Kashi Vishwanath Mandir: एक या दो बार नहीं बल्कि कई बार तोड़ा गया है काशी विश्वनाथ मंदिर, जानें पूरा इतिहास


वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद मामले में कल इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। मंदिर पक्ष के अधिवक्ता ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वेक्षण के दौरान मिले विशाल शिवलिंग और मंदिर के तमाम अवशेषों की जानकारी दी और वहां सुरक्षा बढ़ाई जाने की बात कही। आइए काशी विश्वनाथ मंदिर के इतिहास (Kashi Vishwanath Mandir History) के विषय में अपना ज्ञान मजबूत करते हैं।

शिव और पार्वती का आदि स्थान काशी विश्वनाथ को प्रथम लिंग माना गया है। इसका उल्लेख महाभारत में भी किया गया है। इतिहासकारों के मुताबिक आस्था के इस केंद्र को मोहम्मद गोरी ने 1194 में तुड़वा दिया। फिर दोबारा इसे बनाया गया और 1447 में सुल्तान महमूद शाह ने काशी विश्वनाथ मंदिर को (Kashi Vishwanath Mandir) दोबारा तोड़ दिया। डॉ एएस भट्ट की किताब ‘दान हारावली’ में जिक्र है कि 1585 में टोडरमल ने इसे दोबारा आकार दिया। फिर शाहजहां के आदेश पर उसे पुनः तोड़ने का प्रयास किया गया। लेकिन विरोध के कारण वे मुख्य मंदिर को नहीं तोड़ पाए तब भी 63 अन्य मंदिरों को तोड़ दिया गया।

इतिहासकरों के अनुसार जब औरंगजेब सत्ता में आया तो उसने 1669 में काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का फरमान जारी कर दिया। जो फरमान कोलकाता के एशियाटिक लाइब्रेरी में आज भी सुरक्षित रखा हुआ है। औरंगजेब के आदेश पर मंदिर तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया। इसका उल्लेख साकी मुस्तइद खां की किताब मासीदे आलमगिरी में भी किया गया है।

18वीं सदी में मराठा सरदार ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए और 1770 ई में बादशाह शाह से मंदिर के क्षतिपूर्ति की वसूल करने का आदेश भी पारित करा लिया। लेकिन उस वक्त तक देश में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन हो गया था। सन् 1809 में काशी के हिंदुओं ने मंदिर के स्थान पर बनाए गए मस्जिद पर कब्जा कर लिया जिसे आज के समय में ज्ञानवापी मस्जिद कहा जा रहा है । 1810 में काशी के तत्कालीन डीएम मि. वाटसन ने एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं को सौंपने के लिए कहा। हालांकि ये कभी वास्तविक रूप से लागू नहीं हो पाया। इतिहास की कई किताबें मंदिरों के निर्माण और उनके विध्वंस के बारे में जानकारी देते हैं।

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