UP Politics: यूपी की सियासत में नए समीकरण की तैयारी, आजम खां की प्लानिंग कहीं ये तो नहीं?


सार

आजम खां का मंगलवार को लखनऊ में दिया गया यह बयान, सपा नेतृत्व को लेकर उनका रवैया, शिवपाल से मुलाकातें और ओमप्रकाश राजभर की सपा मुखिया को दी गई नसीहत ने सियासी गलियारों में सरगर्मी बढ़ा दी है।

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अब तक मैंने अपना पूरा जीवन लाइन खींचकर रखा था। किसी दूसरी कश्ती की तरफ देखा तक नहीं लेकिन अंदाज यह हुआ कि यह मेरी गलती थी। दुआ-सलाम सबसे रखनी चाहिए। चाय-नाश्ता सबके साथ करना चाहिए। दूसरे नेताओं की तरह मेरा भी यह अधिकार है। जब सब एक-दूसरे के साथ चाय-नाश्ता करते हैं, शादी-बरात में शामिल होते हैं तो मैं क्यों नहीं कर सकता। इस सवाल पर कि क्या दूसरी कश्ती की तरफ देखेंगे तो वह बोले, पहले कोई माकूल कश्ती तो मिले। अभी तो मेरा जहाज ही काफी है। शिवपाल से मुलाकात पर बोले, वह पहले भी कई बार मिले हैं और आगे भी मिलेंगे। अखिलेश से नाराजगी पर बोले, मेरे जैसा कमजोर शख्स किसी से नाराज क्या होगा…

आजम खां का मंगलवार को लखनऊ में दिया गया यह बयान, सपा नेतृत्व को लेकर उनका रवैया, शिवपाल से मुलाकातें और ओमप्रकाश राजभर की सपा मुखिया को दी गई नसीहत ने सियासी गलियारों में सरगर्मी बढ़ा दी है। कुछ लोग इन सरगर्मियों के पीछे प्रदेश की सियासत में नए समीकरणों की पदचाप महसूस करने लगे हैं। 

ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो भविष्य में पता चलेगा लेकिन यह स्थिति राज्यसभा चुनाव को लेकर सपा की चुनौती जरूर बढ़ाती दिख रही है। जून के पहले सप्ताह प्रदेश में 11 राज्यसभा सीटों के लिए होने जा रही चुनावी जंग से दिलचस्प समीकरण देखने को मिल सकते हैं। भाजपा सभी 11 सीटें जीतने की कोशिश करेगी, क्योंकि राष्ट्रपति व उप राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर भाजपा की कोशिश ज्यादा से ज्यादा वोटों की व्यवस्था करने पर होगी। अगर राज्यसभा चुनाव में मतदान नहीं हुआ तो भी आजम खां और शिवपाल यादव के चलते बन रहे ये समीकरण निकट भविष्य में होने वाले विधान परिषद सीटों के चुनाव में कुछ न कुछ उथल-पुथल जरूर मचाएंगे।

ये है बानगी
आजम ने विधायक पद की शपथ तो ली लेकिन विधानसभा में नहीं पहुंचे जबकि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उनके लिए अपने बगल की सीट तय की थी। आजम सदन में नहीं गए तो अखिलेश भी आजम से मिलने नहीं गए। अलबत्ता अखिलेश ने आजम के पुत्र रामपुर की स्वार सीट से विधायक अब्दुल्ला आजम से बंद कमरे में लगभग 20 मिनट बातें कीं। किस मुद्दे पर बातचीत हुई इस पर दोनों तरफ से चुप्पी साध ली गई है। चर्चा तो अखिलेश के भी फोन पर आजम से बात करने की है। पर किसी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं की जा रही है। 

