कृषि बजट 2022 में प्राकृतिक खेती को लेकर हो सकती है घोषणा, बढ़ सकता है बजट


Union Budget 2022: आज केंद्रीय वित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमण केंद्रीय बजट पेश करने जा रही हैं. हर बार की तरह ही इस बार भी कृषि बजट से किसानों को उम्‍मीदें हैं. ऐसे में अनुमान है कि किसानों को राहत देने के साथ ही इस बार कृषि के नेचुरल खेती और सतत खेती के तरीकों को प्रोत्‍साहित करने के लिए भी बजट में खास घोषणाएं हो सकती हैं. देशवासियों को स्‍वस्‍थ और पोषणयुक्‍त खाद्यान्‍न उपलब्‍ध कराने के लक्ष्‍य को लेकर आगे बढ़ रही सरकार इस बार कृषि बजट में नेचुरल फार्मिंग पर जोर दे सकती है. इतना ही नहीं प्राकृतिक खेती करने वालों के लिए बजट भी बढ़ा सकती है. हाल ही में पीएम मोदी ने भी कहा था कि जिन किसानों के पास 2 हेक्‍टेयर से कम भूमि है, खेती का ये तरीका उनके लिए सबसे लाभदायक है.

काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर, पावरिंग लाइवलीहुड, फेलो और डायरेक्टर अभिषेक जैन कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर में प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने की अपील की है. प्राकृतिक खेती, सतत् कृषि प्रथाओं में से एक है, जिसे राष्ट्रीय सतत खेती मिशन के तहत बढ़ावा दिया जा रहा है. हालांकि, पिछले साल मिशन को कृषि बजट का सिर्फ 0.8 प्रतिशत हिस्सा ही मिल पाया था. इसका नतीजा है कि सतत् कृषि की कोई भी पद्धति 4 प्रतिशत से ज्यादा भारतीय किसान इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं. हालांकि इस बार उम्मीद है कि आगामी केंद्रीय बजट में भारत की खाद्य व्यवस्था को एक लचीले और स्वस्थ रास्ते पर ले जाने के लिए प्राकृतिक खेती सहित सतत कृषि पर महत्वपूर्ण जोर दिया जा सकता है.

ये होती है प्राकृतिक खेती
भारत में प्राकृतिक खेती (natural farming) कृषि की प्राचीन और परंपरागत पद्धति है. प्राकृतिक खेती का मुख्य आधार देसी गाय है. जिसके गोबर को खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है. सबसे खास बात है कि इस प्रकार की खेती से भूमि को कोई नुकसान नहीं पहुंचता. इतना ही नहीं यह भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है. इसमें रासायनिक कीटनाशकों या उर्वरकों का उपयोग नहीं किया जाता है. इसके बजाय प्रकृति में पाए जाने वाले तत्‍वों को ही कीटनाशक के रूप में इस्‍तेमाल किया जाता है. प्राकृतिक खेती में कीटनाशकों के रूप में गोबर की खाद, कम्पोस्ट, जीवाणु खाद, पिछली फ़सल के बचे अवशेष और प्रकृति में उपलब्ध खनिजों को उपयोग किया जाता है. इस खेती से भूमि उपजाऊ बनती है और सिंचाई अंतराल भी बढ़ता है. फसल उत्‍पादन की लागत भी कम होती है.

उर्वरक सब्सिडी के बजाय किसानों को मिले प्रत्‍यक्ष आय सहायता
अभिषेक कहते हैं कि उर्वरक सब्सिडी पर हमारा वित्तीय खर्च एक लाख 55 हजार करोड़ (20.6 बिलियन डॉलर) को छू रहा है, जिसमें 78 प्रतिशत से ज्यादा उर्वरक हमारी हवा और पानी में मिलकर प्रदूषण फैला रहा है. इसकी जगह पर सरकार को बजट प्रभावित न करने का दृष्टिकोण अपनाते हुए किसानों को प्रत्यक्ष आय सहायता देने पर विचार करना चाहिए. उर्वरक सब्सिडी के 20.6 बिलियन डॉलर की राशि से बुवाई क्षेत्र के प्रति हेक्टेयर पर 11 हजार रुपये से ज्यादा की आय सहायता दी जा सकती है. किसानों के विभिन्न वर्गों के लिए न्यायपूर्ण ढंग से व्यवस्थित यह सहायता न केवल प्रशासनिक रूप से ज्यादा प्रभावी होगी, बल्कि उर्वरकों के अधिक विवेकपूर्ण उपयोग को भी प्रोत्साहित करेगी, जो पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ सरकार और किसानों सभी के लिए लाभकारी होगा.

Tags: Budget, Kisan

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