Taiwan vs China: चीन-ताइवान के बीच विवाद की क्या है पूरी कहानी, पेलोसी के दौरे से क्यों बौखलाया ड्रैगन? जानें


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चीन की चेतावनी के बाद भी अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी मंगलवार को ताइवान के दौरे पर पहुंचीं। पेलोसी के इस दौरे के बाद चीन और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ने का अंदेशा है। पेलोसी के दौरे के बाद चीन ने इसे उकसाने वाली कार्रवाई बताया है। चीन ने कहा है कि अमेरिका को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

दरअसल चीन वन चाइना पॉलिसी के तहत ताइवान को अपने देश का हिस्सा मानता है। चीन और ताइवान के बीच 73 साल से विवाद चल रहा है।  चीन-ताइवान के बीच विवाद क्या है? ताइवान चीन से कैसे अलग हुआ? विदेशी दखल पर क्यों बौखला जाता है चीन? दुनिया के लिए अहम क्यों है ताइवान? चीन की वन चाइना पॉलिसी क्या है? आइये जानते हैं…

चीन-ताइवान के बीच विवाद क्या है?

ताइवान दक्षिण पूर्वी चीन के तट से करीब 100 मील दूर स्थिति एक द्वीप है। ताइवान खुद को संप्रभु राष्ट्र मानता है। उसका अपना संविधान है। ताइवान में लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार है। वहीं चीन की कम्युनिस्ट सरकार ताइवान को अपने देश का हिस्सा बताती है। चीन इस द्वीप को फिर से अपने नियंत्रण में लेना चाहता है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ताइवान और चीन के पुन: एकीकरण की जोरदार वकालत करते हैं। ऐतिहासिक रूप से से देखें तो ताइवान कभी चीन का ही हिस्सा था। 

चीन से कैसे अलग हुआ ताइवान?

कहानी 1644 से शुरू होती है। इस वक्त चीन में चिंग वंश का शासन था। तब ताइवान चीन का हिस्सा था। 1895 में चीन ने ताइवान को जापान को सौंप दिया। कहा जाता है कि विवाद यहीं से शुरू हुआ 1949 में चीन में गृहयुद्ध के दौरान माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी को हरा दिया। 

हार के बाद कॉमिंगतांग पार्टी ताइवान पहुंच गई और वहां जाकर अपनी सरकार बना ली। इस बीच दूसरे विश्वयुद्ध में जापान की हार हुई तो उसने कॉमिंगतांग को ताइवान का नियंत्रण सौंप दिया। विवाद इस बात पर शुरू हुआ कि जब कम्युनिस्टों ने जीत हासिल की है तो ताइवान पर उनका अधिकार है।जबकि कॉमिंगतांग की दलील थी कि वे चीन के कुछ ही हिस्सों में हारे हैं लेकिन वे ही आधिकारिक रूस से चीन का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए ताइवान पर उनका अधिकार है। 

अमेरिकी स्पीकर के दौरे से क्यों बौखलाया चीन?

ताइवान की रक्षा के लिए अमेरिका उसे सैन्य उपकरण बेचता है, जिसमें ब्लैक हॉक हेलीकॉप्टर भी शामिल हैं। ओबामा प्रशासन ने 6.4 अरब डॉलर के हथियारों के सौदे के तहत 2010 में ताइवान को 60 ब्लैक हॉक्स बेचने की मंजूरी दी थी। इसके जवाब में, चीन ने अमेरिका के साथ कुछ सैन्य संबंधों को अस्थायी रूप से तोड़ दिया था। अमेरिका के साथ ताइवान के बीच टकराव 1996 से चला आ रहा है। चीन ताइवान के मुद्दे पर किसी तरह का विदेशी दखल नहीं चाहता है। उसकी कोशिश रहती है कि कोई भी देश ऐसा कुछ नहीं करे जिससे ताइवान को अलग पहचान मिले। यही, वहज है अमेरिकी संसद की स्पीकर के दौरे से चीन भड़क गया है। 

चीन जैसे देश से ताइवान क्या अपनी रक्षा कर सकता है?

