महीनों बाद मानसिक रोगों का खतरा पैदा कर रहा है कोविड संक्रमण – स्टडी


कोरोनावायरस महामारी के घटते-बढ़ते प्रकोप के बीच बीतते समय के साथ उसके अलग-अलग साइड इफेक्ट्स भी देखने को मिल रहे हैं, जिसे लेकर साइंटिस्ट्स की चिंता बनी हुई है. अब अमेरिका की ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी (Oregon State University) की स्टडी में सामने आया है कि कोविड संक्रमण महीनों बाद मानसिक विकारों (Mental disorders) का खतरा पैदा कर रहा है. रिसर्चर्स का कहना है कि कोविड-19 संक्रमण के चार महीने बाद इसके रोगियों में रेस्पिरेटरी सिस्टम की अन्य बीमारियों से ग्रसित लोगों की तुलना में मानसिक विकारों का रिस्क करीब 25% ज्यादा पाया गया है.

इस स्टडी के नतीजे कोविड मरीजों पर मेंटल डिसऑर्डर के इफेक्ट्स की पहले की स्टडीज की पुष्टि करते है, लेकिन ताजा स्टडी में इस प्रकार का असर कमतर प्रमाण (lesser proof) में पाया गया है.  इस स्टडी का निष्कर्ष ‘व‌र्ल्ड साइकाइट्री (World Psychiatry)’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है.

कैसे हुई स्टडी
इस नई स्टडी के लिए नेशनल कोविड कोहोर्ट कोलैबोरेटिव (National Covid Cohort Collaborative) यानी एन3सी (N3C) के डाटा का इस्तेमाल किया गया है. इसमें कोविड पॉजिटिव 46,610 लोगों के डाटा की तुलना कंट्रोल ग्रुप के मरीजों से की गई, जो रेस्पिरेटरी सिस्टम (श्वसन तंत्र) से जुड़ी किन्हीं अन्य बीमारियों से पीड़ित थे. इससे कोविड-19 मरीजों के मानसिक स्वास्थ को समझना आसान हुआ.

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रिसर्चर्स ने मानसिक स्वास्थ्य जांच की
रिसर्चर्स ने स्टडी में शामिल प्रतिभागियों के मेंटल हेल्थ की दो मौकों पर जांच की. पहली जांच संक्रमण के 21 से 120 दिनों के बीच और दूसरी जांच 120 से 365 दिनों के बीच की गई. इन लोंगों में पहले कोई मानसिक बीमारी नहीं थी. विश्लेषण में रिसर्चर्स ने पाया कि कोविड-19 रोगियों के मानसिक विकारों से ग्रस्त होने की दर 3.8 प्रतिशत थी, जबकि रेस्पिरेटरी सिस्टम की अन्य बीमारियों से ग्रसित लोगों में इसकी दर 3.0 प्रतिशत ही थी.

स्टडी में क्या निकला
रिसर्चर्स ने बताया कि 0.8 प्रतिशत का ये अंतर मेंटल डिसऑर्डर का रिस्क करीब 25% बढ़ाता है. शोधकर्ताओं ने इस स्टडी में खासतौर पर प्रतिभागियों में बेचैनी और मूड डिसऑर्डर का विश्लेषण किया. इसमें पाया कि बेचैनी के मामले में तो दोनों ग्रुपों के प्रतिभागियों में जोखिम के स्तर में उल्लेखनीय अंतर था. जबकि मूड डिसऑर्डर में कोई खास अंतर नहीं था.

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रिसर्चर्स का ये भी कहना है कि ज़रूरी नहीं है कि कोविड-19 संक्रमित हर रोगी को इस प्रकार की समस्या हो, लेकिन ऐसे जोखिम से अनजान न रहें और अपने आसपास के लोगों पर नजर रखें. इससे हेल्थ सर्विसेज पर एक अलग दबाव बढ़ा है. उन्होंने कहा कि हम मानसिक विकारों के निपटने के लिए पहले से ही विशेषज्ञों की कमी से जूझ रहे हैं, इसलिए यदि इस बात पर ध्यान नहीं दिया गया तो आगे चलकर समस्याएं और बढ़ने वाली हैं.

Tags: Health, Health News, Lifestyle

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