सोनिया गांधी को करना होगा फैसला: पर्दे के पीछे से राहुल ही पार्टी देखेंगे…ये अब नहीं चलेगा


सार

कांग्रेस पार्टी के एक नेता ने कहा, यह बहाना कब तक चलेगा कि कांग्रेस पार्टी, सिद्धांतों की राजनीति करती है। जब सामने वाली पार्टियां जातिगत और धार्मिक ध्रुवीकरण को अपना मुख्य एजेंडा बनाकर चुनाव में उतरती हैं तो कांग्रेस पार्टी को भी अपनी विचारधारा में सकारात्मक बदलाव लाना चाहिए…

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पांच राज्यों के चुनावी नतीजों के बाद कांग्रेस पार्टी के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। पार्टी की करारी हार के बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य और ‘जी 23’ समूह के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा है, ‘मैं हैरान हूं, राज्य दर राज्य हमारी हार को देखकर मेरा दिल बैठा जा रहा है’। हमने पार्टी को अपना पूरी जवानी और जीवन दिया है। मुझे यकीन है कि पार्टी का नेतृत्व उन सभी कमजोरियों और कमियों पर ध्यान देगा, जिनके बारे में काफी समय से बात होती रही है।

कांग्रेस पार्टी की राजनीति पर गहरी पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, सोनिया गांधी को अब फैसला करना होगा। पर्दे के पीछे से राहुल ही पार्टी देखेंगे या नेहरू गांधी खानदान से बाहर सरदारी जाएगी। रविवार को होने वाली ‘कांग्रेस वर्किंग कमेटी’ सीडब्ल्यूसी की बैठक में इस बाबत चर्चा हो सकती है।

जब ईवीएम खुलीं तो कांग्रेस देखती रह गई

पांचों राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन बहुत खराब रहा है। पंजाब में कांग्रेस के हाथ से सत्ता निकल गई। प्रियंका गांधी वाड्रा ने अकेले ही यूपी में 209 रैलियां और रोड शो किए थे। ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ अभियान शुरू किया। लखीमपुर खीरी का मामला उठाया, मगर जब ईवीएम खुली तो कांग्रेस देखती रह गई। पार्टी की विचारधारा और नीति, कहीं दिखाई नहीं पड़ी। लोगों में यह संदेश चला गया कि कांग्रेस पार्टी के नेता अब जनता का भरोसा खो चुके हैं। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल, जिन्होंने पंजाब में बंपर जीत दर्ज कराई है, उन्होंने कह दिया है कि अब ‘आप’ देश में कांग्रेस का विकल्प बनेगी।

भाजपा तो हिंदूत्व की राजनीति करती है, ये बहाना कब तक

कांग्रेस पार्टी के एक नेता ने कहा, यह बहाना कब तक चलेगा कि कांग्रेस पार्टी, सिद्धांतों की राजनीति करती है। जब सामने वाली पार्टियां जातिगत और धार्मिक ध्रुवीकरण को अपना मुख्य एजेंडा बनाकर चुनाव में उतरती हैं तो कांग्रेस पार्टी को भी अपनी विचारधारा में सकारात्मक बदलाव लाना चाहिए। उत्तर प्रदेश में आज पार्टी कहां पहुंच गई है। प्रियंका गांधी ने महिला केंद्रित अभियान चलाया, मगर लोगों ने मतदान के दिन उसे याद नहीं रखा। पार्टी की बैठकों में एक ही बात कब तक कही जाएगी कि भाजपा तो हिंदूत्व की राजनीति करती है। वह एक सांप्रदायिक पार्टी है। चुनाव को हिंदू-मुस्लिम बनाकर अपनी जीत निश्चित कर लेती है। ये बात यूपी और कुछ दूसरे राज्यों में देखने को मिल सकती है। बाकी देश में तो ये मुद्दा नहीं है, लेकिन वहां भी कांग्रेस पार्टी कुछ नहीं कर सकी।

