इस बात को साबित करने में जुटी हुई थी कि मैं एक अच्छी कलाकार हूं। 

तूफान में सुप्रीया , जर्सी में शाहिद व पंकज कपूर और अब पीपा में ईशान के साथ काम करने जा रहीं हैं। पूरे कपूर खानदान के साथ काम करने का आपका अनुभव कैसा रहा?

मुझे ऐसा लगता है कि मैं कपूर फैमिली का ही एक हिस्सा हूं। पूरा परिवार बहुत टैलेंटेड है, हर कोई किसी न किसी एक्स-फैक्टर को टेबल पर ला रहा है। मैंने परिवार के प्रत्येक सदस्य के साथ काम करके बहुत कुछ सीखा। मैंने पंकज सर से खुद को डायरेक्टर के सामने सरेंडर करना सीखा। सुप्रिया जी से मैंने आंखों से बोलना सीखा। शाहिद एक अभिनेता के रूप में बेहद फोकस्ड हैं। वह अपने कैरेक्टर के बारे में अपने दिमाग में बहुत स्पष्ट रहते और यही मैंने उससे सीखा है। इसी तरह, ईशान से मैंने उस पल को महसूस करना और उसे समझना सीखा।”



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