बेजुबान शब्दों के एहसास में जब खुला नवाजुद्दीन के सपनों का खाता


Nawazuddin Siddiqui Poetry: बॉलीवुड गलियारों में कई चेहरे फेम की तलाश में निकल पड़ते हैं. लेकिन इनमें से कई चेहरे कहा गुमनाम हो जाते है किसी को पता नहीं चलता. लेकिन कुछ चेहरे ऐसे भी होते है जो इस गुमनाम राहों से निकलकर एक मौका मिलते ही चौका लगा देते हैं. नवाजुद्दीन सिद्दीकी (Nawazuddin Siddiqui) भी उन चेहरों में से एक हैं. ऐसे में नेटफ्लिक्स (Netflix) पर अपनी जर्नी को एक्टर ने एक कविता के जरिए सुनाया है. इन शब्दों से आप नवाज की पूरी जर्नी समझ सकते हैं, कविता में लिखी पंक्तियों को पढ़िए.

कुछ बेजुबान शब्द थे उनका एहसास कहीं छुपा हुआ,
क्यों अनसुना कर रहा है समुंदर मेरी लहरों को,
यही सोच में फिरता रहता है यहां वहां.
मगर शायद सपनों का खाता तब खुलता है,
जब राह चलते सवालों में भी एक सहमा सा दिल कोई इशारा ढूंढता है.
जमीन पर गिरे पत्तों की तरह कदम-कदम पर कई चौराहे मिले,
अपनी तारीफ सुनकर हैरानी जरूर हुई.
पर वक्त को वक्त दिया मैंने
मैं चुपचाप आगे बढ़ता रहा, और वह मुझे गौर से देखते रहे.
अकेला था मैं एक अनजान सफर इकलौता मुसाफिर,
जिंदगी की बेल पर चढ़ता उतरता,
फिर किसी प्लेटफार्म के कोने पर जाकर बैठ जाता.
बिना कुछ किए बिना कुछ कहे सुकून की लय में जैसे खो जाता.
घर जाना पसंद नहीं था, पर घर के कुछ पास ही मेरा जमीर था
एक खूबसूरत सा पेड़, जिसका कोई अपना तो नहीं था
पर वो जो बदलते मौसम को खेल-खेल में बड़ी बेरहमी से हराता था.
इसका एहसास मुझे तब हुआ, जब एक अजनबी ने मेरी काबिलियत को सच्चाई से पुकारा.

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