Crime Control In Bihar: जब ‘नीतीश मॉडल’ का नाम सुनकर खौफ़ से भर जाते थे अपराधी


पटना. बिहार में लॉ एंड ऑर्डर को लेकर नीतीश सरकार (Nitish Government) पर विरोधी हमला बोल ही रहे थे कि अब सहयोगी बीजेपी के नेताओं ने भी राज्य में योगी मॉडल (Yogi Model) लागू करने की मांग कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) पर दबाव बढ़ा दिया है. बीजेपी के प्रवक्ता से शुरू हुई यह बात अब बढ़ते-बढ़ते विधायक-मंत्री से लेकर उप-मुख्यमंत्री की मांग तक पहुंच गई है. लेकिन जनता दल युनाइटेड (जेडीयू) योगी मॉडल को सिरे से खारिज करते हुए नीतीश मॉडल (Nitish Model) को ही सबसे बेहतर बता रही है. पार्टी का दावा है कि बिहार (Bihar) में नीतीश मॉडल ही सबसे बेहतर है.

लेकिन सवाल है कि आखिर क्यों योगी मॉडल और नीतीश मॉडल की चर्चा तेज हो गई है. ऐसे में यह जानना ज़रूरी है कि एक समय जब बिहार में अपराधियों में खौफ था तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ऐसा क्या किया था जिसे नीतीश मॉडल कहा जाता है, और जिसने क्राइम कंट्रोल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसकी चर्चा तब देश भर में हुई थी.

‘अपराध रोकने के लिए अलग से मॉडल नहीं होता’

न्यूज़ 18 ने इस बारे में बिहार के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अभयानंद से बातचीत की. अभयानंद को स्पीडी ट्रायल का जनक कहा जाता है, उनके समय में स्पीडी ट्रायल की वजह से अपराधियों में खौफ समा गया था. अभयानंद ने कहा कि अपराध को रोकने के लिए कोई अलग से मॉडल नहीं होता. बस कानून की किताब में जो लिखा है उसे बिहार पुलिस के बड़े अधिकारियों से लेकर डीजीपी तक को ईमानदारी से पढ़ कर जमीन पर उतारना होगा. यदि ऐसा हो गया तो अपराधी अपराध करने से पहले सौ बार सोचेंगे.

अभयानंद ने कहा कि जब उनके कार्यकाल में स्पीडी ट्रायल शुरू हुआ था तो उन्हें मुख्यमंत्री की खुली छूट थी. बिहार पुलिस को अपराध नियंत्रण करने के लिए जो भी आवश्यक कदम उठाना होता था, वो उठाती थी. अभयानंद कहते हैं कि उन्होंने पता लगाया कि अपराध कैसे बढ़ रहा है, और उसकी मूल वजह क्या है. कोई भी अपराधी जब अपराध करता है तो इस मामले में उसे जेल न चल जाना पड़े, वो कोर्ट से किसी भी तरह बेल ले लेता था और फिर किसी दूसरे अपराध में शामिल हो जाता था. हमने इस मामले को गंभीरता से लिया और सबसे पहले कोर्ट पहुंच कर वैसे अपराधी के बेल को रिजेक्ट करवाने की अपील की जिस पर गंभीर मामले दर्ज थे, और फिर स्पीडी ट्रायल करवा कर उनमें सजा करवाते थे.

बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक की मानें तो वर्ष 2005 से लेकर 2012 तक ‘नीतीश मॉडल’ के तहत राज्य में क्राइम कंट्रोल किया गया था. इसकी चर्चा देश भर में हुई थी (फाइल फोटो)

अपराध नियंत्रण के नीतीश मॉडल की देश भर में हुई थी चर्चा

उन्होंने कहा कि पहली बार बिहार जैसे स्टेट में ऐसा हो रहा था जब बड़ी संख्या में अपराधियों का बेल रिजेक्ट हुआ. इसका नतीजा यह हुआ कि अपराधियों में खौफ समाने लगा. ज्यादातर अपराधी सरेंडर करने लगे, कुछ बिहार से बाहर भाग गए, कुछ भूमिगत हो गए और लगभग एक लाख के आसपास अपराधी जेल पहुंचाए गए. यही वजह थी कि वर्ष 2005 से लेकर 2012 तक बिहार में अपराध का ग्राफ तेजी से गिरा. इसे क्राइम कंट्रोल का नीतीश मॉडल बताया गया जिसकी चर्चा देश भर में हुई.

लेकिन अभयानंद कहते हैं कि आज इसकी कमी दिख रही है. बिहार पुलिस के बड़े अधिकारी कानून की किताब पर पड़ी धूल को नहीं हटा रहे हैं जिसमें अपराध को रोकने का हर उपाय बताया गया है. जब तक डीजीपी से लेकर एडीजी और आईजी स्तर के अधिकारी ऐसा नहीं करते, अपराधियों के मन में कानून का भय नहीं होगा. इसके लिए किसी दूसरे मॉडल की जरूरत नहीं है.

आपके शहर से (पटना)

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