दूसरी तरफ शिवपाल और आजम की सोमवार देर शाम लखनऊ में फिर मुलाकात हुई। इस सबके बीच सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने जिस तरह अखिलेश को वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव जीतने के मद्देनजर एसी कमरों से बाहर निकलने की सलाह दी। उससे साफ तौर पर यह लगने लगा है कि यूपी की सियासत में कुछ तो हलचल जरूर होने वाली है। इसका स्वरूप क्या होगा, इसके बारे में अभी निश्चित रूप से कहना जल्दबाजी होगी। सिवाय इसके कि सपा की परेशानी बढ़ सकती है।

बिखराव रोकना बना चुनौती
जुमलों के बाजीगर आजम कभी भी सार्वजनिक रूप से यह नहीं मानेंगे कि ‘अपनी तबाही में अपनों का हाथ’ कहकर उन्होंने अखिलेश पर निशाना साधा है या साध रहे हैं। दरअसल यही तो आजम की वह  खासियत है, जो उन्हें दूसरों से अलग करती है। सीधे-सीधे कभी वार न करो। ऐसे शब्दबाण चलाओ कि सामने वाले को उसकी मारक क्षमता का अंदाज ही न होने पाए। वैसे भी आजम और अखिलेश के रिश्ते कुछ अपवादों को बहुत ज्यादा सहज नहीं रहे। जिसकी बानगी वर्ष 2012 में बनी अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सरकार थी। 

इसमें संसदीय कार्यमंत्री होने के बावजूद वह अपनी सरकार अलग चलाते नजर आए। कैबिनेट की शुरुआती कई बैठकों से गायब रहकर मुख्यमंत्री की अन्य बैठकों से दूरी बनाकर और तमाम मुद्दों पर सार्वजनिक रूप से तंज कसकर। इस बार तो आजम ने अपने महबूब नेता मुलायम सिंह यादव पर भी निशाना साधने में रियायत नहीं बरती है। यह कहते हुए, हो सकता है कि उनके (मुलायम सिंह यादव) के पास मेरा नंबर न हो। इस सबके बीच आजम की रिहाई से पूर्व जिस तरह शिवपाल यादव का बयान आया, नेताजी चाहते तो आजम भाई जेल में न होते। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेताजी को बहुत मानते हैं और उनका रिहाई वाले दिन सुबह 7 बजे ही सीतापुर जेल पहुंचकर आजम का स्वागत करना काफी कुछ कह देता है। वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र भट्ट कहते हैं कि आजम और शिवपाल के बीच दिख रहे ये रिश्ते कुछ और करें या न करें लेकिन आने वाले दिनों में अखिलेश की राह में चुनौती जरूर खड़ी करेंगे। इसके चलते खासतौर से राज्यसभा चुनाव में यदि मतदान हुआ तो सपा मुखिया अखिलेश यादव को अपने गठबंधन में बिखराव रोकने के लिए काफी जूझना होगा ।

कारण हैं ये
आजम, अब्दुल्ला और शिवपाल अलग राह पर चलते दिख रहे हैं। इसका सपा को नुकसान भी हो सकता है। बकौल भट्ट चर्चा है कि आजम अपनी नाराजगी के जरिये सपा पर दबाव बनाकर सुप्रीम कोर्ट से उनकी जमानत कराने वाले कपिल सिब्बल को राज्यसभा भिजवाना चाहते हैं। अगर ऐसा है तो भी एक तरह से वह अखिलेश के लिए चुनौती ही है क्योंकि ऐसी स्थिति में सपा मुखिया अपनी इच्छानुसार लोगों को राज्यसभा में तो भेज नहीं पाएंगे। यह बात इसलिए और महत्वपूर्ण है क्योंकि सूत्र बताते हैं कि अखिलेश ने रालोद नेता जयंत चौधरी सहित एक पूर्व नौकरशाह व एक अन्य नेता को राज्यसभा भेजने का मन बना रखा है। 