अब तो फैसले की घड़ी है, इसके बाद मौका भी नहीं है…  

वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, पार्टी में युवा और वरिष्ठ नेताओं को लेकर खींचतान, ठीक नहीं है। पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए सभी का योगदान जरूरी है। यह बहस बेमानी है। जिसमें हिम्मत है, वह जीत सकता है और जिता सकता है। राजस्थान के सीएम भी सत्तर के पार हैं। कुछ समय पहले तक कैप्टन अमरिंदर सिंह भी सीएम रहे हैं। पीएम मोदी को देखिये, वे भी सत्तर के पार हैं। वाजपेयी और आडवाणी ने अपनी उम्र के किस दौर में पार्टी को यहां पहुंचाया है। ये तो सभी दलों में होता है। कांग्रेस पार्टी में बड़ा संकट अंदरूनी कलह है। युवा नेता आपसी लड़ाई का शिकार हैं। कुछ युवा नेता तो पार्टी छोड़कर चले गए। कांग्रेस को अपनी विचारधारा पर मंथन करना चाहिए। पूर्व के नेताओं ने जो प्लेटफार्म तैयार किया था, उसमें ये देखा जाना चाहिए कि क्या आज वह बदलाव की मांग तो नहीं कर रहा। धर्म या किसी दूसरी आस्था के चक्कर में पड़ने की पार्टी को चिंतन करने की जरूरत है। भले ही कांग्रेस पार्टी, भाजपा की राह पर न जाए, लेकिन उसे बात करनी होगी। आज कांग्रेस पार्टी को हिंदू विरोधी प्रोजेक्ट कर दिया गया है। पार्टी के पास उसका तोड़ नहीं है। चुनाव में इसका भारी नुकसान हुआ है।  

सोनिया गांधी का युग 2014 में खत्म हो गया था

कांग्रेस पार्टी की चेयरपर्सन सोनिया गांधी का नेतृत्व अब लोगों को नजर नहीं आ रहा है। दरअसल सोनिया गांधी का युग 2014 में खत्म हो चुका है। तब वे एक राजनीति सोच के साथ काम कर रही थीं। नेहरू गांधी परिवार के सदस्य सक्रिय राजनीति में रहे हैं। रशीद किदवई कहते हैं, सोनिया गांधी को मौजूदा हालात में परिवार से हटकर सोचना चाहिए। केवल सोचना नहीं, बल्कि करना होगा। पार्टी का अध्यक्ष जब इस परिवार से बाहर का व्यक्ति बनेगा तो ही पार्टी की छवि सुधरेगी। राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन हुआ क्या। लोगों की नजरों में राहुल गांधी पद पर नजर नहीं आए, मगर वे सारे काम खुद ही कर रहे थे। इस बात से कौन बेवकूफ बना है। लोगों को सब कुछ मालूम था कि पर्दे के पीछे बैठा कौन व्यक्ति सारे फैसले ले रहा है। कांग्रेस पार्टी को पर्दे या आवरण से बाहर आना होगा। ठोस कदम उठाकर पार्टी को मजबूत करना होगा, अन्यथा केजरीवाल की बात सच होने में देर नहीं लगेगी।

गंभीरता से चुनाव लड़ने का इरादा ही नहीं था

उत्तर प्रदेश की 403 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस पार्टी को केवल दो सीटें मिली हैं। पंजाब की 117 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के हिस्से केवल 18 सीटें आई हैं। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष खड़गे ने अपने ट्वीट में लिखा, ’50 साल के मेरे राजनीतिक करियर में मैंने कई उतार और चढ़ाव देखे हैं। विधानसभा चुनावों के नतीजों को देखना दुर्भाग्यपूर्ण था, लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि सिर्फ हम, फासीवादी ताकतों से लड़ सकते हैं। हम जनता का विश्वास जल्द फिर से जीत लेंगे। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान ने कहा, हमने इस हार की उम्मीद नहीं की थी। ये बहुत निराशाजनक और दुखी करने वाला है। गंभीरता से चुनाव लड़ने का इरादा ही नहीं था। हमें मोदी और शाह की तरह पूरी ताकत से लड़ना चाहिए था। बदले हुए नेतृत्व को लेकर पार्टी में उलझन थी। हमारी पारी खत्म हो गई है, लेकिन आने वाले कांग्रेसी नेताओं का भविष्य दांव पर है।

