जब ब्लड की धमनी यानी आर्टरी में किसी कारण से सूजन आ जाती है और ब्लड वैसल कमजोर होने लगती है तो नस किसी गुब्बारे की तरह फूल जाती और टाइम पर ट्रीटमेंट नहीं होने की वजह से ये फट जाती हैं. जिसे एन्यूरिज्म रप्चर (Aneurysm Rupture) कहते हैं. इससे मरीज की स्थिति गंभीर हो जाती है. इसलिए उससे बचाव का उपाय करना जरूरी होता है. इस दिशा में अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन (American Heart Association) के रिसर्चर्स द्वारा की गई नई स्टडी में पाया है कि ब्लड प्रेशर कम करने की दवा (RAAS inhibitors) एन्यूरिज्म के फटने के रिस्क को 18% तक कम कर सकती है.
ये रिसर्च अलग-अलग जगहों पर रहने वाले 3000 से ज्यादा ऐसे लोगों पर की गई, जो हाई ब्लड प्रेशर और ब्रेन एन्यूरिज्म से पीड़ित थे. हाइपरटेंशन जर्नल में प्रकाशित इस स्टडी के निष्कर्षों के अनुसार, ब्रेन की आर्टरी में होने वाले एन्यूरिज्म को इंट्राक्रेनियल एन्यूरिज्म (intracranial aneurysms) कहते हैं. अगर कोई इंट्राक्रेनियल एन्यूरिज्म रप्चर (Rupture) हो जाए, यानी फट जाए तो ब्रेन में ब्लड फैल जाता है और फिर उस जगह पर ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित हो जाती है. इससे हेमरैजिक स्ट्रोक (hemorrhagic stroke), कोमा में जाने की स्थिति बनती है और मौत भी हो सकती है.
अगर हम दुनियाभर में होने वाले कुल स्ट्रोक के मामलों की बात करें तो एन्यूरिज्म स्ट्रोक के मामले 3 से 5 प्रतिशत ही होते हैं, लेकिन अन्य स्ट्रोक की तुलना में इसमें मौत का आंकड़ा ज्यादा होता है. इतना ही नहीं, यदि उससे उबर भी गए तो दिव्यांगता (Disability) का भी एक बड़ा कारण होता है.
क्या कहते हैं जानकार
रिसर्चर्स के अनुसार, आरएएएस इन्हिबिटर (RAAS inhibitors) दवाओं का इस्तेमाल हाई ब्लड प्रेशर के इलाज में किया जाता है, जिससे आएएएस का प्रभाव ब्लॉक हो जाता है. इस स्टडी के सीनियर रिसर्चर और चंघाई हास्पिटल में न्यूरोसर्जरी के स्पेशलिस्ट किंघई हुआंग (Qinghai huang) ने बताया कि इंट्राक्रेनियल एन्यूरिज्म के आधे मरीज हाई ब्लड प्रेशर से भी पीड़ित होते हैं, इससे वैस्कुलर इन्फ्लेमेशन होता है और एन्यूरिज्म रप्चर का रिस्क बढ़ता है.
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एन्यूरिज्मरप्चर के एक तिहाई रोगियों की तो मौत हो जाती है और बाकी जिंदा बचे लोग जिंदगीभर के लिए अपने डेली कामकाज के लिए भी दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं. ऐसे में जरूरी है कि रिस्क वाले कारकों पर अंकुश हो जिससे कि एन्यूरिज्म रप्चर की रोकथाम हो सके.
कैसे हुई स्टडी
स्टडी में 3000 से ज्यादा ऐसे वयस्कों को शामिल किया गया, जो हाई ब्लड प्रेशर तथा इंट्राक्रेनियल एन्यूरिज्म से पीडि़त थे. स्टडी में शामिल इन प्रतिभागियों में एक-तिहाई पुरुष और शेष दो-तिहाई महिलाएं थीं. इनकी औसत उम्र 61 वर्ष थी. प्रतिभागियों को ब्लड प्रेशर की स्थिति के हिसाब से कंट्रोल ग्रुप (एंटीहाइपरटेंसिव के इस्तेमाल से सामान्य ब्लड प्रेशर) या अनकंट्रोल ग्रुप (एंटीहाइपरटेंसिव दवाओं के इस्तेमाल के बावजूद ब्लड प्रेशर की माप 140/90 या इससे अधिक) में बांटा गया.
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इनके ब्लड प्रेशर की माप एन्यूरिज्म के कारण अस्पताल में भर्ती होने से तीन महीने पहले भी रिकार्ड किया गया. विश्लेषण में पाया गया कि आरएएएस इन्हिबिटर लेने वाले 32% प्रतिभागी इंट्राक्रेनियल एन्यूरिज्म रप्चर के शिकार हुए, जबकि नान-इन्हिबिटर आरएएएस लेने वाले प्रतिभागियों में इनकी संख्या 67 प्रतिशत थी.
स्टडी में क्या निकला
किंघई हुआंग ने बताया कि हम इस बात से हैरान थे कि जिनका हाई ब्लड प्रेशर कंट्रोल था और आरएएएस इन्हिबिटर लिया, उनमें नान-आरएएएस इन्हिबिटर लेने वालों की तुलना में एन्यूरिज्म रप्चर का जोखिम कम था. इस तरह हमारी स्टडी इस बात का संकेत देती है कि ब्लड प्रेशर को नॉर्मल रखने के लिए अगर उचित एंटीहाइपरटेंसिव दवाओं का इस्तेमाल किया जाए, तो एन्यूरिज्म रप्चर के रिस्क को कम किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि इन आंकड़ों के आधार पर हमारा अनुमान है कि अगर हाई ब्लड प्रेशर और क्रेनियल एन्यूरिज्म के सभी रोगियों को आरएएएस इन्हिबिटर दिया जाए, तो एन्यूरिज्म रप्चर के मामलों में करीब 18 प्रतिशत तक कमी लाई जा सकती है.
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Tags: Health, Health News, Lifestyle
FIRST PUBLISHED : June 06, 2022, 22:30 IST