नई दिल्ली. विल्सन्स नामक बीमारी (Wilson’s Disease) से पीडि़त एक आठ वर्षीय बच्ची का इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल में सफल लिवर ट्रांसप्लांट (Liver Transplant) किया गया है. इस बच्ची को 25 मार्च की शाम करीब आठ बजे कोमा की अवस्था में इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था. भर्ती के साथ ही बच्ची की डायलिसिस और प्लाज़्मा एक्सचेंज थेरेपी शुरू की गई, जिससे उसके शरीर से कॉपर को निकाला जा सके. साथ ही, बच्ची के अभिभावकों से तत्काल लिवर ट्रांसप्लांट की कराने की बात कही गई.
लिवर ट्रांसप्लांट के लिए अपोलो हॉस्पिटल्स के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर एण्ड सीनियर पीडिएट्रिक गैस्ट्रोएंट्रोलोजिस्ट डॉ. अनुपम सिब्बल के नेतृत्व में डॉक्टर्स का एक पैनल गठित िकया गया, जिसमें डॉ. स्मिता मल्होत्रा, डॉ. करूनेश कुमार (कन्सलटेन्ट, पीडिएट्रिक गैस्ट्रोएंट्रोलोजी), डॉ. अरूण वी, डॉ. वरूण एम, डॉ. प्रदीप कुमार (कन्सलटेन्ट्स, लिवर ट्रांसप्लांट) और डॉ. रमन आर (एनेस्थेटिस्ट) शामिल थे. बच्ची की मां ने लिवर डोनेट करने का फैसला किया और लिवर ट्रांसप्लांट की तैयारियां शुरू कर दी गईं.
ऑपरेशनल से पहले कम्पेटिबल ब्लड ग्रुप डोनर न मिलने की वजह से एबीओ-इनकम्पेटिबल एमरजेंसी लिवर डोनर लाईव ट्रांसप्लांट की योजना बनाई गई. 27 मार्च को लिवर ट्रांसप्लांट का सफल ऑपरेशन पूरा कर लिया गया. ऑपरेशन से दो दिन बाद बच्ची को होश आ गया और उसे वेंटीलेटर से हटा दिया गया. इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के डॉक्टर्स की कोशिशों का ही नतीजा है कि 8 साल की बच्ची को एक नई जिंदगी दी जा सकी है और जल्द ही वह दूसरे बच्चों की तरह अपना जीवन सामान्य तरह से जी सकेगी.
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पहला इमरजेंसी एबीपी इनकम्पेटिबल ट्रांसप्लांट
डॉ. अनुपम सिब्बल के अनुसार, बच्ची की गंभीर स्थिति को देखते हुए उसे तुरंत वेंटीलेटर में शिफ्ट किया गया. डोनर के एबीओ इनकम्पेटिबल होने की वजह से सर्जरी से पहले जांच और फिर ट्रांसप्लांट सर्जरी दोनों ही बेहद मुश्किल थे. बावजूद इसके, इमरजेंसी एबीपी इनकम्पेटिबल ट्रांसप्लांटकी मदद से 31 घंटे के भीतर लाईव लिवर ट्रांसप्लानट किया गया. अपोलो के लिवर ट्रांसप्लांट प्रोग्राम के तहत अब तक 432 पीडिएट्रिक लिवर ट्रांसप्लान्ट्स हो चुकी हैं, जिसमें मरीज़ के रिश्तेदार डोनर के साथ इमरजेंसी एबीपी इनकम्पेटिबल ट्रांसप्लांट का यह पहला मामला था.
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क्या है विल्सन्स की बीमारी
इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट (लिवर ट्रांसप्लांटस) डॉ. नीरव गोयल के अनुसार , विल्सन्स एक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी है, जिसमें शरीर में अतिरिक्त कॉपर जमा हो जाता है. इसके उपचार के लिए मरीज़ को जीवन भर दवाओं पर ही निर्भर रहना पड़ता है. विल्सन्स के कुछ मामलों में बच्चे लिवर फेलियर के चलते कोमा में चले जाते है. विलसन रोग में कोमा में चले जाने पर बच्चों में मृत्यु दर करीब 100 फीसदी होती है. उन्होंने बताया कि विल्सन्स रोग के लक्षण बेहद गंभीर होते हैं. अगर समय रहते इसका इलाज न हो, तो स्थिति जानलेवा हो सकती है.
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