Rajya Sabha Election: फडणवीस के फेर में फंसी शिवसेना, बिश्नोई से हारे माकन, कैसे चला गहलोत का जादू? जानें सबकुछ


चार राज्यों की 16 राज्यसभा सीटों पर नतीजे शुक्रवार देर रात आ गए। राजस्थान में कांग्रेस अपनी तीनों उम्मीदवार जिताने में सफल रही। वहीं, हरियाणा, कर्नाटक और महाराष्ट्र में नतीजे भाजपा के पक्ष में रहे। राजस्थान में भाजपा विधायक ने कांग्रेस के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की तो हरियाणा में कांग्रेस विधायक ने भाजपा समर्थित निर्दलीय के पक्ष में वोट दिया। 

इन चुनावों में कहां कैसे समीकरण बने और बिगड़े? किसने किसका खेल बनाया और किसका बिगाड़ा? किसकी रणनीति काम नहीं आई? आइये राज्यवार नतीजों के मायने को समझते हैं।

राजस्थान में क्या हुआ?
राजस्थान में चार सीटों के लिए पांच उम्मीदवार मैदान में थे। तीन कांग्रेस से, एक भाजपा से और एक भाजपा समर्थित निर्दलीय। पेंच कांग्रेस के तीसरे उम्मीदवार प्रमोद तिवारी और भाजपा समर्थित निर्दलीय सुभाष चंद्रा के बीच फंसा था। 200 सदस्यों वाली विधानसभा में एक उम्मीदवार को जीत के लिए 41 वोट की जरूरत थी। 

कांग्रेस उम्मीदवार रणदीप सुरजेवाला को 43, मुकुल वासनिक को 42 और प्रमोद तिवारी को 41 वोट मिले। इस तरह अशोक गहलोत एक वोट खारिज होने के बाद भी अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के पक्ष में 126 विधायकों का समर्थन जुटाने में सफल रहे। जबकि, विधानसभा में कांग्रेस के सिर्फ 108 विधायक हैं। इनमें भी परसराम मोरदिया का मत खारिज हो गया।

भाजपा उम्मीदवार घनश्याम तिवाड़ी को 43 वोट मिले। वहीं, सुभाष चंद्रा को महज 30 वोट से संतोष करना पड़ा। भाजपा 71 और उसकी सहयोगी आरएलपी के तीन विधायकों को मिलाकर कुल 74 विधायक हैं। 

चंद्रा वोटिंग से पहले कांग्रेस के आठ विधायकों द्वारा क्रॉस वोटिंग किए जाने की बात कर रहे थे। उन्हें एनडीए के बचे हुए 33 वोट भी नहीं मिल पाए। दो अतरिक्त वोट घनश्याम तिवाड़ी के पक्ष में डाले गए। वहीं, धौलपुर से भाजपा विधायक शोभारानी कुशवाहा ने क्रॉस वोटिंग की। शोभारानी ने कांग्रेस उम्मीदवार प्रमोद तिवारी के पक्ष में वोट दे दिया।  

राजस्थान के नतीजों के मायने क्या?
नतीजे सबसे ज्यादा अशोक गहलोत को सुकून देने वाले हैं। जादूगर कहे जाने वाले गहलोत का ही जादू था कि वो रूठे विधायकों को मनाने में कामयाब रहे। नाराज बीटीपी और निर्दलीय विधायकों ने कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में वोट किया। सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले कांग्रेस विधायकों ने भी एकुजट होकर पार्टी प्रत्याशियों के लिए वोट डाला। 

ये नतीजे भाजपा के लिए चुनाव से 16 महीने पहले एक तरह से खतरे की घंटी जैसे हैं। पार्टी में गुटबाजी नजर आई। वसुंधरा राजे की करीबी मानी जाने वाली धौलपुर विधायक ने क्रॉस वोटिंग करके पार्टी गुटबाजी की बातों को और पुख्ता किया। चुनाव के दौरान दिखा मिस मैनेजमेंट आने विधानसभा चुनाव से पहले बड़े बदलाव का संकेत दे रहा है। 

हरियाणा में बिश्नोई ने बिगाड़ा माकन का खेल
हरियाणा में दो सीटों के लिए तीन उम्मीदवार मैदान में थे। भाजपा के कृष्ण लाल पंवार, कांग्रेस के अजय माकन और भाजपा समर्थित निर्दलीय कार्तिकेय शर्मा ताल ठोक रहे थे। 90 सदस्यों वाली विधानसभा में एक उम्मीदवार को जीत के लिए 31 वोट की जरूरत थी। भाजपा उम्मीदवार कृष्ण लाल पंवार के पक्ष में 36 वोट पड़े। कांग्रेस के अजय माकन के पक्ष में 29 वोट पड़े। वहीं, कार्तिकेय शर्मा को 23 वोट मिले। 

