‘हीरो ज्यादा पैसा लेकर जाता है, जबकि काम तो हम भी उतना ही करते हैं’ -सोनाक्षी सिन्हा


फिल्म डबल एक्सएल। दो लड़कियों की कहानी। बॉडी पॉजिटिविटी और बॉडी शेमिंग से जुड़े मुद्दे। इस कहानी को पर्दे पर सोनाक्षी सिन्हा और हुमा कुरैशी ने उकेरा है। इस बीच सोनाक्षी सिन्हा ने नवभारत टाइम के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत की और तमाम मुद्दों पर बात की। उन्होंने मेल-फीमेल एक्टर की सैलरी, बॉडी शेमिंग, भाई के निर्देशन से ट्रोलर्स जैसे कई विषयों पर बातचीत की। पढ़िए सोनाक्षी सिन्हा का इंटरव्यू।

आपकी आने वाली फिल्म डबल एक्सएल में हुमा कुरैशी के साथ आपकी कैमिस्ट्री काफी स्ट्रॉन्ग नजर आ रही है। आप लोग असल जिंदगी में दोस्त भी हैं, फिल्म में इसका कितना फायदा हुआ आपको?
मुझे तो लगता है कि बहुत फायदा हुआ है। फिल्म फीमेल दोस्ती पर आधारित है और गर्ल्स की बॉन्डिंग पर बहुत कम फिल्में बनती हैं। मुझे खुशी है कि परदे के पीछे जो हमारी बॉन्डिंग है, वो परदे पर भी नजर आ रही है। फिल्म का किरदार हमारी तरह ही है, जो असल जीवन में सपोर्ट चाहती हैं और आगे बढ़ना चाहती हैं। हमारे किरदार भी हमारी असल जिंदगी से लिए गए हैं।

Sonakshi Sinha: आपकी फिल्म बॉडी पॉजिटिविटी और बॉडी शेमिंग के मुद्दे पर आधारित है। आपने एक लड़की के रूप में अपनी फिजिकैलिटी और खुद को कब एक्सेप्ट किया?
सच कहूं तो बचपन में जब मेरा वजन ज्यादा था, मुझे लगता है तब मैं ज्यादा कॉन्फिडेंट थी क्योंकि मैं कॉन्फिडेंस को कभी भी लुक्स के आधार पर नहीं मापती थी बल्कि स्कूल में अच्छा परफॉर्म कर रही थी, पढ़ाई अच्छे से कर रही थी, स्पोर्ट्स बहुत अच्छा खेलती थी, तो ये सारी चीजें मेरे आत्मविश्वास पर चार चांद लगाती थीं न कि मैं खुद को अपने लुक्स के हिसाब से जज करती थी। मगर उस उम्र में ऐसे लोग बहुत ही कम होते हैं, जो इस तरह से सोचते हों। यहां तक की इंडस्ट्री में आने के बाद भी बहुत सारे लोग मुझसे मेरे वजन के बारे में पूछते थे, मेरे माथे पर टिप्पणी करते थे कि मेरा माथा काफी बड़ा है, तब मेरा एक ही जवाब होता था कि मेरा माथा है, मेरी मां ने मुझे दिया है और मैं बहुत खुश हूं। आज के जमाने में जहां लड़कियां अपना सपना पूरा करने की कोशिश कर रही हैं, अपना काम कर रही हैं, अच्छे से कर रही हैं, हार्ड वर्किंग है, टैलंटेड हैं, तो उनसे ये पूछना कि तुम ओवेरवेट हो या तुम्हारा माथा बड़ा है, इसका क्या तुक है। मैंने हमेशा से अपनी फिजिकैलिटी को स्वीकार किया है।

लड़कियों को सुंदर, सुशील और परफेक्ट होना चाहिए, ये धारणा कहां से बनी होगी?
मुझे लगता है, हमेशा से औरतों की यही दशा है। मेरे हिसाब से जब गुफाओं में रहने वाले आदिमानव हुआ करते थे, तब से ही औरतों का काम सिर्फ घर चलाना, बच्चे पैदा करना होता था। ये सोच तो पितृसत्तात्मक है, मगर मुझे लगता है कि आज की तारीख में ऐसा कोई काम नहीं है जो औरतें नहीं कर सकतीं। अब औरतें चांद पर जा रही हैं, आज एक औरत कैंपिंग करती है, वो इंजीनियर बनती है। आज जो चाहे वो कर सकती है, तो हमें भी चाहिए कि उस पुरानी सोच को बदल दें। उसकी पूंछ पकड़ कर न बैठें। पितृसत्ता से ही आती है ऐसी धारणा क्योंकि एक श्रेष्ठता की भावना, मर्दों की कंडीशनिंग बन चुका है, उसको बदलने की जरूरत है। आज जब औरतें इतना बदल गई हैं, तो हमने उस सोच को इतना पकड़ के क्यों रखा है? आज फिल्मों में भी अलग तरह के महिला प्रधान विषय बन रहे हैं और उन्हें स्वीकार किया जा रहा है। ये कोशिश हमारी लीजेंड नायिकाएं हमेशा से करती रही हैं, लोगों ने उनको पसंद भी किया है मगर हीरो-हीरोइन के बीच जो भेदभाव है, उसे दूर होने में समय लगेगा। हीरो और हीरोइनों के बीच की फीस में अंतर सबसे बड़ा उदाहरण है। हीरो कितना पैसा लेकर जाता है और हीरोइन को कितना मिलता है? सिर्फ इसलिए कि वो हीरो हैं, अरे काम हम भी वही कर रहे हैं, मेहनत उनसे ज्यादा कर रहे हैं, लेकिन पैसों का देख लो और ये भेदभाव सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री में नहीं, बहुत जगहों पर होता है।