युद्ध की स्थिति में चीन के सामने ताइवान की सैन्य ताकत बहुत कम है। हालांकि, रूस यूक्रेन युद्ध को देखते हुए आज के दौर में किसी देश की सैन्य ताकत से नतीजों का अंदाजा लगाना गलत होगा।    

दुनिया के लिए अहम क्यों है ताइवान?

फोन, लैपटॉप, घड़ी से लेकर कार तक में लगने वाले ज्यादातर चिप ताइवान में बनते हैं। ताइवन की वन मेजर कंपनी दुनिया के आधे से अधिक चिप का उत्पादन करती है। इसी वजह से ताइवान की अर्थव्यस्था दुनिया के लिए काफी मायने रखती है। अगर ताइवान पर चीन का कब्जा होता है तो दुनिया के लिए बेहद अहम इस उद्योग पर चीन का नियंत्रण हो जाएगा। इसके बाद उसकी मनमानी और बढ़ सकती है।  

चीन की वन चाइना पॉलिसी क्या है?

वन चाइना पॉलिसी की मानें तो ताइवान कोई अलग देश नहीं बल्कि चीन का हिस्सा है। 1949 में बना पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) ताइवान को अपना प्रांत मानता है। इस पॉलिसी के तहत मेनलैंड चीन और हांगकांग-मकाऊ जैसे दो विशेष रूप से प्रशासित क्षेत्र आते हैं।

ताइवान खुद को आधिकारिक तौर पर रिपब्लिक ऑफ चाइना (आरओसी) कहता है। चीन की वन चाइना पॉलिसी के मुताबिक चीन से कूटनीतिक रिश्ता रखने वाले देशों को ताइवान से संबंध तोड़ने पड़ते है। वर्तमान में चीन के 170 से ज्यादा कूटनीतिक साझेदार जबकि ताइवान के केवल 22 साझेदार है। यानी, दुनिया के ज्यादातर देश और संयुक्त राष्ट्र ताइवान को स्वतंत्र देश नहीं मानते, लेकिन इसके बावजूद वो पूरी तरह से अलग नहीं हैं। 22 देशों को छोड़कर बाकी देश ताइवान को अलग नहीं मानते। ओलंपिक जैसे वैश्विक आयोजनों में ताइवान चीन के नाम का इस्तेमाल नहीं कर सकता लिहाजा वह लंबे समय से चाइनीज ताइपे के नाम से उतरता है।

विस्तार

चीन की चेतावनी के बाद भी अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी मंगलवार को ताइवान के दौरे पर पहुंचीं। पेलोसी के इस दौरे के बाद चीन और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ने का अंदेशा है। पेलोसी के दौरे के बाद चीन ने इसे उकसाने वाली कार्रवाई बताया है। चीन ने कहा है कि अमेरिका को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

दरअसल चीन वन चाइना पॉलिसी के तहत ताइवान को अपने देश का हिस्सा मानता है। चीन और ताइवान के बीच 73 साल से विवाद चल रहा है।  चीन-ताइवान के बीच विवाद क्या है? ताइवान चीन से कैसे अलग हुआ? विदेशी दखल पर क्यों बौखला जाता है चीन? दुनिया के लिए अहम क्यों है ताइवान? चीन की वन चाइना पॉलिसी क्या है? आइये जानते हैं…

चीन-ताइवान के बीच विवाद क्या है?

ताइवान दक्षिण पूर्वी चीन के तट से करीब 100 मील दूर स्थिति एक द्वीप है। ताइवान खुद को संप्रभु राष्ट्र मानता है। उसका अपना संविधान है। ताइवान में लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार है। वहीं चीन की कम्युनिस्ट सरकार ताइवान को अपने देश का हिस्सा बताती है। चीन इस द्वीप को फिर से अपने नियंत्रण में लेना चाहता है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ताइवान और चीन के पुन: एकीकरण की जोरदार वकालत करते हैं। ऐतिहासिक रूप से से देखें तो ताइवान कभी चीन का ही हिस्सा था। 



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