ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक दिन में सुनाए 44 फैसले, पूर्व न्यायधीशों ने की तारीफ


नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 11 जुलाई को एक ही दिन में 44 फैसले सुनाए, जो हाल के दिनों में शीर्ष अदालत के रिकॉर्ड को देखते हुए अद्वितीय है. न्यायाधीशों द्वारा पारित आदेशों की यह बड़ी संख्या 23 मई से 10 जुलाई तक विस्तारित ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद, शीर्ष अदालत के फिर से खुलने के दिन आई. हिन्दुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन 44 फैसलों में प्रत्यर्पण समझौतों की जांच से लेकर घरेलू कानूनों तक के विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल रही. आपराधिक अपीलों से लेकर दीवानी विवादों तक; बैंकिंग और वाणिज्यिक मामलों से लेकर न्यायालय की अवमानना ​​और अनुबंधों के पालन तक के मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने फैसले दिए.

एक दिन में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाए गए 44 फैसलों में से 20, अकेले जस्टिस एमआर शाह ने दिए. शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीशों ने हमेशा कहा है कि अवकाश, शोध और निर्णय लिखने के लिए जजों को अतिरिक्त समय प्रदान करता है. इन निर्णयों के पीछे तर्क और चर्चा, संवैधानिक और जिला अदालतों में समान मामलों के लिए मिसाल के रूप में काम करते हैं. ग्रीष्मकालीन अवकाश उच्चतम न्यायालय के लिए सबसे लंबा अवकाश होता है. रिपोर्ट में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन के हवाले से लिखा गया है, ‘अवकाश हमें निर्णय लेने और उन विषयों पर शोध के लिए तैयार होने के लिए पर्याप्त समय देता है, जिनके लिए अमूमन हमें आम दिनों में इतना समय नहीं मिलता.’

न्यायाधीशों द्वारा की गई जबरदस्त मेहनत की सराहना होनी चाहिए: पूर्व सीजेआई
पूर्व सीजेआई केजी बालकृष्णन ने कहा, ‘हमें गर्मी की छुट्टियों के बाद एक दिन में इतने सारे फैसले लेने में, न्यायाधीशों द्वारा की गई जबरदस्त मेहनत की सराहना करनी चाहिए. यह सब न्यायाधीशों को अन्य कार्यों के साथ करना पड़ता है, जैसे कि सेमिनारों को संबोधित करना, सम्मेलनों में भाग लेना आदि.’ रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के एक अन्य पूर्व न्यायाधीश, न्यायमूर्ति वी गोपाल गौड़ा के हवाले से कहा गया है, ‘न्यायाधीशों के लिए अवकाश का समय कायाकल्प करने और शोध पर समय बिताने के लिए है.’ अपने स्वयं के अनुभव को साझा करते हुए, उन्होंने कहा, ‘गर्मी की छुट्टी के बाद मेरे द्वारा कानूनों की वैधता और संविधान में परस्पर विरोधी प्रावधानों के मामले में महत्वपूर्ण निर्णय दिया गया था. एक मामले में, सबूत ही 30 खंडों में थे.’

सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए किसी भी फैसले के गंभीर परिणाम होते हैं: जस्टिस गौड़ा
पूर्व न्यायाधीश वी गोपाल गौड़ा ने समझाते हुए कहा कि यह एक ‘कठिन’ काम है. उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट देश का सर्वोच्च न्यायालय है और इसके द्वारा दिए गए किसी भी फैसले के गंभीर परिणाम होते हैं. इस जिम्मेदारी को समझते हुए, न्यायाधीश कानून की गहन समझ, अंतरराष्ट्रीय कानून का तुलनात्मक अध्ययन, कानूनी प्रावधानों की समझ, तथ्यों के टकराव को सुलझाने और किसी दिए गए मामले पर लागू होने वाले कानून की जांच करने में संलग्न होते हैं.’ पूर्व सीजेआई बालकृष्णन ने कहा, ‘छुट्टियों के दौरान, आदेश/निर्णय लेने के लिए स्टेनोग्राफर की उपलब्धता जरूरी होती है.’ पूर्व जज गौड़ा कहते हैं, ‘फैसला लिखने में बहुत अधिक डिक्टेशन और करेक्शन की जरूरत पड़ती है. यह कोई साधारण कार्य नहीं बल्कि कठिन कार्य है. छुट्टियों के दौरान जज को लॉ स्टेनोग्राफर्स से बेहतर सहायता मिलती है.’

बड़े और अधिक निर्णय देने की यह प्रवृत्ति जारी रहनी चाहिए: जस्टिस बालकृष्णन
हालांकि, साल के दौरान सुप्रीम कोर्ट के पास अन्य अवकाश भी होते हैं, लेकिन वे कम समय के होते हैं. जैसे दो सप्ताह का क्रिसमस ब्रेक और एक सप्ताह का दिवाली ब्रेक होता है. ये अवकाश निर्णय लिखने के लिए अपेक्षाकृत कम समय प्रदान करते हैं. न्यायमूर्ति बालकृष्णन ने कहा, ‘दिसंबर का ब्रेक एक छोटा ब्रेक है. इसे शायद ही छुट्टी कहा जा सकता है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘बड़े और अधिक निर्णय देने की यह प्रवृत्ति जारी रहनी चाहिए. ताकि कोविड महामारी के दौरान खोए हुए कीमती न्यायिक समय की भरपाई हो सके.’

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