दूसरी तरफ ओमप्रकाश राजभर चुनाव नतीजे आने के बाद से ही हाथ-पैर मार रहे हैं। बीच में उनकी भाजपा नेताओं से मुलाकात की चर्चाएं भी चली थीं। हालांकि किसी पक्ष ने इनकी पुष्टि नहीं की थी। पर राजनीतिक पंडितों का दावा है कि राजभर वर्ष 2024 तक तभी सपा के साथ रुकेंगे, जब उन्हें कोई लाभ दिखेगा अन्यथा वे भाजपा से रिश्ते सुधारने की कोशिश करेंगे। भाजपा भी वर्ष 2024 के मद्देनजर राजभर को साथ ले सकती है।

सूत्रों के अनुसार राजभर की यह भी कोशिश दिख रही है कि राज्यसभा सीट के लिए दबाव बनाया जाए। राज्यसभा की सीट न मिले तो भी कम से कम विधान परिषद चुनाव में सपा से एक सीट तो हासिल कर ही ली जाए। नेताओं के ये तेवर सपा की चुनौती बढ़ाएंगे। जैसी कि चर्चा है कि सपा राज्यसभा के लिए तीन उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है। जाहिर है कि मतदान होने पर इसके लिए उसे अपने सभी 111 विधायकों के साथ सहयोगियों के सभी विधायकों के वोट भी चाहिए होंगे। जो तभी संभव है, जब गठबंधन में बिखराव न होने पाए।
 

दिनभर लखनऊ में रहे आजम, पर अखिलेश से नहीं हुई बात

सपा के संस्थापक सदस्यों में शामिल आजम खां और शिवपाल सिंह यादव के बीच सोमवार देर शाम मुलाकात हुई। दोनों में करीब 30 मिनट बंद कमरे में बात हुई। लेकिन दोनों ने इस मुलाकात को व्यक्तिगत बताया है। मंगलवार को भी दोपहर बाद तक आजम खां लखनऊ में रहे, लेकिन सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से उनकी बात तक नहीं हुई है।

जेल से रिहा होने के बाद आजम खां से शिवपाल यादव की यह दूसरी मुलाकात है। सोमवार को आजम खां ने बेटे अब्दुल्ला संग विधान सभा में शपथ ग्रहण किया। दोपहर बाद अब्दुल्ला और अखिलेश की मुलाकात हुई, लेकिन आजम खां से बात तक नहीं हुई। देर शाम शिवपाल सिंह यादव चुपचाप निकले और आजम खां के घर पहुंच गए। यहां दोनों की करीब 30 मिनट तक बंद कमरे में बातचीत हुई। सूत्रों का कहना है कि दोनों सपा शीर्ष नेतृत्व से खफा चल रहे हैं। ऐसे में वे भविष्य की सियासी स्थितियों को लेकर मंथन कर रहे हैं।

राज्यसभा और विधान परिषद चुनाव को लेकर भी उनके बीच बातचीत हुई है। आजम खां ने खुलकर कुछ नहीं बोला है। इतना जरूर कहा कि शिवपाल सिंह से आगे भी मुलाकात होती रहेगी। मेरी किसी से नाराजगी नहीं है। नाराज होने की मेरी औकात नहीं है। साथ ही यह भी जोडा कि जो मिलने आए हैं वो उनकी मोहब्बत है। एक तरफ शिवपाल सिंह यादव से आजम की लगातार मुलाकात हो रही है तो दूसरी तरफ मंगलवार शाम तक उनकी सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से कोई बात नहीं हुई है। इसे सियासी नजरिए से अहम माना जा रहा है।

सपा ने सिब्बल को राज्यसभा भेजा तो अच्छी बात
सपा के कद्दावर नेता आजम खां ने मीडिया से बातचीत में कहा कि यदि पार्टी सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता कपिल सिब्बल को राज्यसभा भेजती है तो अच्छी बात है। कपिल सिब्बल को राज्यसभा भेजे जाने से मुझे सबसे ज्यादा खुशी होगी। इससे पहले भी वह कपिल सिब्बल की तारीफ करते हुए उनके प्रति आभार जता चुके हैं। आजम खां ने यह भी कहा कि रामपुर से वह उपचुनाव नहीं लड़ेंगे। कोई भई उम्मीदवार हो उन्हें कोई दिक्कत नहीं होगी। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव से मुलाकात के सवाल पर आजम खां ने कहा कि वह बड़े नेता हैं और अपनी मर्जी के मालिक हैं। उनकेबारे में कोई कमेंट नहीं किया जा सकता है।
 

