सोनू सूद को चिरंजीवी ने पीटने से कर दिया था मना, बोले- लोग मुझे अब निगेटिव रोल में नहीं देख पाएंगे


सिनेमाई पर्दे से उतरकर असल जिंदगी में सुपर हीरो और बहुत से लोगों के लिए मसीहा तक बन चुके सोनू सूद (Sonu Sood) जल्द ही बिग स्क्रीन पर अक्षय कुमार की मुख्य भूमिका वाली फिल्म ‘सम्राट पृथ्वीराज’ (Samarat Prithviraj) में उनके मित्र और मार्गदर्शक राजकवि चंदबरदाई के रूप में नजर आएंगे। ऐसे में, हमने सोनू से सिनेमा, उनकी फिल्मों समेत असल जिंदगी के मिशन पर विस्तार से बात की:

अब आप असल जिंदगी में हीरो बन चुके हैं। लोग आपको इतना प्यार करते हैं, तो पर्दे पर हीरोइज्म दिखाने में पहले वाला रोमांच मिलता है या कुछ बदला है?
सच बोलूं, तो जो मैं रियल लाइफ में करता हूं, वैसा नशा कहीं नहीं है। जब आप लोगों से कनेक्ट करते हैं, उनकी जिंदगियां बदलने की कोशिश करते हैं, जानें बचा पाते हैं, तो उससे बड़ी खुशी कोई नहीं है। ये मैं पहली दफा आपसे बातचीत में शेयर कर रहा हूं कि जब मैं सेट पर भी जाता था, तो जो जूनियर आर्टिस्ट थे और ऐसे बहुत से लोग मिलते थे, जो कहते थे कि छह महीने से हमारे यहां आप ही के यहां से खाना आ रहा है। आपने मेरी मां के घुटने का रिप्लेसमेंट करवाया, अब वो चल पा रही हैं। ऐसे हजारों लोग मिलते थे। कई अपनी तकलीफें शेयर करने के लिए सेट पर खड़े रहते थे। इससे जिम्मेदारी तो बढ़ती है, लेकिन खुशी भी होती है कि लोग इतनी दूर-दूर से इतनी उम्मीदों के साथ आ रहे हैं कि शायद यहां पर आज सोनू से मिल पाएंगे और हमारी जिंदगी में बदलाव आ पाएगा और लोगों की ये जो उम्मीद है, वो आपको ये जुनून देती है कि मुझे इनके लिए कोशिश जरूर करनी है।

