नई दिल्ली. लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar Death) भले ही इस दुनिया में नहीं रहीं, मगर वो लोगों के दिलों में जिंदा हैं. उनकी आवाज हर एक शख्स के कानों में गूंजती है. वो लोगों के गुनगुनाते अपने गानों में जिंदा रहेंगी. गीत उनके लिए क्या मायने रखते थे, इसे शब्दों में बयां कर पाना तो नामुमिकन हैं, मगर क्रिकेट का उनकी जिंदगी में क्या स्थान था, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि जब कपिल देव (Kapil Dev) की अगुआई में भारत ने 1983 में पहली बार वर्ल्ड कप जीता था तो उस समय भारतीय क्रिकेट सुपरपावर नहीं बना था.
उस समय क्रिकेटर्स पर धनवर्षा भी नहीं होती थी. बोर्ड के पास अपनी विश्व विजेता टीम को देने के लिए पैसे तक नहीं थे. ऐसे में लता जी ने भारतीय क्रिकेट और क्रिकेटर्स की मदद की थी. उन्होंने दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में करीब 2 घंटे का कन्र्स्ट किया.
2 वीआईपी सीट स्वर कोकिला के लिए रिजर्व
उस कन्र्स्ट से बीसीसीआई (BCCI) ने इतना पैसा इकट्ठा किया कि सभी 14 खिलाड़ियों को एक एक लाख रुपये दिए गए. स्वर कोकिला ने इस कन्र्स्ट के लिए बीसीसीआई से कोई फीस भी नहीं ली थी. भारतीय क्रिकेट में लता मंगेशकर के इस योगदान को हमेशा याद किया जाता है और आने वाले समय में भी किया जाता रहेगा.
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लता मंगेशकर के सम्मान में भारत के हर स्टेडियम में उनके लिए इंटरनेशनल मैच में 2 वीआईपी सीट रिजर्व रखे गए जाते थे. 70- 80 के दशक में लता मंगेशकर वानखेड़े स्टेडियम में नियमित रूप से आती थीं. स्वर कोकिला अपने भाई हृदयनाथ मंगेशकर के साथ हमेशा ब्रेबोर्न स्टेडियम में टेस्ट मैच देखने आती थीं. फिर चाहे वो कितनी भी बिजी क्यों न हो.
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