विस्तार

अब तक मैंने अपना पूरा जीवन लाइन खींचकर रखा था। किसी दूसरी कश्ती की तरफ देखा तक नहीं लेकिन अंदाज यह हुआ कि यह मेरी गलती थी। दुआ-सलाम सबसे रखनी चाहिए। चाय-नाश्ता सबके साथ करना चाहिए। दूसरे नेताओं की तरह मेरा भी यह अधिकार है। जब सब एक-दूसरे के साथ चाय-नाश्ता करते हैं, शादी-बरात में शामिल होते हैं तो मैं क्यों नहीं कर सकता। इस सवाल पर कि क्या दूसरी कश्ती की तरफ देखेंगे तो वह बोले, पहले कोई माकूल कश्ती तो मिले। अभी तो मेरा जहाज ही काफी है। शिवपाल से मुलाकात पर बोले, वह पहले भी कई बार मिले हैं और आगे भी मिलेंगे। अखिलेश से नाराजगी पर बोले, मेरे जैसा कमजोर शख्स किसी से नाराज क्या होगा…

आजम खां का मंगलवार को लखनऊ में दिया गया यह बयान, सपा नेतृत्व को लेकर उनका रवैया, शिवपाल से मुलाकातें और ओमप्रकाश राजभर की सपा मुखिया को दी गई नसीहत ने सियासी गलियारों में सरगर्मी बढ़ा दी है। कुछ लोग इन सरगर्मियों के पीछे प्रदेश की सियासत में नए समीकरणों की पदचाप महसूस करने लगे हैं। 

ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो भविष्य में पता चलेगा लेकिन यह स्थिति राज्यसभा चुनाव को लेकर सपा की चुनौती जरूर बढ़ाती दिख रही है। जून के पहले सप्ताह प्रदेश में 11 राज्यसभा सीटों के लिए होने जा रही चुनावी जंग से दिलचस्प समीकरण देखने को मिल सकते हैं। भाजपा सभी 11 सीटें जीतने की कोशिश करेगी, क्योंकि राष्ट्रपति व उप राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर भाजपा की कोशिश ज्यादा से ज्यादा वोटों की व्यवस्था करने पर होगी। अगर राज्यसभा चुनाव में मतदान नहीं हुआ तो भी आजम खां और शिवपाल यादव के चलते बन रहे ये समीकरण निकट भविष्य में होने वाले विधान परिषद सीटों के चुनाव में कुछ न कुछ उथल-पुथल जरूर मचाएंगे।

ये है बानगी

आजम ने विधायक पद की शपथ तो ली लेकिन विधानसभा में नहीं पहुंचे जबकि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उनके लिए अपने बगल की सीट तय की थी। आजम सदन में नहीं गए तो अखिलेश भी आजम से मिलने नहीं गए। अलबत्ता अखिलेश ने आजम के पुत्र रामपुर की स्वार सीट से विधायक अब्दुल्ला आजम से बंद कमरे में लगभग 20 मिनट बातें कीं। किस मुद्दे पर बातचीत हुई इस पर दोनों तरफ से चुप्पी साध ली गई है। चर्चा तो अखिलेश के भी फोन पर आजम से बात करने की है। पर किसी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं की जा रही है। 

दूसरी तरफ शिवपाल और आजम की सोमवार देर शाम लखनऊ में फिर मुलाकात हुई। इस सबके बीच सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने जिस तरह अखिलेश को वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव जीतने के मद्देनजर एसी कमरों से बाहर निकलने की सलाह दी। उससे साफ तौर पर यह लगने लगा है कि यूपी की सियासत में कुछ तो हलचल जरूर होने वाली है। इसका स्वरूप क्या होगा, इसके बारे में अभी निश्चित रूप से कहना जल्दबाजी होगी। सिवाय इसके कि सपा की परेशानी बढ़ सकती है।

