क्यों खास है ये बैल पेंटिंग
बुल आर्ट शक्ति, उम्मीद और स्मृद्धि का प्रतीक होता है। ऐसा कहा जाता है कि घर या ऑफिस में बुल की पेंटिंग लगाने से आर्थिक वृद्धि होती है। दौड़ते हुए बैल की तेज चाल जीवन में उन्नति और प्रगति को दर्शाती है। सफेद बैल आर्ट शांति और पॉजिटिव ऊर्जा को भी घर व परिवार में फैलता है।
एक मतलब ये भी
भारतीय संस्कृति में बैल व अन्य पशुओं को देवी देवता के सामान माना जाता है। बैल तो भगवान शिव का वाहन भी होता है जिसे नंदी के रूप में जाना जाता है। नंदी को देवता के रूप में पूजा जाता है, देशभर में कई मंदिरों में नंदी की प्रतिमा स्थापित होती है। कहा जाता है कि नंदी के कान में फुसफुसाई गई हर इच्छा सीधे भगवान शिव के पास पहुंचती है और वह जरूर पूरी होती है।
बैल पेंटिंग को बनाने वाले मंजीत बावा की बात करें तो वह अब इस दुनिया में नहीं है। उनका साल 2008 में निधन हो गया। मंजीत बावा पंजाब के रहने वाले थे। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ प्रिंटिंग से पढ़ाई की। उन्होंने कई साल लंदन में ही काम किया।
मंजीत बावा की पेंटिंग में भारतीय पौराणिक कथाओं और सूफी दर्शनशास्त्र झलकता है। उनकी कलाकृतियों में मां काली, शिव, पशु, बांसुरी से लेकर मनुष्यों और पशुओं के विचारों को देखा जा सकता है। दुनियाभर में बावा की पेंटिंग्स के चाहने वाले हैं, आमतौर पर उनकी हर पेंटिंग की कीमत करीब तीन से चार करोड़ रुपए होती है।