हैरानी की बात नहीं, इसमें से कई प्रतियोगी अपनी मंजिल पाने में कामयाब भी होते हैं। इन्हीं तंग कमरों से बड़ी संख्या में हर साल नौकरशाह निकलते हैं। तभी इसे सिविल सेवा की तैयारी करने वालों का मक्का बोला जाता है। छोटे-छोटे कमरों में राष्ट्रीय से अंतरराष्ट्रीय सिसायत, अर्थनीति, समाजनीति समेत दूसरे मसलों पर संजीदा चर्चाएं होती हैं। इस वक्त यूक्रेन संकट पर चर्चा आम है। रूसी के आक्रमण और यूक्रेन के प्रतिरोध से वैश्विक राजनीति के बदलते आयामों पर गंभीर विमर्श छात्रों के बीच सुना जा सकता है।
प्रतियोगियों की मांग पूरा करने वाली दुकानें भी मुखर्जी नगर में दिख जाती हैं। फुटपाथ पर एक हजार रुपये के अंदर में ही एंबेसडर से लेकर तिरंगा तक सब मिल जाता है। ऐसे ही एक दुकानदार रामदीन ने बताया कि बच्चों की मनपसंद सारी एसेसरीज उनके पास है। बच्चों में इसकी मांग भी बहुत रहती है। खासतौर से नए आने वाले बच्चों में, जो अपने कमरे में जमने के साथ इन सब चीजों को अपनी मेज पर सजा लेते हैं। रामदीन करीब बीस साल से दुकानदारी कर रहे हैं। उनका मानना है कि इनमें से बहुत से आईएएस बन भी जाते हैं। जब कभी उनका वापस लौटना होता है तो वह मुलाकात कर इत्मीनान से हाल-चाल पूछते हैं। इस सबसे बहुत अच्छा लगता है।
छोटे से कमरे में बसा रहता है पूरा संसार
वैसे तो दिल्ली में देशभर के छात्र पढ़ाई, रोजगार और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए आते हैं। लेकिन नार्थ दिल्ली यूनिवर्सिटी के कुछ इलाके ऐसे भी हैं जहां साल भर विभिन्न परीक्षाओं की तैयारियों में जुटे छात्रों का मेला लगा रहता है। प्रतियोगी परीक्षाओं का जुनून इस कदर छाया रहता है कि वह छोटे से कमरे में अपने पूरे संसार को बसाए रखते है। वहीं कमरा उनका लाइब्रेरी होता है तो वहीं रसोई घर। मनोरंजन के लिए भी चार-पांच बच्चे इकट्ठे होकर पार्टी कर लेते है और त्योहारों को मना लेते है।
हर साल करीब 20000-25000 बच्चे पहुंचते हैं
मुखर्जी नगर इलाका आईएएस तैयारी करने वाले छात्रों का हब है। यहां हर साल 20000-25000 छात्र पहुंच तैयारी करने वाले छात्र पहुंच जाते हैं। इतने ही छात्र दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिले लेते हैं। यूपीएससी की तैयारी कराने वाले कोचिंग इंस्टीट्यूट की भी इस इलाके में भरमार है। बैंकिंग व अन्य स्नातकोत्तर के बाद की प्रतियोगी परीक्षाओं का भी खूब क्रेज है।
मिनी भारत का नजारा एक ही बिल्डिंग में दिखता है
इस इलाके में चार-चार मंजिले महान बने हुए है। इसी तरह कई पीजी भी बने हुए है। इन मकानों व पीजी में 25-40 छात्र रहते है। कोई मणिपुर समेत पूर्वोत्तर भारत से आकर पढ़ाई करता है तो कोई केरल समेत अन्य दक्षिणी भारत से। उत्तर भारत के यूपी, बिहार, हरियाणा राजस्थान से भी बड़ी संख्या में छात्र होते है। इस पूरे घर का नजारा मिनी भारत की संस्कृति की झलक देता है।
बदइंजामी से रहते हैं परेशान
छात्रों को कमरों का किराया भी ज्यादा देना होता है। बिजली शुल्क प्रति यूनिट दस रुपये तक मकान मालिक वसूला लेते हैं। पानी के लिए भी दो-तीन सौ रुपये प्रतिमाह वसूला जाता है। छोटे कमरे के लिए भी कम से कम 10 हजार रुपये देने पड़ते हैं। दो लोग साथ नहीं रहे तो किराया देना तक मुश्किल है। -छात्रा लवली कुमारी
कमरे में ना धूप का दर्शन ना हवा का
इस इलाके में ऐसे-ऐसे कमरे में रहकर पढ़ाई करनी पड़ती है जहां सूर्य की किरण कभी पहुंचती ही नहीं है। इसके लिए पार्क में जाने की मजबूरी होती है। इसी तरह सिर्फ एक तरफ से खुले होने के कारण हवा तक नहीं पहुंचता। यहां तक कि बाहर के मौसम से बिलकुल अंजान रह जाते है। खाने पर भी इनदिनों महंगाई की मार है। किराएदार ऊंची कीमत वसूलते हैं। -छात्र ललित मोहन
प्रतिकृतियों की कीमत
ग्लोब: 300-400
लालबत्ती की एंबेस्डर: 350-450
अशोक स्तंभ: 150-200
दो तिरंगा और उसकी स्टैंड: 150-200