विस्तार

पांच राज्यों के चुनावी नतीजों के बाद कांग्रेस पार्टी के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। पार्टी की करारी हार के बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य और ‘जी 23’ समूह के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा है, ‘मैं हैरान हूं, राज्य दर राज्य हमारी हार को देखकर मेरा दिल बैठा जा रहा है’। हमने पार्टी को अपना पूरी जवानी और जीवन दिया है। मुझे यकीन है कि पार्टी का नेतृत्व उन सभी कमजोरियों और कमियों पर ध्यान देगा, जिनके बारे में काफी समय से बात होती रही है।

कांग्रेस पार्टी की राजनीति पर गहरी पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, सोनिया गांधी को अब फैसला करना होगा। पर्दे के पीछे से राहुल ही पार्टी देखेंगे या नेहरू गांधी खानदान से बाहर सरदारी जाएगी। रविवार को होने वाली ‘कांग्रेस वर्किंग कमेटी’ सीडब्ल्यूसी की बैठक में इस बाबत चर्चा हो सकती है।

जब ईवीएम खुलीं तो कांग्रेस देखती रह गई

पांचों राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन बहुत खराब रहा है। पंजाब में कांग्रेस के हाथ से सत्ता निकल गई। प्रियंका गांधी वाड्रा ने अकेले ही यूपी में 209 रैलियां और रोड शो किए थे। ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ अभियान शुरू किया। लखीमपुर खीरी का मामला उठाया, मगर जब ईवीएम खुली तो कांग्रेस देखती रह गई। पार्टी की विचारधारा और नीति, कहीं दिखाई नहीं पड़ी। लोगों में यह संदेश चला गया कि कांग्रेस पार्टी के नेता अब जनता का भरोसा खो चुके हैं। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल, जिन्होंने पंजाब में बंपर जीत दर्ज कराई है, उन्होंने कह दिया है कि अब ‘आप’ देश में कांग्रेस का विकल्प बनेगी।

भाजपा तो हिंदूत्व की राजनीति करती है, ये बहाना कब तक

कांग्रेस पार्टी के एक नेता ने कहा, यह बहाना कब तक चलेगा कि कांग्रेस पार्टी, सिद्धांतों की राजनीति करती है। जब सामने वाली पार्टियां जातिगत और धार्मिक ध्रुवीकरण को अपना मुख्य एजेंडा बनाकर चुनाव में उतरती हैं तो कांग्रेस पार्टी को भी अपनी विचारधारा में सकारात्मक बदलाव लाना चाहिए। उत्तर प्रदेश में आज पार्टी कहां पहुंच गई है। प्रियंका गांधी ने महिला केंद्रित अभियान चलाया, मगर लोगों ने मतदान के दिन उसे याद नहीं रखा। पार्टी की बैठकों में एक ही बात कब तक कही जाएगी कि भाजपा तो हिंदूत्व की राजनीति करती है। वह एक सांप्रदायिक पार्टी है। चुनाव को हिंदू-मुस्लिम बनाकर अपनी जीत निश्चित कर लेती है। ये बात यूपी और कुछ दूसरे राज्यों में देखने को मिल सकती है। बाकी देश में तो ये मुद्दा नहीं है, लेकिन वहां भी कांग्रेस पार्टी कुछ नहीं कर सकी।