पहली वरियता के वोटों में माकन और कार्तिकेय दोनों जीत का आंकड़ा नहीं छू सके। ऐसे में फैसला दूसरी वरीयता के वोटों से हुआ। कृष्ण लाल पंवार को वोट देने वाले 36 विधायकों ने दूसरी वरियता का वोट कार्तिकेय को दिया था। वहीं, माकन के पास दूसरी वरीयता के वोट नहीं थे। कार्तिकेय दूसरी वरियता के वोटों की बदौलत जीत दर्ज करने में सफल रहे। 

राज्यसभा चुनाव में एक विधायक के वोट की वैल्यू 100 मानी जाती है। भाजपा के 36 विधायकों ने पहली वरियता का वोट कृष्ण लाल पंवार को दिया था। एक विधायक के वोट नहीं करने और एक एक वोट खारिज होने के बाद जीत के लिए जरूरी वोट वैल्यू 2934 थी। 

पंवार को जो अतिरिक्त वोट मिले उन्हें कार्तिकेय शर्मा को ट्रांसफर कर दिया गया। क्योंकि सभी विधायकों ने दूसरी वरियता का वोट कार्तिकेय को दिया था। ऐसे में कार्तिकेय को 666 वैल्यू के अतिरिक्त वोट मिल गए। उनके वोटों की कुल वैल्यू 2966 हो गई। जबकि माकन के पास केवल 2900 वैल्यू के वोट थे। 

ऐसे बदला अंकगणित
90 सदस्यों वाली विधानसभा में निर्दलीय बलराज कुंडू ने वोट नहीं डाला। 31 सदस्यों वाली कांग्रेस के विधायक का वोट खारिज हो गया। ऐसे में 88 सदस्यों के ही वोट गिने गए। इस स्थिति में जीत के लिए 29.34 वोट की जरूरत थी। कांग्रेस के बागी विधायक कुलदीप बिश्नोई ने क्रॉस वोटिंग करके अजय माकन का खेल बिगाड़ दिया।

महाराष्ट्र में फडणवीस के प्लान ने बिगाड़ा गठबंधन का गणित
महाराष्ट्र की छह राज्यसभा सीटों के लिए सात उम्मीदवार मैदान में थे। भाजपा ने तीन, शिवसेना ने दो, कांग्रेस और एनसीपी ने एक-एक उम्मीदवार उतारा था। यहां शिवसेना के संजय पवार को हार का सामना करना पड़ा। भाजपा की ओर से केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के अलावा अनिल बोंडे और धनंजय महाडिक जीते। कांग्रेस के इमरान प्रतापगढ़ी, एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल और शिवसेना के संजय राउत भी जीतने में सफल रहे। 

राज्य की 288 सदस्यों वाली विधानसभा में 285 सदस्यों ने वोट डाला। न्यायिक हिरासत में चल रहे एनसीपी के दो विधायक नवाब मलिक और अनिल देशमुख वोट नहीं डाल पाए। वहीं, शिवसेना के रमेश लेक का हाल ही में निधन हो गया था। शिवसेना के ही विधायक सुहास कांडे का वोट खारिज कर दिया गया। 

ऐसे में केवल 284 विधायकों के वैध वोट पड़े। इस स्थिति में एक उम्मीदवार को जीत के लिए 41 वोट की जरूरत थी।  भाजपा के पीयूष गोयल और अनिल बोंडे को 48-48 वोट मिले। कांग्रेस के इमरान प्रतापगढ़ी को 44 तो एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल को 43 वोट मिले। शिवसेना के संजय राउत के पक्ष में 41 विधायकों ने वोट दिया। वहीं, भाजपा के तीसरे उम्मीदवार धनंजय महाडिक को 41.58  वोट मिले। इसमें दूसरी वरीयता के वोट भी शामिल हैं। पहली वरीयता की बात करें तो माहडिक को कुल 27 वोट मिले। जबकि, शिवसेना के संजय पवार कुल 39.26 वोट ही जुटा पाए। 

