First war Of Independence: आज के दिन 1857 में मेरठ से हुआ था विद्रोह शुरू, हिंदू और मुस्लिम थे एकजुट


10 मई को भारत ने अपने पहले स्वतंत्रता संग्राम यानी 1857 के सिपाही विद्रोह को आंखों से देखा। देश के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण और पहला आजादी का संग्राम है 1857 में हुआ सिपाही विद्रोह। यह संघर्ष भारत के आजादी के लिए एक बेहद जरूरी मानक बन गया जिसका नेतृत्व मंगल पांडे द्वारा किया गया। यह पहले स्वतंत्रता संग्राम आगे जाकर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध एक जनव्यापी विद्रोह के रूप में परिवर्तित हुआ। इस विद्रोह की खास बात यह रही कि इस संग्राम में हिन्दू और मुस्लिम एकजुट होकर मैदान में कूद पड़े।

मंगल पांडे के नेतृत्व वाले इस सैनिक विद्रोह को स्वतंत्रता का पहला संग्राम (First War Of Independence) कहा गया और कार्ल मार्क्स और पीसी जोशी जैसे कई लेखकों ने इस घटना पर किताबें लिखीं। यह संग्राम मेरठ में शुरू होकर दिल्ली, आगरा, कानपुर और लखनऊ तक फैल गया जिसे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में काम करने वाले भारतीय सिपाहियों के द्वारा शुरू किया गया था। भारत में 1857 के विद्रोह को अक्सर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (First War Of Independence 1857) और इसी तरह के अन्य नामों से जाना जाता है।

अक्सर देश के लोग सैनिकों की समस्या को 1857 विद्रोह का प्राथमिक और एकमात्र कारण मानते हैं लेकिन इस विद्रोह के पीछे कई अन्य कारण भी थे जिनपर बात होना बेहद जरूरी है। आइए जानते हैं कि 10 मई 1857 में हुए सैनिक विद्रोह के पीछे क्या-क्या कारण थे।

1- सिपाहियों के लिए एनफील्ड राइफल
विद्रोह का सबसे महत्वपूर्ण कारण था नई एनफील्ड राइफल की शुरूआत। इसे लोड करने के लिए, सिपाहियों को चिकनाई वाले कारतूसों के सिरों को काटना पड़ता था। सिपाहियों के बीच एक अफवाह फैल गई कि कारतूसों को चिकना करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला तेल सूअरों और गायों की चर्बी का मिश्रण था और इस प्रकार मांस से संपर्क करना मुसलमानों और हिंदुओं दोनों का अपमान था। अपने अपमान और भावनाओं से खिलवाड़ करने के विरोध में सिपाहियों ने देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम को अंजाम दिया।

2- लैंड रेवेन्यू की दिक्क्तें
रैयतवाड़ी और महालवाड़ी व्यवस्था ने रेवेन्यू (राजस्व) की मांग अधिक थी और राजस्व एकत्र करना का तरीका भी बेहद क्रूर था। 1852 में, इनाम आयोग की स्थापना की गई, जिसने जागीरों के अधिग्रहण की सिफारिश की, जिस पर राजस्व का भुगतान नहीं किया गया था। नतीजा यह हुआ कि बीस हजार जागीरों को जब्त कर लिया गया।

3- अर्थव्यवस्था की दुर्दशा
अर्थव्यवस्था के विनाश ने भारतीय उद्योगों को भी नष्ट कर दिया। देश के पारंपरिक ताने-बाने को तोड़ दिया। इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति ने मशीनों को भारतीय कच्चे माल का शत्रु बना दिया और देश के विदेश व्यापार को नष्ट कर दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि भारत केवल कच्चे माल का निर्यातक बनकर ही रह गया था।

4- डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स
सतारा, नागपुर, झांसी, संभलपुर, करौली, उदयपुर, बघाट आदि के कुख्यात डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स द्वारा कब्जा करने से भारतीय जनता में सामान्य घृणास्पद भावना पैदा हुईं। नागपुर में शाही सामान की खुली नीलामी हुई जिसके कारण भारतीयों में बेहद आक्रोश की भावना आ गई।

5- सिपाहियों के साथ भेदभाव

अंग्रेजी सेना में भारतीय सिपाही भेदभाव के शिकार थे। उन्हें कम वेतन दिया जाता था और उन्हें अपने मालिकों से लगातार शोषण का सामना करना पड़ता था। 1856 में अवध पर कब्जा करने से बंगाल सेना में असंतोष पैदा हो गया। हद तब हो गई जब भारतीय सिपाहियों को अपने माथे पर जाति के निशान लगाने, दाढ़ी रखने और पगड़ी पहनने से मना किया गया।

6- प्रशासन में भारतीयों की कमजोर स्थिति
अंग्रेजों ने भारतीयों को अपने ही देश में महत्वपूर्ण और उच्च पदों से वंचित कर दिया था। भारत में ब्रिटिश गतिविधियों के स्थानों में पर साइन बोर्ड पर ‘कुत्तों और भारतीयों की अनुमति नहीं है’ इस तरह के अपमानित वाक्य लिखने आम थे।

7- ईसाई मिशनरी
ईसाई मिशनरियों की बढ़ती गतिविधियों को भारतीयों द्वार संदेह और अविश्वास की दृष्टि से देखा गया। ज्यादा से ज्यादा लोगों का धर्म परिवर्तन करने का प्रयास किया गया और हिंदुओं और मुसलमानों के धर्मों के खिलाफ झूठे प्रचार भी किए गए। इसके साथ ही पादरियों को ईसाई धर्म के बारे में सिपाहियों को “सिखाने” के लिए सेना में नियुक्त किया गया था।

विदेश में पढ़ाई करें, लेकिन स्कैम से बचें

Source link

Enable Notifications OK No thanks