वीडियो गेम से बढ़ता है कंसन्ट्रेशन या एक बीमारी है इसकी लत ? एक्सपर्ट से जानिए


पिछले दो सालों से भी ज्यादा समय से महामारी से जूझ रही दुनिया एक वर्चुअल वर्ल्ड में सिमट सी गई है. अब ज्यादातर काम मोबाइल या लैपटॉप के जरिए ही हो रहा है. इसी दौरान हमारा इन गैजेट्स पर ज्यादा समय बीत रहा है. खासकर छोटे बच्चों का, जिनकी क्लासेज ऑनलाइन होने लगी थीं. ऐसे में वीडियो गेम्स (Video Games) भी बच्चों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गए. कई रिसर्च में सामने आया है कि वीडियो गेम्स हमारे लिए नुकसानदायक है. अगर ये लत बन जाए और हमारे रोजमर्रा के कामों में आड़े आने लगे, तो समझ लें कि ये एक बीमारी है. दैनिक भास्कर अखबार ने ब्लूमबर्ग में छपी न्यूज रिपोर्ट के हवाले से लिखा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने औपचारिक तौर पर पिछले महीने ही वीडियो गेम्स की लत (Addiction of Video Games) को बीमारी माना है. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कुछ समय के लिए खेलें, तो वीडियो गेम्स हमारे लिए फायदेमंद भी हो सकते हैं.

ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन के बोर्ड ऑफ साइंस की सदस्य और इंग्लैंड के नेशनल सेंटर फॉर गेमिंग डिसऑर्डर की संस्थापक डॉ. हेनरिएटा बॉडन जोन्स (Henrietta Bowden-Jones) बताती हैं कि 2020 में गेमिंग डिसऑर्डर (Gaming Disorder) वाले बच्चे एक दिन में 12 से 18 घंटे तक वीडियो गेम्स खेल रहे थे. ये स्कूल नहीं जाते थे. वो आगे कहती हैं कि उनके पास आने वाले एक-तिहाई मरीजों ने खुद पर ध्यान देना बंद कर दिया था. उनको वीडियो गेम्स की ऐसी लत थी कि कपड़े बदलने या नहाने तक का ध्यान नहीं रखते थे.

वीडियो गेम खेलने से रोका तो…
डॉ. हेनरिएटा के अनुसार, कोई उनसे मोबाइल या लैपटॉप दूर करता, तो आक्रामक हो जाते. हालांकि, गेमिंग डिसऑर्डर कम लोगों में पाया जाता है, लेकिन ये बेहद खतरनाक है. ऐसे मरीज खिड़की और छत से कूदने की धमकी देते हैं. आधी रात घर से बाहर चले जाते हैं, मीलों पैदल चलते हैं, ताकि कहीं इंटरनेट मिल जाए. पेरेंट्स अगर उनको रोकें तो उन पर हमला कर देते हैं. दरवाजा-खिड़की तोड़कर मोबाइल और लैपटॉप पाने की कोशिश करते हैं.

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थोड़े समय खेलने से नहीं है नुकसान
डॉ. हेनरिएटा कहती हैं कि अगर तय समय के लिए वीडियो गेम खेलें तो ये एकाग्रता अवधि यानी कंसन्ट्रेशन पीरियड (concentration period) बढ़ाने में मददगार हो सकता है. अगर खाली टाइम में गेम खेल रहे हैं और इससे आपका कोई काम नहीं रुक रहा है, तो ये फायदेमंद है. बच्चों को ये कहकर नहीं डराना चाहिए वीडियो गेम डिजिटल नशा (digital addiction) है या हिंसक अपराधों के लिए जिम्मेदार है. उन्हें इसके फायदे-नुकसान के बारे में बताना चाहिए.

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पेरेंट्स की भूमिका
पेरेंट्स को चाहिए उन्हें ऐसे गेम कंटेंट खेलने दें जो उम्र के हिसाब से हों. उनके मोबाइल-लैपटॉप पर लिमिट लगानी चाहिए. स्क्रीन टाइम यानी कितनी देर वो मोबाइल या लैपटॉप पर रहें ये तय करना चाहिए. साथ ही बच्चों को समय-समय पर ब्रेक लेने को कहना चाहिए. एक लिमिटेड टाइम के बाद वाईफाई/इंटरनेट बंद कर दें. इस बात का भी ध्यान रखें कि बच्चे अपना होमवर्क, स्कूल प्रोजेक्ट, खुद के छोटे-बड़े काम करने के बाद ही वीडियो गेम खेलें. पेरेंट्स को इनका सख्ती से पालन करना चाहिए और बच्चों से भी करवाना चाहिए.

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