(पल्लवी घोष)
नई दिल्ली: राजनीति में ऐसा कहा जाता है कि दोस्त और दुश्मन समझदारी के साथ चुनना चाहिए. भारत का राजनीतिक इतिहास ऐसे कई उदाहरणों से भरा पड़ा है जब शीर्ष राजनेताओं को दुश्मनों से ज्यादा उनके दोस्तों ने नुकसान पहुंचाया है. इस बार फिर कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के एक और दोस्त आरपीएन सिंह (RPN Singh) ने उनका साथ छोड़ दिया. आरपीएन सिंह भी राहुल गांधी के करीबी दोस्तों में से एक थे. राहुल गांधी ने उन्हें आगे बढ़ाया और यूपीए सरकार (UPA Government) में मंत्री पद दिलवाया.
राहुल गांधी और उनके पिता राजीव गांधी (Rajeev Gandhi) के राजनीतिक जीवन की तुलना एक-दूसरे से नहीं की जा सकती है. लेकिन दोनों की पॉलिटिकल लाइफ में एक बात की समानता रही है कि दोनों पिता-पुत्र को उनके दोस्तों ने निराश किया.
राजीव गांधी को भी दोस्तों ने दिया था धोखा
हालांकि इस मामले में सोनिया गांधी ज्यादा चतुर रही हैं. क्योंकि वे अपने दोस्तों और राजनीतिक सलाहकारों के बीच दूरी बनाए रखने में कामयाब रही हैं. राजीव गांधी की तरह राहुल गांधी को भी ‘दून गैंग’ ने घेर लिया है. वी पी सिंह और अरुण सिंह की राजीव गांधी के राजनीतिक जीवन पर अच्छी पकड़ थी. उनमें सबसे आगे अरुण सिंह थे. बताया जाता है कि जब अरुण सिंह रक्षा राज्य मंत्री थे भारतीय सेना ने आर्मी चीफ कृष्णास्वामी सुंदरजी के नेतृत्व में भारत-पाकिस्तान सीमा पर बड़े सैन्य अभ्यास की योजना बनाई थी. जिसका कोड नाम था ‘ब्रासस्टैक्स’ था. सेना के इस युद्धाभ्यास की योजना को अरुण सिंह ने मंजूरी दे दी थी. जिससे पाकिस्तान में भारत की ओर से मिलिट्री एक्शन का डर पैदा हो गया था. भारतीय मीडिया में ऐसी खबरें आने लगी पाकिस्तानी सेना अपने जवानों को युद्ध जैसे हालात का सामना करने के लिए तैयार कर रहा है.
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इस पूरे मामले को एक कूटनीतिक विफलता के तौर पर देखा गया और विदेश मंत्रालय को इसके बारे में नहीं बताया गया. जब तत्कालीन विदेश मंत्री नटवर सिंह ने प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बताया कि रक्षा मंत्री अरुण सिंह ने इस मामले में उन्हें कोई जानकारी नहीं दी, इसलिए उन्हें बर्खास्त किया जाना चाहिए. नटवर सिंह को जवाब देते हुए राजीव गांधी ने कहा कि अरुण सिंह उनके दोस्त हैं. इस पर राजीव गांधी
को बताया गया कि वह प्रधानमंत्री हैं किसी के दोस्त नहीं.
ऐसा ही कुछ बोफोर्स घोटाले के दौरान हुआ जब धीरे-धीरे राजीव गांधी के करीबी दोस्तों ने उनका साथ छोड़ दिया. इनमें वी पी सिंह और अरुण सिंह शामिल थे और इसे विश्वासघात के तौर पर देखा गया. सूत्रों का कहना है कि यह वह पल था जिसे राजीव गांधी कभी भूल नहीं पाए.
मौजूदा वक्त की बात करें तो राहुल गांधी भी अपने राजनीतिक जीवन के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं. पार्टी को लेकर उनके राजनीतिक प्रयोग असफल रहे हैं. कई राज्यों से कांग्रेस की सरकारें चली गई. अब पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और अन्य राज्यों के चुनावों उनके लिए लिटमस टेस्ट होंगे. लेकिन जिस बात ने उन्हें सबसे ज्यादा प्रभावित किया है वह है उनके सबसे करीबी लोगों का पार्टी छोड़कर जाना. इनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद और आरपीएन सिंह जैसे नाम शामिल हैं.
2014 के बाद शुरू हुआ विश्वासघात का सिलसिला
2004 में जब यूपीए सरकार का गठन हुआ और कांग्रेस बुलंदियों पर थी. इस वक्त राहुल गांधी ने सुनिश्चित किया कि उनके दोस्तों को मंत्री बनाया जाए और अच्छे मंत्रालय दिए जाएं. राहुल गांधी अपने इन दोस्तों के संपर्क में रहते थे और अक्सर उनसे सलाह-मशविरा लेते थे. पार्टी से जुड़े कार्यक्रमों में राहुल गांधी अपने करीबी दोस्तों के साथ नजर आते थे. लेकिन 2014 में कांग्रेस के सत्ता से बेदखल होने के बाद धीरे-धीरे करीबी दोस्त उनका साथ छोड़ते चले गए और इस तरह विश्वासघात का यह सिलसिला शुरू हुआ.
इन दोस्तों के एक-एक कर पार्टी छोड़ने के बाद राहुल गांधी की दोस्ती की पसंद पर सवाल खड़े होने लगे. कई लोगों इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की तरह राहुल गांधी को भी दोस्तों के द्वारा किए गए विश्वासघात का शिकार होने की बात कही. ऐसा लगने लगा कि राहुल गांधी भी अपने पिता राजीव गांधी की तरह दोस्ती के मामले में बदकिस्मत रहे. ‘दून स्कूल फ्रेंड्स’ जिनके साथ राहुल गांधी ने अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी अब वे उनके साथ नहीं हैं.
आरपीएन सिंह के बीजेपी में शामिल होने के बाद कांग्रेस G-23 के एक सदस्य की ओर से News18.com पर एक टिप्पणी आई, कि “राहुल गांधी हमें नापसंद करते हैं और हम पर भरोसा नहीं करते हैं. लेकिन हम अभी भी पार्टी के साथ हैं, जबकि जिन्हें वह अपना दोस्त मानते थे, वे दुश्मन के खेमे में शामिल हो गए हैं और उन्हें अकेला छोड़ दिया है.”
एक मशहूर हिंदी गीत के बोल हैं कि…’दुश्मन ना करे दोस्त ने वो काम किया.’ कुलमिलाकर यह साफ है कि राजनीति और दोस्ती के मामले में राहुल गांधी समझ के साथ काम लेने की जरूरत है और इसे लेकर उनकी कोशिशें जारी हैं.
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