Congress Protest: कभी दादी के इस चमत्कारी मंत्र ने दी थी कांग्रेस को संजीवनी, इस बार वक्त की नजाकत समझें राहुल


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महंगाई के विरोध में शुक्रवार को कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली के अलावा देश के दूसरे हिस्सों में भी विरोध प्रदर्शन किया। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष एवं लोकसभा सांसद राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा समेत पार्टी के अनेक वरिष्ठ नेताओं को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। भाजपा ने इस प्रदर्शन पर पलटवार करते हुए कहा, ये सब ‘ईडी’ जांच से बचने के लिए हो रहा है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 1971 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी। विपक्ष द्वारा इंदिरा गांधी को हटाने की मुहिम छेड़ी गई थी। ‘इंदिरा हटाओ, देश बचाओ’ और ‘देखो इंदिरा का ये खेल, खा गई राशन, पी गई तेल’ जैसे नारे गूंज रहे थे। तब इंदिरा गांधी ने अपने एक नारे ‘वो कहते हैं इंदिरा हटाओ, हम कहते हैं गरीबी हटाओ’, से विपक्ष को चारों खाने चित कर दिया था। कांग्रेस के ‘युवराज’ राहुल गांधी, अपनी दादी का वो चमत्कारी मंत्र नहीं खोज पा रहे हैं।

इंदिरा ने तब यूं पलट दी थी बाजी

इंदिरा गांधी को उस वक्त न केवल विपक्ष का, बल्कि पार्टी के भीतर भी विरोध का सामना करना पड़ रहा था। उन्होंने ‘वे कहते हैं इंदिरा हटाओ, हम कहते हैं गरीबी हटाओ’ नारे को लेकर धुआंधार चुनाव प्रचार किया। जो बाजी, कांग्रेस पार्टी हारती हुई नजर आ रही थी, वह पलट गई। कांग्रेस को 518 में से 352 सीटों पर जीत मिली। कांग्रेस की कार्यशैली और नेतृत्व क्षमता सहित पार्टी के कई घटनाक्रमों को अपनी पुस्तक में जगह दे चुके रशीद किदवई कहते हैं, इंदिरा गांधी के पास चमत्कारी नेतृत्व शैली थी। उन्होंने अपने जीवन में बहुत से उतार चढ़ाव देखे थे। ऐसा नहीं है कि पार्टी में सभी लोग उनकी कार्यशैली से खुश थे। वरिष्ठ नेताओं की एक लंबी कतार उनके खिलाफ खड़ी थी। फरवरी 1959 में जब इंदिरा को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद की कमान सौंपी गई तो उसे लेकर भी कांग्रेसी नेता एकमत नहीं थे। 1971 की जीत के बाद जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं, तो दुनिया ने उनकी ताकत महसूस की। ऐसा नहीं था कि उन पर कोई आरोप नहीं लगे थे। अपने बेटे संजय गांधी को लेकर वे घिर गई थीं। ब्रिटेन में रॉल्स रॉयस से ट्रेनिंग लेकर जब संजय गांधी स्वदेश लौटे, तो उन्होंने सस्ती कार बनाने की योजना बनाई। इंदिरा पर संजय को फायदा पहुंचाने के आरोप लगे। मामला संसद में भी गूंजा। उन्होंने विपक्ष की परवाह नहीं की और संजय को आगे बढ़ने का मौका दे दिया।

राहुल गांधी, वैसा कुछ नहीं सोच पा रहे

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने राफेल का एक बड़ा मुद्दा उठाया था, उस वक्त लग रहा था कि वे वाकई मोदी सरकार को घेरने में कामयाब हो जाएंगे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने वह मुद्दा खारिज कर दिया। चुनाव में पराजय मिली। आवाज उठी तो राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष का पद भी छोड़ना पड़ा। इसके बाद न तो कांग्रेस ही मजबूती से खड़ी हो सकी और न ही विपक्ष एकजुट हो सका। बतौर रशीद किदवई, इंदिरा गांधी को पार्टी के भीतर और बाहर अनेक मुसीबतों का सामना करना पड़ा, लेकिन वे अपने विरोधियों को पटकनी देना अच्छे से जानती थीं। 2019 के बाद कांग्रेस पार्टी के भीतर जो मतभेद उभरे, वे बढ़ते ही चले गए। विरोधी नेताओं का जी-23 गुट खड़ा हो गया। राहुल के कई युवा साथी ही पार्टी को अलविदा कह गए। पार्टी कार्यकर्ताओं को यह नहीं समझ में आया कि पार्टी में सुप्रीम कौन है। लंबे समय तक पार्टी को स्थायी अध्यक्ष तक नहीं मिल सका। कुछ नेता सोनिया गांधी के यहां उपस्थिति दर्ज कराने लगे तो बाकी राहुल और प्रियंका की टीम में पहुंच गए। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में पार्टी का खराब प्रदर्शन रहा।

