MS Disease: 20-30 साल की महिलाओं को शिकार बना रही मल्‍टीपल स्‍क्‍लेरोसिस, AIIMS की प्रोफेसर ने दी सलाह


नई दिल्‍ली. आज वर्ल्‍ड मल्‍टीपल स्‍क्‍लेरोसिस डे है. विश्‍व में करीब 25 लाख लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं. यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें मरीज का अपने शरीर से नियंत्रण खत्‍म होता चला जाता है और वह कमजोर होने के साथ ही चलने-फिरने के योग्‍य भी नहीं रह जाता है. इसके कुछ लक्षण लकवा से भी मिलते हैं लेकिन यह बीमारी मल्‍टीपल स्‍क्‍लेरोसिस है जो शरीर के प्रमुख नर्वस सिस्‍टम को प्रभावित करती है. यह एक ऑटोइम्‍यून डिसऑर्डर है जो खासतौर पर मस्तिष्‍क, रीढ़ की हड्डी की नसों और ऑप्टिक नर्व को प्रभावित करती है. स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञों की मानें तो इस बीमारी का जो सबसे खतरनाक पहलू है वह यह है कि यह 20 से 30 साल की उम्र में लोगों को खासतौर पर अपना शिकार बना रही है.

दिल्‍ली स्थित ऑल इंडिया इंस्‍टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में सेंटर ऑफ एक्‍सीलेंस में प्रोफेसर डॉ. मंजरी त्रिपाठी न्‍यूज 18 हिंदी से बातचीत में बताती हैं कि एमएस बीमारी में मस्तिष्‍क से शरीर के अन्‍य अंगों तक जाने वाले विद्युत संकेत नहीं पहुंच पाते हैं. जिसकी वजह ब्रेन का शरीर के हिस्‍सों से नियंत्रण हट जाता है और शरीर में कहीं भी मांसपेशियों का संचालन और संतुलन बिगड़ जाता है. इस बीमारी के कारण एकाएक आंख की रोशनी भी जा सकती है.

डॉ. मंजरी कहती हैं कि इस बीमारी में हमारे शरीर में इम्‍यूनिटी के लिए जिम्‍मेदार सेल्‍स खुद ही शरीर पर हमला करते हैं. ये ब्रेन के नर्वस सिस्‍टम यानि न्‍यूरोन्‍स पर हमला करती हैं. ऐसा क्‍यों होता है यह अभी रिसर्च का विषय है. लेकिन जो अभी तक सामने आया है उनमें पाया गया है कि कुछ वायरस होते हैं जो क्लिनिकली या सब क्लिनिकली प्रभाव डालते हैं, कई बार इसकी जानकारी भी मरीज को नहीं होती है कि उस पर किसी वायरस ने हमला कर दिया है. ऐसे में किसी वायरस के इन्‍फेक्‍शन के कारण, किसी वैक्‍सीनेशन या बिना किसी कारण के भी ये बीमारी पनप सकती है.

क्‍या है मल्‍टीपल स्‍केलेरोसिस
डॉ. मंजरी कहती हैं कि इस बीमारी में एक्‍यूट अटैक आते हैं. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि शरीर में रूटीन से अलग कोई भी नया लक्षण पैदा हो और वह 24 घंटे से ज्‍यादा समय तक रहे, जैसे अचानक से किसी पैर या हाथ सुन्‍न हो जाए, पैरों में लकवा मार जाए, पैरों में एकदम कमजोरी आ जाए, पैर या हाथ काम करना बंद कर दें, मांसपेशियों में एंठन या कठोरता हो, मिरगी आए और ये स्थिति 24 घंटे से ज्‍यादा समय तक बनी रहे तो यह मल्‍टीपल स्‍क्‍लेरोसिस हो सकता है. इस प्रकार की स्थिति कई बार हो सकती है. जिसे मल्‍टीपल स्‍केलेरोसिस अटैक कहा जाता है.