अब तो फैसले की घड़ी है, इसके बाद मौका भी नहीं है…  

वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, पार्टी में युवा और वरिष्ठ नेताओं को लेकर खींचतान, ठीक नहीं है। पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए सभी का योगदान जरूरी है। यह बहस बेमानी है। जिसमें हिम्मत है, वह जीत सकता है और जिता सकता है। राजस्थान के सीएम भी सत्तर के पार हैं। कुछ समय पहले तक कैप्टन अमरिंदर सिंह भी सीएम रहे हैं। पीएम मोदी को देखिये, वे भी सत्तर के पार हैं। वाजपेयी और आडवाणी ने अपनी उम्र के किस दौर में पार्टी को यहां पहुंचाया है। ये तो सभी दलों में होता है। कांग्रेस पार्टी में बड़ा संकट अंदरूनी कलह है। युवा नेता आपसी लड़ाई का शिकार हैं। कुछ युवा नेता तो पार्टी छोड़कर चले गए। कांग्रेस को अपनी विचारधारा पर मंथन करना चाहिए। पूर्व के नेताओं ने जो प्लेटफार्म तैयार किया था, उसमें ये देखा जाना चाहिए कि क्या आज वह बदलाव की मांग तो नहीं कर रहा। धर्म या किसी दूसरी आस्था के चक्कर में पड़ने की पार्टी को चिंतन करने की जरूरत है। भले ही कांग्रेस पार्टी, भाजपा की राह पर न जाए, लेकिन उसे बात करनी होगी। आज कांग्रेस पार्टी को हिंदू विरोधी प्रोजेक्ट कर दिया गया है। पार्टी के पास उसका तोड़ नहीं है। चुनाव में इसका भारी नुकसान हुआ है।  

सोनिया गांधी का युग 2014 में खत्म हो गया था

कांग्रेस पार्टी की चेयरपर्सन सोनिया गांधी का नेतृत्व अब लोगों को नजर नहीं आ रहा है। दरअसल सोनिया गांधी का युग 2014 में खत्म हो चुका है। तब वे एक राजनीति सोच के साथ काम कर रही थीं। नेहरू गांधी परिवार के सदस्य सक्रिय राजनीति में रहे हैं। रशीद किदवई कहते हैं, सोनिया गांधी को मौजूदा हालात में परिवार से हटकर सोचना चाहिए। केवल सोचना नहीं, बल्कि करना होगा। पार्टी का अध्यक्ष जब इस परिवार से बाहर का व्यक्ति बनेगा तो ही पार्टी की छवि सुधरेगी। राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन हुआ क्या। लोगों की नजरों में राहुल गांधी पद पर नजर नहीं आए, मगर वे सारे काम खुद ही कर रहे थे। इस बात से कौन बेवकूफ बना है। लोगों को सब कुछ मालूम था कि पर्दे के पीछे बैठा कौन व्यक्ति सारे फैसले ले रहा है। कांग्रेस पार्टी को पर्दे या आवरण से बाहर आना होगा। ठोस कदम उठाकर पार्टी को मजबूत करना होगा, अन्यथा केजरीवाल की बात सच होने में देर नहीं लगेगी।

गंभीरता से चुनाव लड़ने का इरादा ही नहीं था

उत्तर प्रदेश की 403 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस पार्टी को केवल दो सीटें मिली हैं। पंजाब की 117 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के हिस्से केवल 18 सीटें आई हैं। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष खड़गे ने अपने ट्वीट में लिखा, ’50 साल के मेरे राजनीतिक करियर में मैंने कई उतार और चढ़ाव देखे हैं। विधानसभा चुनावों के नतीजों को देखना दुर्भाग्यपूर्ण था, लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि सिर्फ हम, फासीवादी ताकतों से लड़ सकते हैं। हम जनता का विश्वास जल्द फिर से जीत लेंगे। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान ने कहा, हमने इस हार की उम्मीद नहीं की थी। ये बहुत निराशाजनक और दुखी करने वाला है। गंभीरता से चुनाव लड़ने का इरादा ही नहीं था। हमें मोदी और शाह की तरह पूरी ताकत से लड़ना चाहिए था। बदले हुए नेतृत्व को लेकर पार्टी में उलझन थी। हमारी पारी खत्म हो गई है, लेकिन आने वाले कांग्रेसी नेताओं का भविष्य दांव पर है।



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