‘कांग्रेस मुक्त भारत’ को ठीक से नहीं समझ सके ‘राहुल’…

भाजपा ने 2014 में सत्ता प्राप्ति के बाद से ही कांग्रेस मुक्त भारत का एजेंडा आगे बढ़ा दिया। वह लगातार इस एजेंडे पर चलती रही। कांग्रेस एवं दूसरे विपक्षी दल इसे नहीं समझ सके। भाजपा अपने उस एजेंडे के बहुत करीब तक पहुंच गई है। बतौर किदवई, भले ही कोई नेता इसके लिए ईडी या किसी दूसरी एजेंसी को जिम्मेदार बताता रहे। आज समूचा विपक्ष, नेतृत्व विहीन है। उसे एक ऐसा नेता तक नहीं मिल पा रहा है, जो भाजपा के समक्ष खड़ा हो सके। सभी विपक्षी दलों को एक प्लेटफॉर्म पर लाने की क्षमता रखता हो। आजादी के बाद जब कांग्रेस पार्टी की पहली हार हुई तो कई नेता इधर-उधर होने लगे। उस वक्त भी इंदिरा गांधी की हिम्मत देखने लायक थी। यहां तक कि तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष ब्रह्मानंद रेड्डी ने 1978 में इंदिरा गांधी को बाहर का रास्ता दिखा दिया। तब इंदिरा गांधी ने नई कांग्रेस की घोषणा कर दी। उसे इंदिरा कांग्रेस या कांग्रेस (आई) कहा गया।

अन्यथा वे ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ को देखेंगे…

राहुल गांधी को आज वैसा ही आत्मविश्वास दिखाना होगा। उन्हें विपक्ष को साथ लेकर चलना होगा। राहुल को भाजपा की इस काट का तोड़ निकालना होगा कि वे यह सब प्रदर्शन ‘ईडी’ से बचने के लिए नहीं कर रहे हैं। विपक्ष को आज इंदिरा गांधी जैसे शक्तिशाली और चमत्कारी चेहरे की जरुरत है। राहुल उस भूमिका में आ सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें बहुत कुछ करना पड़ेगा। विपक्ष के दूसरे नेताओं को भरोसा दिलाना होगा। जब उन्हें यह विश्वास होगा कि सत्ता प्राप्ति के बाद उन्हें बीच मझधार में नहीं छोड़ा जाएगा, तो साथ आएंगे। अगर राहुल गांधी ये सब समय रहते कर पाए तो वे भाजपा के खिलाफ खड़े हो सकते हैं, अन्यथा वे ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ अभियान को परवान चढ़ते अपनी आंखों से देखेंगे।

विस्तार

महंगाई के विरोध में शुक्रवार को कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली के अलावा देश के दूसरे हिस्सों में भी विरोध प्रदर्शन किया। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष एवं लोकसभा सांसद राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा समेत पार्टी के अनेक वरिष्ठ नेताओं को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। भाजपा ने इस प्रदर्शन पर पलटवार करते हुए कहा, ये सब ‘ईडी’ जांच से बचने के लिए हो रहा है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 1971 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी। विपक्ष द्वारा इंदिरा गांधी को हटाने की मुहिम छेड़ी गई थी। ‘इंदिरा हटाओ, देश बचाओ’ और ‘देखो इंदिरा का ये खेल, खा गई राशन, पी गई तेल’ जैसे नारे गूंज रहे थे। तब इंदिरा गांधी ने अपने एक नारे ‘वो कहते हैं इंदिरा हटाओ, हम कहते हैं गरीबी हटाओ’, से विपक्ष को चारों खाने चित कर दिया था। कांग्रेस के ‘युवराज’ राहुल गांधी, अपनी दादी का वो चमत्कारी मंत्र नहीं खोज पा रहे हैं।

इंदिरा ने तब यूं पलट दी थी बाजी

इंदिरा गांधी को उस वक्त न केवल विपक्ष का, बल्कि पार्टी के भीतर भी विरोध का सामना करना पड़ रहा था। उन्होंने ‘वे कहते हैं इंदिरा हटाओ, हम कहते हैं गरीबी हटाओ’ नारे को लेकर धुआंधार चुनाव प्रचार किया। जो बाजी, कांग्रेस पार्टी हारती हुई नजर आ रही थी, वह पलट गई। कांग्रेस को 518 में से 352 सीटों पर जीत मिली। कांग्रेस की कार्यशैली और नेतृत्व क्षमता सहित पार्टी के कई घटनाक्रमों को अपनी पुस्तक में जगह दे चुके रशीद किदवई कहते हैं, इंदिरा गांधी के पास चमत्कारी नेतृत्व शैली थी। उन्होंने अपने जीवन में बहुत से उतार चढ़ाव देखे थे। ऐसा नहीं है कि पार्टी में सभी लोग उनकी कार्यशैली से खुश थे। वरिष्ठ नेताओं की एक लंबी कतार उनके खिलाफ खड़ी थी। फरवरी 1959 में जब इंदिरा को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद की कमान सौंपी गई तो उसे लेकर भी कांग्रेसी नेता एकमत नहीं थे। 1971 की जीत के बाद जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं, तो दुनिया ने उनकी ताकत महसूस की। ऐसा नहीं था कि उन पर कोई आरोप नहीं लगे थे। अपने बेटे संजय गांधी को लेकर वे घिर गई थीं। ब्रिटेन में रॉल्स रॉयस से ट्रेनिंग लेकर जब संजय गांधी स्वदेश लौटे, तो उन्होंने सस्ती कार बनाने की योजना बनाई। इंदिरा पर संजय को फायदा पहुंचाने के आरोप लगे। मामला संसद में भी गूंजा। उन्होंने विपक्ष की परवाह नहीं की और संजय को आगे बढ़ने का मौका दे दिया।