आपकी फिल्म में बॉडी शेमिंग और बॉडी पॉजिटिविटी के मुद्दे को उठाया गया है। इसके अलावा ऐसे कौन-से मुद्दे हैं, जिन पर फिल्म बननी चाहिए?
मुद्दे तो कई हैं और उन पर फिल्में बन भी रही हैं। मगर मुझे लगता है कि मुद्दा कोई भी हो, उसे अगर मनोरंजक ढंग से फिल्माया जाए, तो लोग उससे ज्यादा जुड़ेंगे। आज की तारीख में लोग ज्ञान या डॉक्यूमेंट्री वाली फिल्में नहीं देखना चाहते। मनोरंजन के साथ मेसेज हो, तो लोग ज्यादा जल्दी समझते हैं। दर्शक को जब लगता है कि अरे ये तो मेरी प्रॉब्लम है, जो फिल्म में दिखाई गई है। दर्शक को लगना चाहिए कि ये उनका आइडिया है, तभी वे फिल्म को एक्सेप्ट करते हैं।

आपकी फिल्म थिएटर पर रिलीज हो रही है, तो किसी तरह का दबाव महसूस कर रही हैं आप? क्योंकि फिल्में बॉक्स ऑफिस कलेक्शन नहीं ला पा रहीं।
मेरे हिसाब से कोरोना महामारी ने बहुत-सी चीजों को बदल दिया है। एंटरटेनमेंट को देखने का नजरिया भी बदल गया है। अब ओटीटी आ गया है, बहुत सारा कॉन्टेंट अब आसानी से और कम पैसों में अवेलेबल है, तो इस हिसाब से लोगों का फिल्म देखने का नजरिया बदल गया है। मगर इसके बावजूद वो थिएटर का फील कभी भी बदला नहीं जा सकता है। जब हम परिवार के साथ जाते हैं, पॉपकॉर्न ले कर और तीन घंटा बैठ कर मजे लेते हैं, वो बहुत ही सुंदर एक्सपीरियंस होता है। मैं आशा करती हूं कि वो जल्दी वापस आ जाए क्योंकि ऐसी बहुत सी फिल्म हैं, जिनका मजा सिर्फ बड़ी स्क्रीन पर ही आता है। मैं तो यही दुआ करूंगी कि लोग हमारी फिल्म देखने थिएटर में आएं।

अपने भाई कुश सिन्हा के निर्देशन में अभिनेत्री के रूप में काम करने का अनुभव कैसा रहा? सेट पर किस तरह का माहौल था?
मैं बहुत खुश हूं क्योंकि बहुत सालों से कुश मेहनत कर रहा है ताकि उसे अपनी खुद की फिल्म डायरेक्ट करने को मिले और जब ये हो गया, तो मैं एक ऐक्टर के तौर बहुत प्राउड फील कर रही हूं इस फिल्म का हिस्सा बन कर। कभी-कभी मैं सेट पर भी उससे घर की तरह ही बात कर लेती हूं, लेकिन फिर ख्याल आता है कि वो डायरेक्टर है और अब मुझे उनको वो इज्जत देनी ही चाहिए। एक ऐक्ट्रेस के तौर पर भी मेरी कोशिश हमेशा यही रहती थी कि मैं उन पर ज्यादा ज्ञान न झाडूं, हालांकि इंडस्ट्री में मेरा तजुर्बा ज्यादा है, इसके बावजूद मैं चाहती थी कि वो खुद सीखें, खुद डिसीजन लें, अपने हिस्से की गलतियां करें और उनसे सीखें। दरअसल वो बहुत क्विक लर्नर है, यहां तक कि उन्होंने फिल्म भी अपने शेड्यूल से पहले खत्म कर दी और ये बहुत ही सराहनीय बात है एक डायरेक्टर के लिए। मैं बहुत खुश हूं कि फिल्म खुशी-खुशी शांति और सुकून से पूरी हो गई।

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सोशल मीडिया पर आप ट्रोल्स को कैसे हैंडल करती हैं? वो कभी आपकी शादी करा देते हैं, तो कभी आपका नाम जहीर इकबाल से जोड़ा जाता है?
मैं नेगेटिव लोगों से दूर ही रहती हूं और अपने काम को अपने फैंस तक पहुंचाती रहती हूं। वैसे आमतौर पर भी मैं एक बहुत ही प्राइवेट पर्सन हूं, तो सिर्फ उतना ही पोस्ट करती हूं, जितना मुझे शेयर करना होता है। मुझे लगता है कि जिंदगी की ऐसी बहुत सारी चीजें हैं जो सिर्फ आपकी होती हैं और लोगों तक उसे पहुंचाने की जरूरत भी नहीं होती। आप अपना निजी सब कुछ बांटने लग जाएं, तो फिर आपका अपना क्या बचेगा! मैं शेयर करती हूं, मगर एक हद तक। बाकी नकारात्मकता से बचने के लिए ऐसे लोगों से दूर रहती हूं।

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