भगत सिंह के फेवरेट राइटर के नाटक से बनी फिल्म
‘नीचा नगर’ बिली वाइल्डर की ‘द लॉस्ट वीकेंड’ और डेविड लीन की ‘ब्रीफ एनकाउंटर’ जैसी फिल्मों के साथ कम्पीट कर रही थी। चेतन आनंद की की डायरेक्टेड ये फिल्म रशियन राइटर मैक्सिम गोर्की के नाटक‘द लोवर डेप्थ्स’ पर आधारित थी। ये राइटर वही थे, जिनका नॉवल ‘मदर’ भगत सिंह को बहुत पसंद आया था। खैर, चेतन आनंद ने इनके नाटक को भारत के हिसाब से ढाला और फिल्माया। इस फिल्म की कहानी अमीरी और गरीबी के बीच के अंतर की थी। ऊंच-नीच के डिफ्रेंसेस की थी।
‘नीचा नगर’ की कहानी में था संघर्ष
फिल्म में एक गरीब इलाके की कहानी दिखाई गई है। इस इलाके में आने वाले साफ पानी की सप्लाई को वहां का एक दबंग बंद कर देता है, जिससे लोगों की परेशानी बढ़ जाती है। उन्हें फिर गंदा पानी पीना पड़ता है, जिससे कइयों की जान पर बन आती है। वहीं, पूंजीवादी गांववालों की जमीन हथियाने की कोशिश करते हैं। कोई संसाधन न होने की वजह से कैसे गांववाले अपने हक के लिए लड़ते हैं, ये फिल्म उसी संघर्ष की कहानी बयां करती है। खैर, 29 सितंबर 1946 को इसे कान फिल्म महोत्सव में जो पहली बार दिखाया गया और इस तारीख को ही इसकी रिलीज डेट माना गया। लेकिन भारत में अब तक इसे रिलीज नहीं किया गया।
जब फिल्म की लीड रोल हो गई थीं सरकार से खफा
साल 1946 में कान फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई इस फिल्म को बेस्ट फिल्म का सबसे बड़ा अवॉर्ड मिला था। ऐसा सम्मान अब तक किसी भी भारतीय फिल्म ने हासिल किया है। फिर भी जब सिनेमा के 100 साल पूरे हुए, तब इसको जश्न में शामिल नहीं किया गया। इसके बाद कामिनी कौशल गुस्सा हो गई थीं। उन्होंने सूचना और प्रासरण मंत्रालय को खरी-खरी सुनाई थी। उन्होंने कहा था, ‘मेरी ये डेब्यू फिल्म थी। कान फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट फिल्म का अवार्ड मिला था। और अवॉर्ड पाने वाली पहली भारतीय फिल्म भी थी। लेकिन केंद्र सरकार देश में सिनेमा के 100 साल पूरे होने का जश्न मनाया लेकिन इसका कोई जिक्र नहीं था। मुझे ये देखकर बहुत दुख होता है। मैं समझ सकती हूं कि मैं बूढ़ी हो चुकी हूं और लोगों की याददाश्त से उतर चुकी हूं।’