जलवायु परिवर्तन का खौफनाक सच! दुनिया को तबाह करने के लिए आ रहे हैं 4000 नए वायरस


नई दिल्ली. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था, पृथ्वी ने हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सब कुछ दिया है लेकिन लालच की पूर्ति के लिए कुछ नहीं दिया. वे हमें जैसी मिली हैं, वैसे ही उन्हें भावी पीढ़ियों को लौटाना होगा. लेकिन क्या दुनिया इस बात को जानती है? कतई नहीं. हमने अपनी सुख सुविधाओं के लिए पृथ्वी का कलेजा चीर दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि आज हमें जलवायु परिवर्तन के दंश के रूप में इसका रिटर्न भुगतना पड़ रहा है. जिस तरह से जलवायु परिवर्तन को लेकर नए-नए अध्ययन सामने आ रहे हैं, उससे बेहद डरावने वाली तस्वीर सामने आ रही है. नेचर (Nature Journal) में प्रकाशित एक नए अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन पृथ्वी की प्रजातियों को बड़े पैमाने पर विस्थापित करने के लिए मजबूर कर रहा है.

इस विस्थापन के कारण आने वाले 50 सालों में 4000 से ज्यादा वायरल संक्रमण का खतरा सामने होगा. इस अध्ययन के प्रमुख लेखक कोलिन जे कार्लसन (Colin J. Carlson) ने ट्वीट कर कहा है कि हमारे अध्ययन में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन ने अन्य महामारियों के जोखिम को कई गुना बढ़ा दिया है. इसके लिए जीवाश्म इंधन कंपनियों और उनके द्वारा किए जा रहे नुकसान को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए.

दक्षिण पूर्व एशिया बनेगा वायरस का नया हॉटस्पॉट

कार्लसन ने आगे लिखा है, इस आसन्न चुनौतियों को देखते हुए हमें ऐसी स्वास्थ्य प्रणालियों की दरकार है जो आने वाली वायरल लहर को काबू में करने के लिए अनुकूल हो. अध्ययन के प्रमुख लेखक कार्लसन ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन पृथ्वी पर जीवन के आकार को पूरी तरह से बदल देगा. यह महामारी के जोखिम को बढ़ाने वाला अकेला कारण होगा. उन्होंने कहा कि हर तरह से, यह प्रभावित पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य के लिए बहुत बुरी खबर है. कार्लसन ने कहा, हमारे अध्ययन में यह पाया गया है कि कैसे 3139 प्रजातियां अगले 50 सालों तक वायरस को अन्य जीवों के साथ साझा करेंगी और संक्रमण का कारण बनेंगी. इसके साथ ही ये प्रजातियां संक्रमण का नया हॉटस्पॉट भी बनाएंगी. अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर मॉडल के आधार पर पृथ्वी पर इन हॉटस्पॉट का एक खांका भी तैयार किया है जिसमें बताया गया कि आने वाले दिनों में दक्षिण पूर्व एशिया इन वायरसों के लिए नया हॉट स्पॉट बनेगा. दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में म्यांमार, थाईलैंड, वियतनाम, इंडोनेशिया आदि देश आते हैं.

सुविधाओं के लिए प्रकृति को साधने का खौफनाक अंजाम
हमने अंधाधुंध औद्योगिकीकरण से पृथ्वी को गैस का चैंबर बना दिया. बेलगाम शहरीकरण के कारण जमीन को कंक्रीट के जंगलों में बदल दिया गया है. सुविधाओं के लिए नदियों, झरनों को रुख मोड़ दिया. इसके बदले में आज हमें जलवायु परिवर्तन का दंश झेलने पर मजबूर होना पड़ रहा है. जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में बेतहाशा वृद्धि हो रही है. इसके कारण पृथ्वी की प्रजातियां अनुकूल वातावरण की तलाश में एक जगह से दूसरे जगह पलायन कर रहे हैं. रिसर्च के मुताबिक यह पलायन पृथ्वी पर इनसानों के लिए दुःस्वप्न से कम नहीं है. पलायन के कारण हजारों वायरस एक-दूसरे के संपर्क में आएंगे और अंततः इनसानों को तबाह करने के लिए घात लगाकर बैठे होंगे.

इनसानों तक कैसे आएंगे वायरस
नेचर के अध्ययन के मुताबिक जैसे ही ये जीव एक जगह से दूसरी जगह जाएंगे, अन्य जीवों, वातावरणों आदि से उनका अस्तित्व के लिए संघर्ष होगा. इस संघर्ष में इन प्रजातियों में मौजूद वायरस एक जीव से दूसरे में जीव में जाएंगे और अंततः यह इनसानों तक दस्तक देंगे. कोविड-19 वायरस भी इसी तरह फैला था. इसका अस्तित्व चमगादड़ में पाया गया और चमगादर से जंगली लौमड़ी तक गया. इन लौमड़ियों को इंसानों द्वारा उपभोग किया और नतीजा वैश्विक महामारी कोविड-19 को जन्म हुआ जो आज संपूर्ण मानव जाति के लिए नासूर बना हुआ है.


तो क्या 4000 नई महामारियां आएंगी

शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि अगले 50 साल यानी 2070 तक करीब 4000 नए संकरित प्रजातियों से वायरस का संचरण अन्य जीवों में होगा. इसका आम भाषा में यह मतलब हुआ कि एक जगह से दूसरी जगहों पर जब प्रजातियों का एक-दूसरे से संपर्क स्थापित होगा तो इनमें 4000 वायरस मूल जीव से बाहर निकलकर अन्य जीव में प्रवेश करेंगे और वहां से इनसानों में प्रवेश का कारण बनेंगे. हालांकि इस अध्ययन को सह लेखक ग्रेग अलबेरी (Greg Albery) का कहना है कि इसका मतलब यह नहीं है कि 4000 नई महामारियां भी आएंगी. हां, इनमें से कई वायरस इनसानों में महामारी को जन्म दे सकते हैं. उन्होंने कहा कि सभी वायरसों में दूसरे जीवों के स्वास्थ्य को प्रभावित करने की क्षमता होगी और ये मानव आबादी को प्रभावित कर सकते हैं.

Tags: Carona Virus, Climate Change, Earth



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