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इस फिल्म में चंदबरदाई के किरदार को आपने कैसे जाना-समझा? उसके लिए क्या तैयारियां की?
मेरी मां इतिहास और अंग्रेजी की प्रफेसर हैं, तो बचपन से चंदबरदाई की कहानियां सुनते आए थे कि वे कवि थे, योद्धा थे, भविष्यवक्ता थे, लेकिन ये नहीं पता था कि एक दिन खुद स्क्रीन पर ये किरदार निभाना पड़ेगा। मुझे खुशी है कि एक ऐसा किरदार निभाने को मिला, जो कभी इतिहास के पन्नों में पढ़ा था। आम तौर पर ऐक्टर्स को पीरियड फिल्म करने का मौका बहुत कम मिलता है। कभी 25-30 साल के करियर में एक फिल्म मिलती है तो मुझे खुशी है कि मेरी जो शुरुआत हुई थी, शहीद भगत सिंह से हुई थी। उसके बाद ‘जोधा अकबर’ की और अब ये मेरी तीसरी पीरियड फिल्म है। इसमें मेरा लुक एकदम अलग है, जैसा मैं पर्दे पर कभी नहीं दिखा। इसलिए, भी ये खास है।
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ऐतिहासिक फिल्मों में सिनमैटिक लिबर्टी लिए जाने का आरोप भी लगता है। विवाद और विरोध भी होते हैं। ‘पृथ्वीराज’ को लेकर भी विरोध के स्वर उठने लगे हैं। आप इस पर क्या सोचते हैं कि फिल्ममेकर्स को सचेत रहना चाहिए या लोग ज्यादा ही भावुक हो जाते हैं?
असल में ऐसे किस्सों के बहुत सारे वर्जन मिलते हैं। अगर आप चंदबरदाई की बात करें, अलग-अलग राइटर्स के अलग-अलग वर्जन मिलेंगे, तो इन रेफरेंस में से ये कहना बहुत मुश्किल है कि कौन सा सही था। अब उन रेफरेंस को जोड़कर कहानी बताना डायरेक्टर्स के लिए हमेशा एक चैलेंज होता हैं, लेकिन लोगों को ये भी समझना चाहिए कि जो लोग ये फिल्में बना रहे हैं, वे कितने जिम्मेदार हैं, उनका बैकग्राउंड क्या है। उनकी कोशिश यही है कि आपके इतिहास के जो हीरोज हैं, उन्हें और बड़ा करके उस कहानी को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएं। मेरे ख्याल से बहुत ही बारीक लाइन है कि लोगों की सेंसिटिविटी को भी जेहन में रखना है और एंटरटेनिंग फिल्म भी बनानी है। बाकी, जिसका नॉलेज होगा, वो स्क्रीन पर दिखेगा। जिसका नॉलेज नहीं होगा, वो भी स्क्रीन पर दिखेगा, तो आपको ईमानदारी से फिल्म बनाने की कोशिश करनी चाहिए।
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‘सिंबा’ के बाद ‘पृथ्वीराज’ आपकी पहली हिंदी फिल्म होगी। इधर आप साउथ की फिल्में ज्यादा कर रहे थे। उसकी क्या वजह रही?
मैं अपने रोल को लेकर थोड़ा चूजी हूं। जब तक पूरी संतुष्टि नहीं मिलती, मैं नहीं करता। मेरे पास ऑप्शन भी बहुत रहता है, सभी भाषाओं में, पर जब तक मेरे मतलब का रोल नहीं मिलता, सिर्फ फिल्म करने के लिए कोई फिल्म मैं कभी नहीं करूंगा। मेरी कोशिश यही रहती है कि अगर मेरे मतलब का रोल मिले तभी मैं करूं। इस फिल्म में चंदबरदाई का रोल मुझे एक्साइटिंग लगा, इसलिए मैंने की।
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वैसे, अब साउथ की फिल्में भी पूरे देश की हो गई हैं। आपने कहा था कि साउथ फिल्मों की सक्सेस से हिंदी फिल्ममेकर्स के सोचने का तरीका बदलेगा। आपको लगता है कि हिंदी फिल्ममेकर्स को अपना अप्रोच बदलने की जरूरत है?
देखिए, मैं बहुत सालों से साउथ की फिल्मों से जुड़ा हूं। मुझे पता है कि वो बहुत मेहनत करते हैं, यहां भी बहुत मेहनत करते हैं, लेकिन आपको री-इन्वेंट करना पड़ेगा। फर्क नहीं पड़ता कि भाषा कौन सी है। लोग बस एंटरटेनमेंट चाहते हैं। अगर फिल्म एंटरटेनिंग है तो लोग देखेंगे, वो चाहे तमिल हो, तेलुगू हो, कोई हो। अगर एंटरटेनिंग नहीं होगी, लोग नहीं देखेंगे। इसलिए, मुझे लगता है कि फिल्ममेकर किसी भी भाषा का हो, उसको अपने आप को री इंवेंट करना जरूरी है कि वो नई कहानियां नए तरीके से बता सकें। जो नई कहानी बताएगा, लोग उनकी फिल्म पसंद करेंगे और जो पुराने लूप में फंसा रहेगा, लोग उसे नहीं पसंद करेंगे।
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आपने बताया था कि ‘आचार्य’ की मेकिंग के दौरान चिरंजीवी ने आपको पीटने से मना कर दिया था, क्या बाकी इंडस्ट्री को नजरिया भी आपको लेकर बदला है?
बिल्कुल बदला है। अभी पॉजिटिव रोल, लार्जर दैन लाइफ, रियल हीरोज वाले रोल ऑफर होते हैं, तो मैं खुश हूं कि जो मैं करना चाहता था, वैसे किरदारों में फाइनली लोगों ने मुझे देखना शुरू किया है और वैसे ऑफर मिल रहे हैं। अभी जो नेगेटिव रोल मैंने किए थे, जो प्रॉडक्शन में थे, उसमें भी काफी बदलाव किए गए, क्योंकि काफी लोग सोचते हैं कि मुझे लोग अब नेगेटिव में नहीं देख पाएंगे।
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आपकी बायॉपिक बनाने के कितने ऑफर आ चुके हैं?
लोग बोलते हैं बायॉपिक के लिए, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैंने ऐसा कोई काम किया है कि मुझ पर फिल्म बननी चाहिए। रियल लाइफ की ये जो फिल्म मैं कर रहा हूं, उसमें न तो लाइट है न कैमरा है, ऊपरवाला डायरेक्टर है और मैं अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा रोल निभा रहा हूं, जो हर रोज एक नई चुनौती लेकर आता है। मुझे एक राइटर मिले थे, उन्होंने कहा कि आप रोज ऐसा काम रहे हो कि उस पर एक फिल्म बन जाए, तो आप पर फिल्म बनाने का कौन पंगा लेगा।
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अपने प्रॉडक्शन बैनर के तहत क्या नया प्लान कर रहे हैं?
मेरी फिल्म ‘फतेह’ अगस्त में शुरू होने वाली है। वह बहुत बड़ी ऐक्शन फिल्म है। उसका स्केल बहुत बड़ा है, तो काफी टाइम से काम चल रहा है। सेट बनने शुरू हो गए हैं। मैं उम्मीद करता हूं कि जो लोग जिस तरह से मुझे देखना चाह रहे हैं, इस फिल्म में वैसा देखेंगे और पसंद करेंगे।
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हर हीरो के सामने चुनौतियां आती हैं, सवाल भी उठते हैं। आपके साथ भी ऐसा हुआ है। आपकी नेकियों पर भी कई बार लोग उंगलियां उठा देते हैं। आप कैसे इन चीजों से निबटते हैं? नजरअंदाज करते हैं या दुख होता है?
मेरी मां हमेशा कहा करती थीं कि अगर आप सही रास्ते पर चल रहे हैं, तो मुश्किलें आएंगी जरूर, लेकिन रुकना नहीं है तो मैं जब ये सब करने निकलता हूं तो लोग बहुत अगर उंगली उठाते हैं या कुछ कहते हैं। तब मैं यही सोचता हूं कि मुझे रुकना नहीं है। मैं जिंदगियां बदलने के जिस मिशन पर निकला हूं, वो मुझे जारी रखना है। फर्क नहीं पड़ता कि कोई उंगली उठाए या नहीं उठाए। बहुत दफा लोगों ने उंगली उठाई और बाद में वे खुद मदद के लिए आए और मैं उनकी मदद कर पाया। बाद में उन्हें खुद बुरा लगा कि इंफैक्ट वे मेरी टीम का हिस्सा बन गए। मैं ये इसलिए नहीं करता कि लोग मेरे बारे में क्या सोच रहे हैं। मैं उन लोगों के लिए करता हूं, जो मुझसे उम्मीद लगाकर बैठे हैं कि सोनू उनके लिए कोशिश कर रहा है और वह कोशिश मैं ताउम्र जारी रखूंगा।

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