बिखराव रोकना बना चुनौती

जुमलों के बाजीगर आजम कभी भी सार्वजनिक रूप से यह नहीं मानेंगे कि ‘अपनी तबाही में अपनों का हाथ’ कहकर उन्होंने अखिलेश पर निशाना साधा है या साध रहे हैं। दरअसल यही तो आजम की वह  खासियत है, जो उन्हें दूसरों से अलग करती है। सीधे-सीधे कभी वार न करो। ऐसे शब्दबाण चलाओ कि सामने वाले को उसकी मारक क्षमता का अंदाज ही न होने पाए। वैसे भी आजम और अखिलेश के रिश्ते कुछ अपवादों को बहुत ज्यादा सहज नहीं रहे। जिसकी बानगी वर्ष 2012 में बनी अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सरकार थी। 

इसमें संसदीय कार्यमंत्री होने के बावजूद वह अपनी सरकार अलग चलाते नजर आए। कैबिनेट की शुरुआती कई बैठकों से गायब रहकर मुख्यमंत्री की अन्य बैठकों से दूरी बनाकर और तमाम मुद्दों पर सार्वजनिक रूप से तंज कसकर। इस बार तो आजम ने अपने महबूब नेता मुलायम सिंह यादव पर भी निशाना साधने में रियायत नहीं बरती है। यह कहते हुए, हो सकता है कि उनके (मुलायम सिंह यादव) के पास मेरा नंबर न हो। इस सबके बीच आजम की रिहाई से पूर्व जिस तरह शिवपाल यादव का बयान आया, नेताजी चाहते तो आजम भाई जेल में न होते। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेताजी को बहुत मानते हैं और उनका रिहाई वाले दिन सुबह 7 बजे ही सीतापुर जेल पहुंचकर आजम का स्वागत करना काफी कुछ कह देता है। वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र भट्ट कहते हैं कि आजम और शिवपाल के बीच दिख रहे ये रिश्ते कुछ और करें या न करें लेकिन आने वाले दिनों में अखिलेश की राह में चुनौती जरूर खड़ी करेंगे। इसके चलते खासतौर से राज्यसभा चुनाव में यदि मतदान हुआ तो सपा मुखिया अखिलेश यादव को अपने गठबंधन में बिखराव रोकने के लिए काफी जूझना होगा ।

कारण हैं ये

आजम, अब्दुल्ला और शिवपाल अलग राह पर चलते दिख रहे हैं। इसका सपा को नुकसान भी हो सकता है। बकौल भट्ट चर्चा है कि आजम अपनी नाराजगी के जरिये सपा पर दबाव बनाकर सुप्रीम कोर्ट से उनकी जमानत कराने वाले कपिल सिब्बल को राज्यसभा भिजवाना चाहते हैं। अगर ऐसा है तो भी एक तरह से वह अखिलेश के लिए चुनौती ही है क्योंकि ऐसी स्थिति में सपा मुखिया अपनी इच्छानुसार लोगों को राज्यसभा में तो भेज नहीं पाएंगे। यह बात इसलिए और महत्वपूर्ण है क्योंकि सूत्र बताते हैं कि अखिलेश ने रालोद नेता जयंत चौधरी सहित एक पूर्व नौकरशाह व एक अन्य नेता को राज्यसभा भेजने का मन बना रखा है। 

दूसरी तरफ ओमप्रकाश राजभर चुनाव नतीजे आने के बाद से ही हाथ-पैर मार रहे हैं। बीच में उनकी भाजपा नेताओं से मुलाकात की चर्चाएं भी चली थीं। हालांकि किसी पक्ष ने इनकी पुष्टि नहीं की थी। पर राजनीतिक पंडितों का दावा है कि राजभर वर्ष 2024 तक तभी सपा के साथ रुकेंगे, जब उन्हें कोई लाभ दिखेगा अन्यथा वे भाजपा से रिश्ते सुधारने की कोशिश करेंगे। भाजपा भी वर्ष 2024 के मद्देनजर राजभर को साथ ले सकती है।

