मूवी रिव्यू: शाबाश मिथु


‘यतो हस्त: ततो दृष्टि, यतो दृष्टि ततो मन: यानी जहां हाथ हैं, वहां नजर होनी चाहिए। जहां नजर है वहीं मन होना चाहिए। भरतनाट्यम के इस मूल मंत्र के सहारे क्रिकेट का ककहरा सीखने वाली मिथु यानी मिताली (तमिल में मिथाली) राज की जिंदगी पर बनी प्रेरणायक फिल्म ‘शाबाश मिथु’ की नजर, नजरिया और आत्मा सब एकदम सही जगह पर है।

‘शाबाश मिथु’ की कहानी
देश की सफलतम क्रिकेटर्स में से एक भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान मिताली राज की ये बायॉपिक एक ओर जहां मिथु (मिथाली का उपनाम) के भरतनाट्यम करते-करते क्रिकेटर बनने और फिर एक बिना पहचान वाली महिला क्रिकेट टीम को अपने खेल के दम पर पहचान दिलाने के संघर्ष को दिखाती है, तो साथ ही घर से लेकर क्रिकेट तक में लड़के और लड़की के बीच के भेदभाव पर भी सवाल उठाती जाती है। प्रिया एवेन की लिखी और सृजित मुखर्जी निर्देशित ये फिल्म मिथु (तापसी पन्नू) के बचपन से लेकर बतौर कप्तान 2017 के विश्व कप में फाइनल तक के सफर का रचनात्मक दस्तावेजीकरण है। इस सफर की शुरुआत में मिथु रूपी इस सचिन को पहले दोस्त नूरी के रूप में अपनी कांबली मिलती है, जो उसे खेल का पहला नियम सिखाती है कि आउट नहीं होना है। फिर, पहली नजर में उनकी प्रतिभा पहचानने वाले कोच संपत (विजय राज) उसे जिंदगी का मूल मंत्र देते हैं कि ये मैदान भी जिंदगी की तरह है, यहां कोई दर्द बड़ा नहीं, सिर्फ खेल बड़ा है। अपनी प्रतिभा और इन मंत्रों के सहारे मिताली हर चुनौती को पार करके भारतीय महिला क्रिकेट टीम की सबसे कम उम्र की कप्तान बनती है।

‘शाबाश मिथु’ का रिव्यू
हालांकि, आम तौर पर जिस तरह के आर्थिक-सामाजिक संघर्ष हम अपने नायकों और नायिकाओं की जिंदगी में देखते हैं, वैसी कोई दिक्कत मिताली को नहीं रही। न पैसों की तंगी, न मां-बाप को मनाने की जद्दोजहद। बल्कि उसकी सहेली नूरी से लेकर उसकी टीम में शामिल एक चायवाले, एक लोहार, चमड़ा बनाने वाले की बेटियों का संघर्ष कहीं बड़ा लगता है। लेकिन हां, लड़की होने की कमतरी का अहसास मिथु बचपन से सहती रही है। भाई के बजाय उसके टीम पर सिलेक्ट होने पर दादी और भाई की नाखुशी उसने साफ देखी। महिला क्रिकेट खिलाड़ियों और पुरुष क्रिकेट खिलाड़ियों के भेदभाव को हर वक्त महसूस किया। फिल्म के कई सीन, जैसे पुरुष क्रिकेटर्स के होर्डिंग के सामने बैठकर महिला क्रिकेटर्स का यूरीन करना, एक लड़की का भारतीय महिला टीम की इस कप्तान से पुरुष क्रिकेटर के साथ उसकी फोटो खींचने को कहना, एयरपोर्ट कर्मियों का महिला क्रिकेटर्स के साथ बर्ताव आदि आपको भी वो भेदभाव और दर्द महसूस करने पर मजबूर कर देता है।

‘शाबाश मिथु’ का ट्रेलर

क्या है फिल्म की कमजर कड़ी
लेकिन फिल्म की एक बड़ी कमजोर कड़ी है उसकी सुस्त रफ्तार। कई सीन बेवजह खींचे हुए लगते हैं। खासकर इंटरवल के बाद मिताली के हार मानकर लौटने के बाद का घटनाक्रम ऊब पैदा करता है। उस पर अमित त्रिवेदी के गाने भी फिजूल में फिल्म की लंबाई बढ़ाने का काम करते हैं। फिल्म को कम से कम 20 मिनट कसा जाना चाहिए था। आखिर में विश्व कप क्रिकेट के दौरान भी मिताली का योगदान सही ढंग से हाईलाइट नहीं हो पाता। लेकिन अदाकारी की बात करें, तो तापसी की मेहनत रंग लाई है। उन्होंने बिना भारी-भरकम डायलॉगबाजी के पूरी ईमानदारी से मिताली को पर्दे पर उतारा है। हालांकि, उनके लुक पर और बेहतर काम किया जा सकता है। उनके चेहरे का डार्क मेकअप ध्यान भटकाता है। विजय राज अपने किरदार में फबते हैं। उसके अलावा नन्हीं मिथु के रूप में इनायत वर्मा और छोटी नूरी के रूप में कस्तूरी जगनाम दिल जीत लेती हैं।

क्यों देखें: महिला क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान मिताली राज की जिंदगी के प्रेरणादायी सफर को दिखाती ये फिल्म देखी जानी चाहिए।

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