Vice President: मायावती ने जगदीप धनखड़ तो सोरेन ने मार्गरेट अल्वा को समर्थन दिया, जानें इसके तीन बड़े कारण


उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए मायावती ने एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनखड़ को समर्थन देने का एलान किया है। वहीं, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को सपोर्ट करने का फैसला लिया है। 

छह अगस्त को होने वाले इस चुनाव में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल धनखड़ का मुकाबला विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा से है। बसपा सुप्रीमो के एलान के बाद जहां धनखड़ की दावेदारी और मजबूत हो गई है, वहीं झामुमो के समर्थन से मार्गरेट की स्थिति पहले से थोड़ी ठीक हो गई है।

हालांकि, अभी भी कुछ दलों ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। मायावती ने धनखड़ को ही क्यों समर्थन दिया? मार्गरेट अल्वा को क्यों नहीं? दोनों उम्मीदवारों को अब तक कितने दलों का समर्थन मिल चुका है? राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार से साथ खड़ी रहने वाली झामुमो ने उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष को क्यों साथ दिया? आइए जानते हैं… 

 

पहले जानिए मायावती ने क्या कहा? 

मायावती ने ट्विट कर उपराष्ट्रपति चुनाव में धनखड़ को समर्थन देने का एलान किया। उन्होंने लिखा, ‘सर्वविदित है कि देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में सत्ता व विपक्ष के बीच आम सहमति ना बनने की वजह से ही इसके लिए फिर अन्ततः चुनाव हुआ। अब ठीक वही स्थिति बनने के कारण उपराष्ट्रपति पद के लिए भी दिनांक छह अगस्त को चुनाव होने जा रहा है। बीएसपी ने उपराष्ट्रपति पद के लिए हो रहे चुनाव में भी व्यापक जनहित और अपनी मूवमेंट को ध्यान में रखकर जगदीप धनखड़ को समर्थन देने का फैसला किया है। इसकी मैं आज औपचारिक रूप से घोषणा भी कर रही हूं।’  

 

आखिर मायावती धनखड़ को ही क्यों दिया समर्थन? 

ये समझने के लिए हमने राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय सिंह से बात की। उन्होंने कहा, धनखड़ को समर्थन देने के पीछे बसपा सुप्रीमो मायावती का सियासी गणित है। जो वह विधानसभा चुनाव में हारने के बाद से मजबूत करने में जुटी हैं। इसके लिए हम प्रमुख तौर पर तीन कारण मान सकते हैं। 

1. जातिगत समीकरण मजबूत करना: जगदीप धनखड़ जाट समुदाय से आते हैं। पश्चिम उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा समेत कई राज्यों में जाट समुदाय के वोटर्स की अच्छी खासी संख्या है। अलगे साल राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं। यहां 20 फीसदी जाट वोटर्स हैं। मायावती की पार्टी भी यहां मैदान में उतरेगी। ऐसे में वह जाट समुदाय को नाराज नहीं करना चाहती है। राजस्थान में बसपा पांच से छह विधानसभा सीट जीत लेती है। इसलिए वह धनखड़ का समर्थन करके जाट बिरादरी को यह संदेश देना चाहती हैं कि वह उनके साथ खड़ी हैं। हरियाणा में भी चुनाव होने हैं। यहां भी जाट बिरादरी काफी संख्या में है। 

2. सम्मान न मिलने की नाराजगी: विपक्ष ने जब-जब बैठक की है, बहुजन समाज पार्टी को नहीं बुलाया गया है। इस एलान से मायावती अपनी नराजगी भी जाहिर कर ना चाहती हैं। इसके साथ ही मायावती उपराष्ट्रपति चुनाव में जगदीप धनखड़ को समर्थन देने का एलान करके विपक्ष को यह बताना चाहती हैं कि भले ही उनका समय खराब चल रहा है, लेकिन अभी वह कमजोर नहीं हुई हैं। 

3. भाजपा को लेकर सॉफ्ट रवैया: प्रो. अजय सिंह कहते हैं कि भले ही सार्वजनिक तौर पर मायावती कहती हैं कि वह भाजपा से नहीं डरती हैं, लेकिन उनके फैसलों और बयानों से काफी कुछ खास होता है। जहां एक तरफ विपक्ष भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुलकर लड़ाई लड़ता है, वहीं मायावती के बयान काफी सॉफ्ट नजर आते हैं। मायावती भाजपा के खिलाफ ज्यादा हमलावर नहीं दिखती हैं।

लंबे समय तक उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर यूपी में राज किया और भाजपा ने ही उन्हें मुख्यमंत्री बनाया। ये उसकी वजह हो सकती है। हालांकि, उनके आलोचक इसे ईडी, सीबीआई जैसी एजेंसियों का डर बताते हैं। अक्सर उन पर आरोप लगता है कि वो सरकार को नाराज नहीं करना चाहती हैं। इसलिए सत्ताधारी दल के प्रति नर्म रुख दिखाती है।   

 

झामुमो ने मार्गरेट को ही समर्थन क्यों दिया? 

झारखंड की सत्ताधारी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन दिया था। झामुमो के सारे विधायकों, सांसदों ने मुर्मू को ही वोट डाला था। लेकिन उपराष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने एनडीए की बजाय विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को सपोर्ट कर दिया है। इसे समझने के लिए हमने प्रो. अजय से बात की। उन्होंने कहा, राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देना झामुमो की मजबूरी थी। झामुमो आदिवासी लोगों के मुद्दों पर राजनीति करती है। मुर्मू आदिवासी समाज से आती हैं। ऐसे में अगर हेमंत सोरेन मुर्मू का समर्थन नहीं करते तो उन्हें आदिवासी विरोधी कहा जाता। 

झारखंड की सरकार चलाने के लिए सोरेन को कांग्रेस का भी समर्थन मिला हुआ है। उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा का पूरा राजनीतिक जीवन कांग्रेस से जुड़ा रहा। ऐसे में सोरेन की यह मजबूरी बन जाती है कि वह मार्गरेट को समर्थन करें। 



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