ये होते हैं लक्षण
. हाथ या पैर अचानक काम करना बंद कर सकते हैं.
. इस बीमारी के होने पर कुछ ही घंटों या पलों में आंख की रोशनी जा सकती है. यह एकदम एक्‍यूट होता है.
. एक चीज दो भी दिखाई दे सकती हैं. यानि डबल विजन की समस्‍या.
. बोलने में समस्‍या या उच्‍चारण का स्‍पष्‍ट न होना.
. थकान, तनाव और शरीर में दर्द रहना.
. शरीर में या किसी अंग में झनझनाहट.

इस बीमारी के ये हो सकते हैं कारण
डॉ. मंजरी कहती हैं कि जहां तक रिस्‍क फैक्‍टर की बात है तो विटामिन डी एक बड़ा कारण हो सकता है. अगर किसी के शरीर में इस विटामिन की कमी है तो मरीज को बार बार मल्‍टीपल स्‍क्‍लेरोसिस के अटैक आ सकते हैं. इसके अलावा अगर बहुत ज्‍यादा तनाव है तो भी ये बीमारी बार बार सामने आ सकती है. देखा गया है कि बहुत ज्‍यादा डेयरी प्रोडक्‍ट जैसे दूध, दही, चीज आदि इस्‍तेमाल करने पर भी ये बीमारी हो सकती है. वहीं मांसाहारी लोग जो रेड मीट खाते हैं उनमें भी ये बीमारी ट्रिगर हो सकती है. कई बार रसोई में साफ-सफाई के लिए इस्‍तेमाल किए जाने वाले कैमिकल, इन्‍सेक्टिसाइड, पेस्‍टीसाइड्स आदि के संपर्क में रहने से भी ये बीमारी हो सकती है. इसके अलावा शरीर में एक एंटीजन होता है जो इम्‍यूनिटी से डील करता है, उसका एक विशेष टाइप हो तो यह हो सकता है. यह जेनेटिक नहीं है.

देश में महंगी और सस्‍ती दवाएं हैं मौजूद
डॉ. मंजरी त्रिपाठी कहती हैं कि आज हमारे देश में इस बीमारी का इलाज है. इसके लिए महंगी से महंगी और सस्‍ती से सस्‍ती दवाएं मौजूद हैं. दवाओं से लेकर इंजेक्‍शन भी हैं. कुछ इंजेक्‍शन मरीज खुद भी ले सकते हैं. वहीं कुछ इंजेक्‍शन ऐसे में भी हैं जो प्रेग्‍नेंसी में भी दिए जाते हैं. हालांकि अच्‍छी बात देखी गई है कि गर्भावस्‍था में यह बीमारी कम प्रभावित करती है और इसके अटैक कम आते हैं. हालांकि सबसे ज्‍यादा जरूरी चीज है वह यह है कि मरीज को अगर मल्‍टीपल स्‍क्‍लेरोसिस के अटैक आ रहे हैं तो वह तुरंत डॉक्‍टर से संपर्क करें.

एमएस के मरीज ये करें उपाय
. डॉ. मंजरी कहती हैं कि मल्‍टीपल स्‍क्‍लेरोसिस होने पर योग करें, तनाव को कम करें. अमेरिका ने स्‍टडी की है जिसमें पाया है कि योग से एमएस के मरीजों को फायदा पहुंचा है.
. एमएस के मरीजों को ठंडे वातावरण में रहना चाहिए. जहां ठंडक हो.
. डायट अच्‍छी होनी चाहिए. रेड मीट, दूध के प्रोडक्‍ट कम लें. प्राकृतिक भोजन लें. आर्टिफिशियल फ्लेवर आदि का खाना न खाएं. फाइबर युक्‍त, विटामिन और प्रोटीन से युक्‍त खाना लें.
. घर में सफाई प्राकृतिक चीजों से सफाई करें, बजाय कैमिकल्‍स के.
. बहुत कठिन फिजिकल एक्‍टीविटीज न करें.
. बीमारी के बारे में ज्‍यादा सोचें नहीं और पढ़ें नहीं.
. अगर बीमारी की जानकारी मिल रही है तो शुरुआत में ही डॉक्‍टर के पास पहुंचें. इतना ही नहीं अगर इलाज चल रहा है तो फायदा पड़ने पर इलाज को बीच में न छोड़ें. इलाज पूरा लें.

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