सूत्रों के अनुसार राजभर की यह भी कोशिश दिख रही है कि राज्यसभा सीट के लिए दबाव बनाया जाए। राज्यसभा की सीट न मिले तो भी कम से कम विधान परिषद चुनाव में सपा से एक सीट तो हासिल कर ही ली जाए। नेताओं के ये तेवर सपा की चुनौती बढ़ाएंगे। जैसी कि चर्चा है कि सपा राज्यसभा के लिए तीन उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है। जाहिर है कि मतदान होने पर इसके लिए उसे अपने सभी 111 विधायकों के साथ सहयोगियों के सभी विधायकों के वोट भी चाहिए होंगे। जो तभी संभव है, जब गठबंधन में बिखराव न होने पाए।

 

दिनभर लखनऊ में रहे आजम, पर अखिलेश से नहीं हुई बात

सपा के संस्थापक सदस्यों में शामिल आजम खां और शिवपाल सिंह यादव के बीच सोमवार देर शाम मुलाकात हुई। दोनों में करीब 30 मिनट बंद कमरे में बात हुई। लेकिन दोनों ने इस मुलाकात को व्यक्तिगत बताया है। मंगलवार को भी दोपहर बाद तक आजम खां लखनऊ में रहे, लेकिन सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से उनकी बात तक नहीं हुई है।

जेल से रिहा होने के बाद आजम खां से शिवपाल यादव की यह दूसरी मुलाकात है। सोमवार को आजम खां ने बेटे अब्दुल्ला संग विधान सभा में शपथ ग्रहण किया। दोपहर बाद अब्दुल्ला और अखिलेश की मुलाकात हुई, लेकिन आजम खां से बात तक नहीं हुई। देर शाम शिवपाल सिंह यादव चुपचाप निकले और आजम खां के घर पहुंच गए। यहां दोनों की करीब 30 मिनट तक बंद कमरे में बातचीत हुई। सूत्रों का कहना है कि दोनों सपा शीर्ष नेतृत्व से खफा चल रहे हैं। ऐसे में वे भविष्य की सियासी स्थितियों को लेकर मंथन कर रहे हैं।

राज्यसभा और विधान परिषद चुनाव को लेकर भी उनके बीच बातचीत हुई है। आजम खां ने खुलकर कुछ नहीं बोला है। इतना जरूर कहा कि शिवपाल सिंह से आगे भी मुलाकात होती रहेगी। मेरी किसी से नाराजगी नहीं है। नाराज होने की मेरी औकात नहीं है। साथ ही यह भी जोडा कि जो मिलने आए हैं वो उनकी मोहब्बत है। एक तरफ शिवपाल सिंह यादव से आजम की लगातार मुलाकात हो रही है तो दूसरी तरफ मंगलवार शाम तक उनकी सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से कोई बात नहीं हुई है। इसे सियासी नजरिए से अहम माना जा रहा है।

सपा ने सिब्बल को राज्यसभा भेजा तो अच्छी बात

सपा के कद्दावर नेता आजम खां ने मीडिया से बातचीत में कहा कि यदि पार्टी सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता कपिल सिब्बल को राज्यसभा भेजती है तो अच्छी बात है। कपिल सिब्बल को राज्यसभा भेजे जाने से मुझे सबसे ज्यादा खुशी होगी। इससे पहले भी वह कपिल सिब्बल की तारीफ करते हुए उनके प्रति आभार जता चुके हैं। आजम खां ने यह भी कहा कि रामपुर से वह उपचुनाव नहीं लड़ेंगे। कोई भई उम्मीदवार हो उन्हें कोई दिक्कत नहीं होगी। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव से मुलाकात के सवाल पर आजम खां ने कहा कि वह बड़े नेता हैं और अपनी मर्जी के मालिक हैं। उनकेबारे में कोई कमेंट नहीं किया जा सकता है।

 



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