 महाराष्ट्र के नतीजों के मायने क्या?
उद्धव ठाकरे सरकार के समर्थन में 169 विधायक हैं। वोटिंग से पहले दो विधायकों वाली एआईएमआई ने भी सत्ताधारी गठबंधन को समर्थन का एलान किया था। ऐसे में सरकार के पक्ष में 171 विधायक माने जा सकते हैं। दो विधायकों के न्यायिक हिरासत में होने और एक विधायक का वोट रद्द होने के बाद ये संख्या 168 पहुंचती है।  अगर सत्ताधारी गठबंधन के सभी दलों ने गठबंधन के उम्मीदवारों को वोट दिया होता तो उसके चारों उम्मीदवार जीतते।

 भाजपा के 106 विधायकों समेत एनडीए के कुल 113 विधायक हैं। भाजपा उम्मीदवारों को कुल 123 वोट मिले। ये आंकड़े बताते हैं कि महाविकास अघाणी में शामिल छोटे दलों के ज्यादातर विधायकों ने भाजपा उम्मीदवारों को वोट डाला।  

कर्नाटक में कैसे रहे नतीजे?
कर्नाटक में चार सीटों के लिए छह उम्मीदवार मैदान में थे। भाजपा से तीन, कांग्रेस से दो और जेडीएस ने एक उम्मीदवार उतारा था। भाजपा के तीनों उम्मीदवार जीतने में सफल रहे। एक सीट कांग्रेस के खाते में गई। 224 सदस्यीय विधानसभा में एक उम्मीदवार को जीत के लिए 45 वोट की जरूरत थी। भाजपा की निर्मला सीतारमण और कांग्रेस के जयराम रमेश को 46-46 वोट मिले।
भाजपा के जग्गेश को 44 वोट मिले जबकि लहर सिंह सिरोया को 36 वोट मिले। 32 विधायकों वाली जेडीएस के कुपेन्द्र रेड्डी को 30 वोट मिले। उसके दो विधायकों ने कांग्रेस के दूसरे उम्मीदवार मंसूर अली खान को वोट दिया। मंसूर को महज 25 वोट से संतोष करना पड़ा।
भाजपा सरकार के साथ 122 विधायक हैं। उसे चार अतिरिक्त वोट मिले। वहीं, एक निर्दलीय समेत 70 विधायकों वाली कांग्रेस को 69 वोट ही मिले। जबकि उसके पक्ष में जेडीएस के दो विधायकों ने वोट किया था। यानी, कांग्रेस ने जेडीएस में सेंधमारी की तो भाजपा ने कांग्रेस के खेमें से समर्थन पाया।

भाजपा को कुल 22 तो कांग्रेस को मिलीं नौ सीटें
राज्यसभा के लिए कुल 15 राज्यों की 57 सीटों पर चुनाव हुए। इनमें से 11 राज्यों की 41 सीटों पर निर्विरोध निर्वाचन तीन जून को ही हो गया था। सभी 57 सीटों के नतीजे आने के बाद दलगत सीटों की बात करें तो सबसे ज्यादा 22 सीटें भाजपा को मिलीं। 
कांग्रेस को नौ, वाईएसआर कांग्रेस को चार, बीजद और डीएमके को तीन-तीन सीटें मिलीं। आप, एआईएडीमके, राजद, टीआरएस दो-दो सीटें जीतने में सफल रहे। जदयू, झामुमो, शिवसेना, एनसीपी, सपा और रालोद के खाते में एक-एक सीट गई। दो निर्दलीय भी जीतने में सफल रहे। इनमें से एक सपा के समर्थन से तो एक को भाजपा के समर्थन से जीत मिली।

विस्तार

चार राज्यों की 16 राज्यसभा सीटों पर नतीजे शुक्रवार देर रात आ गए। राजस्थान में कांग्रेस अपनी तीनों उम्मीदवार जिताने में सफल रही। वहीं, हरियाणा, कर्नाटक और महाराष्ट्र में नतीजे भाजपा के पक्ष में रहे। राजस्थान में भाजपा विधायक ने कांग्रेस के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की तो हरियाणा में कांग्रेस विधायक ने भाजपा समर्थित निर्दलीय के पक्ष में वोट दिया। 

इन चुनावों में कहां कैसे समीकरण बने और बिगड़े? किसने किसका खेल बनाया और किसका बिगाड़ा? किसकी रणनीति काम नहीं आई? आइये राज्यवार नतीजों के मायने को समझते हैं।



Source link

Enable Notifications OK No thanks