राहुल गांधी, वैसा कुछ नहीं सोच पा रहे

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने राफेल का एक बड़ा मुद्दा उठाया था, उस वक्त लग रहा था कि वे वाकई मोदी सरकार को घेरने में कामयाब हो जाएंगे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने वह मुद्दा खारिज कर दिया। चुनाव में पराजय मिली। आवाज उठी तो राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष का पद भी छोड़ना पड़ा। इसके बाद न तो कांग्रेस ही मजबूती से खड़ी हो सकी और न ही विपक्ष एकजुट हो सका। बतौर रशीद किदवई, इंदिरा गांधी को पार्टी के भीतर और बाहर अनेक मुसीबतों का सामना करना पड़ा, लेकिन वे अपने विरोधियों को पटकनी देना अच्छे से जानती थीं। 2019 के बाद कांग्रेस पार्टी के भीतर जो मतभेद उभरे, वे बढ़ते ही चले गए। विरोधी नेताओं का जी-23 गुट खड़ा हो गया। राहुल के कई युवा साथी ही पार्टी को अलविदा कह गए। पार्टी कार्यकर्ताओं को यह नहीं समझ में आया कि पार्टी में सुप्रीम कौन है। लंबे समय तक पार्टी को स्थायी अध्यक्ष तक नहीं मिल सका। कुछ नेता सोनिया गांधी के यहां उपस्थिति दर्ज कराने लगे तो बाकी राहुल और प्रियंका की टीम में पहुंच गए। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में पार्टी का खराब प्रदर्शन रहा।

‘कांग्रेस मुक्त भारत’ को ठीक से नहीं समझ सके ‘राहुल’…

भाजपा ने 2014 में सत्ता प्राप्ति के बाद से ही कांग्रेस मुक्त भारत का एजेंडा आगे बढ़ा दिया। वह लगातार इस एजेंडे पर चलती रही। कांग्रेस एवं दूसरे विपक्षी दल इसे नहीं समझ सके। भाजपा अपने उस एजेंडे के बहुत करीब तक पहुंच गई है। बतौर किदवई, भले ही कोई नेता इसके लिए ईडी या किसी दूसरी एजेंसी को जिम्मेदार बताता रहे। आज समूचा विपक्ष, नेतृत्व विहीन है। उसे एक ऐसा नेता तक नहीं मिल पा रहा है, जो भाजपा के समक्ष खड़ा हो सके। सभी विपक्षी दलों को एक प्लेटफॉर्म पर लाने की क्षमता रखता हो। आजादी के बाद जब कांग्रेस पार्टी की पहली हार हुई तो कई नेता इधर-उधर होने लगे। उस वक्त भी इंदिरा गांधी की हिम्मत देखने लायक थी। यहां तक कि तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष ब्रह्मानंद रेड्डी ने 1978 में इंदिरा गांधी को बाहर का रास्ता दिखा दिया। तब इंदिरा गांधी ने नई कांग्रेस की घोषणा कर दी। उसे इंदिरा कांग्रेस या कांग्रेस (आई) कहा गया।

अन्यथा वे ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ को देखेंगे…

राहुल गांधी को आज वैसा ही आत्मविश्वास दिखाना होगा। उन्हें विपक्ष को साथ लेकर चलना होगा। राहुल को भाजपा की इस काट का तोड़ निकालना होगा कि वे यह सब प्रदर्शन ‘ईडी’ से बचने के लिए नहीं कर रहे हैं। विपक्ष को आज इंदिरा गांधी जैसे शक्तिशाली और चमत्कारी चेहरे की जरुरत है। राहुल उस भूमिका में आ सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें बहुत कुछ करना पड़ेगा। विपक्ष के दूसरे नेताओं को भरोसा दिलाना होगा। जब उन्हें यह विश्वास होगा कि सत्ता प्राप्ति के बाद उन्हें बीच मझधार में नहीं छोड़ा जाएगा, तो साथ आएंगे। अगर राहुल गांधी ये सब समय रहते कर पाए तो वे भाजपा के खिलाफ खड़े हो सकते हैं, अन्यथा वे ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ अभियान को परवान चढ़ते अपनी आंखों से देखेंगे।



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